Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

Supreme Court: ‘राज्यों को विशेष योजनाएं लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं अदालतें’

10

Supreme Court: ‘राज्यों को विशेष योजनाएं लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं अदालतें’, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार के नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायर बहुत सीमित है और अदालतें राज्यों को उपलब्ध बेहतर व निष्पक्ष विकल्प के आधार पर किसी विशेष नीति या योजना को लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी भूख और कुपोषण से निपटने के लिए सामुदायिक रसोई स्थापित करने की योजना बनाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए की।

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मामले में कोई भी निर्देश देने से इनकार कर दिया

कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को केंद्र एवं राज्यों द्वारा लागू किया जा रहा है जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि न्यायिक समीक्षा का विषय नीति की वैधता होगी, न कि नीति की सुदृढ़ता। नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित पीठ ने कहा,”यह अच्छी तरह स्थापित है कि नीतिगत मामलों की जांच में न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है। अदालतें किसी नीति के सही होने या नहीं होने और उसकी उपयुक्तता की जांच नहीं करतीं और न ही कर सकती हैं। न ही अदालतें नीतिगत मामलों में कार्यपालिका की सलाहकार हैं जिन्हें बनाने का अधिकार कार्यपालिका का है। अदालतें राज्यों को इस आधार पर किसी विशेष नीति या योजना को लागू करने का निर्देश नहीं दे सकतीं कि बेहतर, निष्पक्ष या बुद्धिमानीपूर्ण विकल्प उपलब्ध है।” क्रियान्वयन के लिए राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों का विकल्प खुला शीर्ष अदालत ने कहा कि वैकल्पिक कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों का विकल्प खुला है।

शीर्ष अदालत ने कहा,

जब खाद्य एवं पोषण की सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिकार आधारित दृष्टिकोण से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है और जब उक्त अधिनियम के तहत केंद्र व राज्यों द्वारा अन्य कल्याणकारी योजनाएं भी बनाई और लागू की गई हैं ताकि गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए लोगों को किफायती मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध हो सके तो हम इस दिशा में कोई और प्रस्ताव नहीं करते।” सामुदायिक रसोई की अवधारणा बेहतर या बुद्धिमानी पूर्ण पीठ ने कहा, “हमने इस बात की जांच नहीं की है कि एनएफएसए के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामुदायिक रसोई की अवधारणा राज्यों के लिए बेहतर या बुद्धिमानी पूर्ण विकल्प है या नहीं,

इसके बजाय हम ऐसी वैकल्पिक कल्याणकारी योजनाओं का पता लगाने के लिए इसे राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों पर छोड़ना पसंद करेंगे जिनकी एनएफएसए के तहत अनुमति है।” जनहित याचिका पर आया फैसला सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सामाजिक कार्यकर्ता अनुन धवन, इशान सिंह और कुंजन सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आया है जिसमें भूख और कुपोषण से निपटने के लिए सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को सामुदायिक रसोई की एक योजना तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading