सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- कितने दागी नेताओं को राहत दी
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- कितने दागी नेताओं को राहत दीEC से चुनाव लड़ने से बैन हटाने या घटाने की जानकारी मांगी; 2 हफ्ते की मोहलत
नई दिल्ली
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में रिप्रजेंटेंशन ऑफ पीपल एक्ट (RPA), 1951 की धारा 8 और 9 की वैधता को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (4 मार्च) को चुनाव आयोग (EC) से ऐसे दागी नेताओं की लिस्ट मांगी जिन पर से उसने चुनाव लड़ने से बैन के पीरियड को कम कर दिया या हटा दिया। कोर्ट ने EC से 2 हफ्ते में जवाब मांगा है। वहीं, याचिकाकर्ता से कहा कि EC से जानकारी मिलने के बाद 2 हफ्तों के अंदर अपना जवाब दाखिल करें।
दरअसल रिप्रजेंटेंशन ऑफ पीपल एक्ट (RPA), 1951 में प्रावधान है कि दागी नेता 2 साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते। भले ही उसे जमानत मिल गई हो या फैसले के खिलाफ ऊपरी कोर्ट में मामला चल रहा हो।
इसी एक्ट की धारा 11 के तहत EC के पास ताकत है कि वह किसी मामले में इस अवधि को कम या पूरी तरह हटा सकता है। ऐसा करने पर स्पष्ट कारण भी दर्ज करना होगा। कोर्ट ने ऐसे ही मामलों की जानकारी मांगी है।
2016 में लगाई गई थी याचिका… केस की टाइमलाइन
2016: एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में जनहित याचिका दायर करके रिप्रजेंटेंशन ऑफ पीपल एक्ट (RPA), 1951 की धारा 8 और 9 की वैधता को चुनौती दी थी। याचिका में सांसदों-विधायकों के खिलाफ केसों का जल्द से जल्द निपटान करने और दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
10 फरवरी, 2025: सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई करने को राजी हुआ। सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने की। बेंच ने केंद्र और EC से 3 हफ्ते में जवाब मांगा। बेंच ने कहा- केंद्र और EC तय समय में जवाब नहीं भी देते तो भी मामले को आगे बढ़ाएंगे। दोषी नेताओं के चुनाव लड़ने पर सिर्फ 6 साल का बैन लगाने का कोई औचित्य नहीं है। अगर सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराया जाता है तो वह जिंदगी भर सेवा से बाहर हो जाता है। फिर दोषी व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है। कानून तोड़ने वाले कानून कैसे बना सकते हैं।
26 फरवरी, 2025: केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध का विरोध किया। साथ ही केंद्र ने कहा- दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। यह कानून बदलने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने की तरह है, जो न्यायिक समीक्षा की शक्तियों में नहीं आते।
कोर्ट ने निचली अदालतों में धीमी सुनवाई पर चिंता जताई
सुनवाई के दौरान निचली अदालतों और MP/MLA कोर्ट में सुनवाई की रफ्तार धीमी होने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता। जस्टिस मनमोहन ने कहा कि दिल्ली की निचली अदालतों में मैंने देखा है कि एक या दो मामले लगाए जाते है और जज 11 बजे तक अपने चेंबर मे चले जाते हैं।
एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश के दूसरे राज्यों मे बार-बार सुनवाई टाल दी जाती है और वजह भी नहीं बताई जाती। कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि बहुत से ऐसे राज्य हैं जहां अबतक MP/MLA कोर्ट गठित नहीं की गई।
हंसारिया ने कोर्ट को सुझाव दिया कि क्या चुनाव आयोग ऐसा नियम नहीं बना सकता कि राजनीतिक पार्टियां गंभीर अपराध मे सजा पाए लोगों को पार्टी पदाधिकारी नहीं नियुक्त कर सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें…
सुप्रीम कोर्ट बोला- गवाही की कोई उम्र सीमा नहीं होती, 7 साल की बच्ची के बयान पर मां के हत्यारे पिता को उम्रकैद
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गवाह की कोई उम्र सीमा नहीं होती है। अगर कोई बच्चा गवाह देने में सक्षम है तो उसकी गवाही उतनी ही मान्य होगी, जितनी किसी और गवाह की। दरअसल, कोर्ट ने 7 साल की बच्ची के गवाह के आधार पर हत्यारे पति को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। बच्ची ने अपने पिता को मां की हत्या करते देखा था।
Comments are closed.