शिव धनुष तथा वैष्णव धनुष की कथा
श्रीराम द्वारा शिव धनुष को तोड़े जाने के बाद परशुराम जी राजा जनक की सभा में पहुंचे थे। परशुराम जी श्री राम को कहते हैं कि शिव धनुष का तोड़ना अचिंत्य है अर्थात् शिव धनुष को कोई तोड़ ही नहीं सकता। पर श्री राम ने धनुष को तोड़ दिया था। अतः श्रीराम की शक्ति की परीक्षा लेने के लिए परशुराम जी ने अपना विशाल धनुष देकर श्रीराम को कहा कि तुम इसे खींचकर इसके ऊपर बाण चढ़ाओ और अपना बल दिखाओ।
तो आइए ! हम जानने का प्रयास करते हैं कि राजा जनक के पास शिव धनुष और परशुराम जी के पास वैष्णव धनुष कैसे पहुंचा ? वाल्मीकि रामायण के बालकांड के ७५ – ७६ वें सर्ग में इसका उल्लेख है।
परशुराम जी श्री राम को कहते हैं –
इमे द्वे धनुषी श्रेष्ठे दिव्ये लोकाभिपूजिते।
दृढ़े बलवती मुख्ये सुकृते विश्वकर्मणा:।।
अनुसृष्टं सुरैरेकं त्रयम्बकाय युयुत्सवे।
त्रिपुरघ्नं नरश्रेष्ठ भग्नं काकुत्स्थ यत्त्वया।।
रघुनंदन ! ये दो धनुष सबसे श्रेष्ठ और दिव्य थे। सारा संसार इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता था। साक्षात् विश्वकर्मा जी ने इन्हें बनाया था। ये बड़े प्रबल और दृढ़ थे।
नरश्रेष्ठ ! इनमें से एक को देवताओं ने त्रिपुरासुर से युद्ध करने के लिए भगवान शंकर को दिया था।काकुत्स्थनंदन ! जिससे त्रिपुर राक्षस का नाश हुआ था। वह वही धनुष था , जिसे तुमने तोड़ डाला है।
इदं द्वित्तीयं दुर्धर्षं विष्णोर्दत्तं सुरोत्तमै:।
तदिदं वैष्णवं राम धनु: परपुरंजयम्।।
और दूसरा दुर्धर्ष धनुष यह है , जो मेरे हाथ में है। इसे श्रेष्ठ देवताओं ने भगवान विष्णु को दिया था। श्रीराम ! शत्रुनगरी पर विजय पानेवाला वही यह वैष्णव धनुष है।
एक बार समस्त देवताओं ने भगवान शिव और भगवान विष्णु के बलाबल की परीक्षा के लिए ब्रह्मा जी से पूछा था कि इन दोनों देवताओं में कौन अधिक बलशाली है ? देवताओं के इस अभिप्राय को जानकर ब्रह्मा जी ने शिव जी और विष्णु जी में विरोध उत्पन्न कर दिया। विरोध पैदा होने पर वे एक दूसरे को जीतने की इच्छा से भयानक युद्ध किए।
उस समय भगवान विष्णु ने हुंकार मात्र से शिव जी के भयंकर बलशाली धनुष को शिथिल तथा त्रिनेत्रधारी महादेव को भी स्तंभित कर दिया था। भगवान विष्णु के पराक्रम से शिवजी के उस धनुष को शिथिल हुआ देख देवताओं ने भगवान विष्णु को श्रेष्ठ माना।
इस पर कुपित होकर शिवजी ने बाण सहित अपना धनुष विदेहदेश के राजर्षि देवरात (राजा जनक के पूर्वज) के हाथ में दे दिया था , जिसके माध्यम से राजा जनक तक वह धनुष पहुंचा था।
इस वैष्णव धनुष को भगवान विष्णु ने ऋचीक मुनि को धरोहर के रूप में दिया था , उनसे अपने पिता के माध्यम से वह धनुष मुझे (परशुराम जी को) प्राप्त हुआ था।
शिवजी के धनुष का नाम पिनाक एवं विष्णुजी के धनुष का नाम शार्ङ्ग था।
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