आध्यात्मिक आनन्द एवं ध्यान
आध्यात्मिक आनन्द एवं ध्यान
सुख बाह्य जगत से सम्बन्धित है। आनन्द आत्मा से सम्बन्धित अनुभूति है। पंच ज्ञानेन्द्रियों से मिलने वाले सुख को हम स्पर्श, स्वाद, ध्वनि, सुगन्ध और दृश्य के माध्यम से अनुभव करते हैं। यह सुख अधिक समय तक नहीं टिकता है। अस्थाई होता है।
मन से भी हमें सुख और दुःख की अनुभूति होती है। मन में सात्विक एवं सकारात्मक विचारों से सुख देने वाली भावनायें उत्पन्न होती हैं। नकारात्मक विचारों से दुःख देने वाली भावनाओं को जन्म मिलता है। मन से प्राप्त होने वाले सुख की अनुभूति पंच ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त होने वाले सुखों की अपेक्षा अधिक समय तक स्थिर रहती है। बुद्धि का कार्य निर्णय लेना है। सात्विक बुद्धि मन से मिलने वाले सुख की तुलना में उच्च स्तरीय सुख का अनुभव कराती है।
निःसन्देह! पंच ज्ञानेन्द्रियों, मन और बुद्धि द्वारा प्राप्त सुख का स्तर अधिक समय तक नहीं टिक पाता है। यह भी सत्य है कि इन्द्रियों से, मन से, बुद्धि से मिलने वाले सुख से मनुष्य को आत्मि शान्ति नहीं मिलती है। यह जीव को परमात्मा की ओर आकर्षित नहीं कर पाते हैं। इसलिए ऐसे सुखों को केवल जीवन यापन का साधन ही बनाने में बुद्धिमत्ता है। उन पर संयम रखना ही उचित है।
क्रमश:…….
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