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पाप कर्म से बचने के सरल उपाय

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आज के वैदिक विचार

पाप कर्म से बचने के सरल उपाय

वैदिक मान्यता के अनुसार विषयों का त्याग करने से इन्द्रियाँ पाप कर्म से निवृत्त हो जाती है। इसके लिए बुद्धि एक महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक भूमिका निभाती है। जब बुद्धि की समझ में आ जाता है कि पाप कर्म नहीं करना चाहिए, इसमें कुछ नहीं रखा है, तब बुद्धि स्वयं जीवात्मा ( मनुष्य) को पाप कर्म से दूर रखती है, उसे पाप कर्म से हटाती है। जीवात्मा समझ जाती है कि पाप कर्म हानिकारक है।

आइये! अपनी बुद्धि को निम्न तथ्य समझायें और पाप कर्म से बचें :

(1) इस सृष्टि को बनाने वाली एक अदृश्य शक्ति (परमात्मा) है। उसकी सृष्टि में पाप करके मनुष्य दंड से बच नहीं सकता।

(2) मनुष्य भोग पदार्थों के लिए पाप करता है। भोग पदार्थ ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था (पुण्य) और परिश्रम- दोनों के समन्वय से मिलते हैं अन्यथा नहीं। अत: ईश्वर पर अटूट विश्वास रखना चाहिए।

(3) यदि वर्तमान में उपलब्ध सुविधायें अपर्याप्त हैं तो इसके लिए पिछले पुण्य और वर्तमान परिश्रम दोनों जिम्मेदार हैं।

( 4 ) ईश्वर ने प्रथम सृष्टि को रचा और बाद में जीव-जन्तुओं को बनाया। वह जीवों के कर्मानुसार सबके पालन-पोषण की व्यवस्था करता है, फिर चिंता क्यों ?

(5) ईश्वर ने सृष्टि के निर्माण के साथ-साथ वेद का ज्ञान भी दिया है। वेदानुसार चलने में बुद्धिमत्ता है इसके विपरीत कार्य करने में हानि है- फिर वेदानुकूल चलने में परेशानी क्यों ?

(6) ईश्वर ने जीवों को पिछले जन्मों में किये गये कर्म के अनुसार योनि, आयु, भोग प्रदान किये हैं। इसके लिए प्रभु को धन्यवाद देना चाहिए- अगले कर्म अच्छे करने चाहिए।

(7) जो मनुष्य पाप कर्म द्वारा आराम का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उन को दंड अवश्य मिलेगा- वर्तमान में या अगले जन्म में।

(8) पाप कर्म का प्रभाव / दंड निःसन्देह हमारी भावी पीढ़ी पर भी पड़ता है। फिर पाप कर्म किसके लिए?

(9) प्रभु भक्ति और परिश्रम से पर्याप्त भोग पदार्थ मिल जाते हैं।

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