श्रीमद़् भागवत सिर्फ किताब, ग्रंथ नहीं बल्कि श्रीकृष्ण है: कृष्णचंद्र शास्त्री
श्रीमद़् भागवत सिर्फ किताब, ग्रंथ नहीं बल्कि श्रीकृष्ण है: कृष्णचंद्र शास्त्री
-श्याम प्रभु खाटू वाले का 36वां श्री श्याम बसंत महोत्सव में सुनाई कथा
प्रधान संपादक योगेश
गुरुग्राम। श्री खाटू श्याम प्रचार मंडल गुरुग्राम की ओर से श्री श्याम प्रभु खाटू वाले का 36वां श्री श्याम बसंत महोत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को वृंदावन से श्री कृष्णचन्द्र शास्त्री जी ने श्रीमद् भागवत कथा की। इस दौरान उन्होंने महात्मय मंगलाचरण शुकदेव जी के जन्म की कथा सुनाई। इस दौरान समस्त पदाकारियों, कार्यकारिणी सदस्यों व मंडल के सदस्यों ने पूजन विधि में भाग लिया।श्री कृष्ण शास्त्री जी ने कथा में श्रीमद् भागवत कथा के बारे में कहा कि श्रीमद् भागवत सिर्फ एक किताब, ग्रंथ नहीं है, यह श्री कृष्ण है। ग्रंथों का अवलोकन करने मात्र से भागवत को नहीं समझा जा सकता। भागवत को श्री कृष्ण जी की कृपा से समझा जा सकता है। श्री कृष्णचन्द्र शास्त्री जी ने कथा में शुकदेव जी के बारे में सुनाया कि-भागवत कथा सागर श्री शुकदेव को शुक महर्षि की उपाधि प्राप्त है। शुक को संस्कृत में तोता कहते हैं। शुकदेवजी ने अमरनाथ में तोते के रूप में जो अमरकथा सुनी थी, वह श्रीमद्भागवत कथा थी। जिसका प्रचार-प्रसार इन्होंने ही किया। शुकदेव व्यास ऋषि के पुत्र थे, जिन्होंने महाभारत एवं पुराणों की रचना की थी। कहते हैं कि उनका सर तोते का था। तोते की विशेषता है कि मनुष्य के सान्निध्य में वह मनुष्य की बोली सीख लेता है और फिर जो भी सुनता है, उसे हूबहू दोहरा सकता है।कथा वाचक श्री कृष्णचन्द्र शास्त्री जी ने आगे सुनाया कि प्राचीन काल में श्रुति-परंपरा प्रचलित थी। ग्रंथ रचे जाते थे, ज्ञान एवं अनुभव उनमें पिरोए जाते थे और उनकी शुद्धता बनाए रखने के लिए, मिलावट से बचाने के लिए और गलत हाथों में जाने से बचाने के उद्देश्य से, उन्हें कुछ चुने हुए शिष्यों को, मूल रूप में, अच्छी तरह से, तोते की तरह, रटा दिया जाता था। बाद में वे अपने शिष्यों को, इसी भांति, इसे हस्तांतरित करते थे। हजारों वर्षों तक ऋषियों का ज्ञान, इसी प्रकार सुरक्षित रहा और अविकल रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा। शुकदेव उसी परंपरागत के प्रतीक हैं, प्रतिनिधि हैं। उन्होंने अपने पिता से जो महाभारत की कथा सुनी, उसे अर्जुन के पौत्र एवं अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को सुनाया, ताकि उन्हें ज्ञान मिले, शक्ति मिले, साहस बढ़े और वे मृत्यु से भयभीत न हों। उनकी माता का नाम पिंजला बताया जाता है।कहा जाता है कि एक बार शिव, पार्वती को कोई अमर कथा सुना रहे थे। इसी बीच उन्हें नींद का झोंका आया और वे सो गईं। वहीं एक तोता भी बैठा, उस कथा को सुन रहा था। वह बीच में बोलने लगा। शिवजी ने उसे दंडित करने के लिए अपना त्रिशूल छोड़ा। तोता जान बचाता व्यास के आश्रम में पहुंचा और सूक्ष्म रूप धारण कर उनकी पत्नी के मुख में समा कर अंदर चला गया। वह वहीं डर कर, बारह वर्षों तक छुपा रहा। वहीं उसने वेद-पुराण सभी का ज्ञान सुना और याद कर लिया। बाद में कृष्ण के आश्वासन पर कि माया का उस पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, वह बाहर निकाला और व्यास का पुत्र कहलाया।
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