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श्री वीरेन्द्र मोहन जी 22 जुलाई पुण्य-तिथि.

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श्री वीरेन्द्र मोहन जी 22 जुलाई पुण्य-तिथि.

वीरेन्द्र जी का जन्म 1963 में ग्राम खिजराबाद (जिला यमुना नगर, हरियाणा) में श्री ज्ञानचंद सिंगला एवं श्रीमती शीलादेवी के घर में हुआ था। उनके पिताजी की छोटी सी हलवाई की दुकान थी। बड़े भाई सुरेन्द्र जी ने चिकित्सा की सामान्य पढ़ाई पूर्ण कर गांव में ही दुकान खोल जी। 1979 में कक्षा दस उत्तीर्ण कर वीरेन्द्र जी भी गांव में ही साइकिल मरम्मत का काम करने लगे।

वीरेन्द्र जी के पिताजी भी पुराने स्वयंसेवक थे; पर 1948 के प्रतिबंध के बाद उस क्षेत्र में काम ढीला पड़ गया। 1977 में आपातकाल की समाप्ति पर फिर काम में तेजी आयी। सुरेन्द्र जी ने खंड कार्यवाह तथा वीरेन्द्र जी ने गांव की शाखा की जिम्मेदारी संभाली। वीरेन्द्र जी अपनी शाखा के साथ ही शाखा विस्तार के लिए आसपास के गांवों में जाने को भी सदा तत्पर रहते थे। मधुर आवाज के धनी होने के कारण वे संघ के गीत बड़े मनोयोग से गाते थे।

एक बार वे तत्कालीन जिला प्रचारक श्री मनोहर जी के साथ एक गांव की शाखा से लौट रहे थे। भूड़कलां गांव में बिजली विभाग का काम चल रहा था। अतः सड़क और उसके आसपास सामान बिखरा हुआ था। इसी बीच सामने से आते ट्रक की रोशनी से मनोहर जी की आंखें चौंधिया गयीं। उन्होंने तेजी से मोटर साइकिल को नीचे उतार लिया। वस्तुतः यदि एक क्षण की भी देर हो जाती, तो आमने-सामने की टक्कर होना निश्चित थी।

इस घटना से वीरेन्द्र जी अचानक बहुत गंभीर हो गये। रात में उन्होंने मनोहर जी से कहा कि शायद मुझे ईश्वर ने इसीलिए बचाया है कि मैं शेष जीवन संघ का ही काम करूं। धीरे-धीरे उनके मन का यह विचार क्रमशः दृढ़ संकल्प में बदल गया। अब उन्होंने छोटे भाई नरेन्द्र को भी दुकान पर बैठाना प्रारम्भ कर दिया और अपना अधिकाधिक समय संघ कार्य में लगाने लगे।

क्रमशः प्रथम और द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण लेकर वे 1986-87 में प्रचारक बने। अपनी दुकान उन्होंने पूरी तरह छोटे भाई को सौंप दी। परिवार में संघ के प्रति समर्थन का भाव था। अतः उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं की। सर्वप्रथम उन्हें घरोंडा तहसील का काम दिया गया। वीरेन्द्र जी बहुत परिश्रमी स्वभाव के थे। नये क्षेत्र में जाकर लोगों से मिलने और शाखा खोलने के प्रति उनके मन में बहुत उत्साह रहता था। वे दो वर्ष तक यहां तहसील प्रचारक रहे। इस दौरान अनेक नये क्षेत्रों में शाखा का विस्तार हुआ। इसके बाद उन्हें सोनीपत और फिर करनाल जिला प्रचारक की जिम्मेदारी दी गयी।

करनाल जिले में इन्द्री नामक एक स्थान है। वहां पर खंड की बैठक के बाद वे मोटर साइकिल से रात में ही लौट रहे थे। एक-दो दिन पूर्व ही भारी आंधी चली थी। उसके कारण एक झुका हुआ पेड़ उनके सामने आ गया। यह सब इतना अचानक हुआ कि वीरेन्द्र जी संभल नहीं सके और उस पेड़ से उनका सिर टकरा गया। तेज गति में होने के कारण उन्हें काफी चोट लगी।

सड़क पर आ-जा रहे अन्य लोगों ने किसी तरह उन्हें करनाल पहुंचाया। वहां से उन्हें दिल्ली के पंत अस्पताल में भर्ती कराया गया; सिर में गंभीर चोट के कारण उनकी बेहोशी क्रमशः सघन होती गयी। 20 दिन तक चिकित्सकों ने भरपूर प्रयास किया; पर उनकी दवाइयां और शुभचिंतकों की प्रार्थनाएं सफल नहीं हो सकीं और 22 जुलाई 1997 को उनका प्राणांत हो गया।

उनकी स्मृति में उनके गांव खिजराबाद (प्रताप नगर) में श्री वीरेन्द्र मोहन गीता मंदिर का निर्माण किया गया है। जिसमें 400 बच्चे पढ़ते हैं

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