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Rajni

श्री कृष्ण लीलामृत

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श्री कृष्ण लीलामृत
जब भगवान श्री कृष्ण द्वारिका के राजा थे. उस समय की बात है। भगवान श्री कृष्ण से मिलने अनेक देवता आया करते थे।
एक बार विधाता ब्रह्मा जी उनसे मिलने आए, और दरबान तुरंत ब्रह्मा जी के आगमन को भगवान श्री कृष्ण को सूचित किया। तब श्री भगवान ने दरबान, से पूछा क्या तुम्हे पता है वो जो ब्रह्मा जी है वो कहा से आए है उनका परिचय क्या है ?? दरबान लौट कर विधाता ब्रह्मा जी से पूछा की हे ब्रह्मा जी आप कौन से वाले ब्रह्मा जी है। भगवान ने पूछा है?

कौन से ब्रह्मा ? विधाता ब्रह्मा आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कहा कि दरबान तुम `कृपया *भगवान श्रीकृष्ण को सूचित *करो कि मैं चतुर्मुख ब्रह्मा ,
संतकुमारो का पिता ब्रह्मा ,
और श्री भगवान की ही आज्ञा से इस सृष्टि रचना करने वाला ब्रह्मा हूँ ।

दरबान तब ब्रह्मा जी के विवरण को श्री भगवान को सुनाया और प्रभु श्री कृष्ण ने उन्हें आदर सहित प्रवेश करने की अनुमति दे दी, दरबान जब ब्रह्मा जी को ले जा रहा था तो परम पिता ब्रम्हा जी के मस्तिष्क में एक सवाल घूमने लगा की आखिर भगवान ने ये पूछा ही क्यों कि कौन से ब्रह्म जी ? ब्रह्मा तो एक ही है,
लेकिन अगर उन्होंने पूछा है तो जरूर कोई कारण होगा।
अब ब्रह्माजी ने परम भगवान कृष्ण को देखा, वो उनके कमल चरणों में दण्डवत प्रणाम किया और स्तुति और पूजन किया।भगवान श्री कृष्ण ने भी उपयुक्त शब्दों के साथ उनको सम्मानित किया।
भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कुशलक्षेम पूछा,और उनके आने का कारण पूछा, तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने तुरंत जवाब दिया हे नाथ मैं आपसे अपने आने का कारण बाद में बताऊंगा पहले आप मेरे मन में एक संदेह है ,आप कृपया उसे नष्ट करिए।
सभी जीवों के हृदय में परमात्मा रूप से रहने वाले अंतर्यामी श्री भगवान मुस्कुराते हुए ब्रह्मा जी से बोले कैसा संदेह है ???
ब्रह्मा जी बोले स्वामी जब हम आपसे मिलने आए तो द्वारपाल का ये सन्देश की आप कौन से वाले ब्रह्मा जी हो ???
क्या कोई अन्य ब्रह्मा इस ब्रह्मांड के भीतर मेरे अलावा भी है ?
यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण मुस्कराए और तुरंत ध्यान किया। असीमित संख्या में वहां अनेको ब्रह्मा उपस्थित हो गए। कुछ दस सिर, कुछ बीस, कुछ एक सौ, कुछ एक हजार, कुछ दस हजार, कुछ एक सौ हजार, कुछ दस लाख और कई दूसरों के एक सौ करोड़ सिर भी है।
कोई कोई ब्रह्मा तो थे जिनके चेहरे की संख्या गिन ही नहीं सकते है। फिर वहां शिव जी, और देवराज इन्द्र भी उपस्थित हो गए। जब इस ब्रह्मांड के विधाता ब्रह्मा ने ये सब देखा, तो वह बहुत घबराए उनको लगा जैसे अनगिनत हाथियों के बीच में मैं एक खरगोश।

सभी प्रकट ब्रह्मा भगवान श्री कृष्ण के कमल चरणों में अपनी श्रद्धांजलि दिए अनेको विधि से उनकी स्तुति की , चरण कमल वंदना किये। अब ये समझ में आ गया की कोई भी भगवान श्री कृष्ण की शक्ति का अनुमान नहीं लगा सकता स्वयं ब्रह्मा जी भी नहीं।
हाथ जोड़कर, सभी ब्रह्मा बोले हे प्रभु, हे कमलनयन हे पुराण पुरुष हमारे लिए क्या आज्ञा है यह हम सब के लिए महान भाग्य, है कि आप ने अपने सेवको को याद किया है। आपके श्री चरण कमल का दर्शन करके हम सेवक बहुत आनन्दित है। हे नाथ आज्ञा करे। तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने कहा, मैं आप सभी को एक साथ देखना चाहता था, इसलिए आप सभी का आह्वान किया है। आप सभी को खुश होना चाहिए। अब इस ग्रह पे राक्षसों का डर नहीं रहा और समय समय पर बाकी लोको में मैं प्रकट होकर अधर्मियों का विनाश और सज्जनों की रक्षा करता रहूँगा । अब आप सभी अपने लोको को प्रस्थान करे। भगवान कृष्ण ने सभी ब्रह्मा को विदाई दी.......सभी ब्रह्मा उनको दण्डवत प्रणाम करके वे सब अपने-अपने लोको को लौट गए। अब इस लोक के ब्रह्मा जी अत्यन्त चकित होकर भगवान श्री कृष्ण से बोले, हे कृष्ण आपको वो ही जान सकता है जिसे आप स्वयं जनावों प्रभु आपका न आदि है ना अन्त। और जोलोग ये कहते रहे हैं कि , हमें श्री कृष्ण के बारे में सब कुछ पता है। “उन्हें भी कुछ नहीं पता हैं। वास्तव में आपका आदि अंत कोई जान नहीं सकता।
हे मेरे प्रभु,मेरे अपराध क्षमा करें।
श्री भगवान ने ब्रह्म जी के ऊपर कृपा की और बोले, ब्रह्मा जी ये ब्रह्माण्ड बाकी सब ब्रह्मांडों में सबसे छोटा है। इसलिए आप के केवल चार सिर है। ब्रह्मांडों में से कुछ बहुत विशाल और असीमित हैं। और ब्रह्मांड के आकार के अनुसार, ही उन ब्रह्मा के शरीर पर उतने सारे सिर हैं। इस तरह असंख्य ब्रह्मांड और ब्रह्मा है।

ओम नमो भगवते वासुदेवाय
( श्री चैतन्य चरितामृत अध्याय 21 से )

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे

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