प्रयागराज के अधिष्ठाता श्रीहरि विष्णु स्वयं: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द
प्रयागराज के अधिष्ठाता श्रीहरि विष्णु स्वयं: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द
संगमनगरी, कुम्भनगरी, तम्बूनगरी आदि नामों से भी पुकारा जाता है
वेदों में प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया
ऋषि, मु नि, तपस्वी, साधु-संत यहां कल्पवास साधना करते हैं
फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। माघ माह में जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान-ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है। अनेक पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया है। तीर्थराज प्रयागराज में प्रवास के दौरान प्रवचन सत्र में त्रिवेणी मार्ग स्थित अपने शिविर के पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा तीर्थाटन सहित स्नान का महत्व बताते मार्ग दर्शन करते यह बात कही।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द महाराज के द्वारा जारी व्याख्यान के माध्यम से कहा है कि प्रयाग तीर्थों के नायक हैं, तीर्थों के राजा हैं, और मोक्ष देने वाली सातों पुरियां उनकी रानियां हैं। इनमें पटरानी का गौरव काशी को प्राप्त है। काशी तीर्थराज को सबसे ज्यादा प्रिय है। प्रयाग ने उन्हें मुक्ति देने का अबाध और अनन्त अधिकार सौंप रखा है। कहा गया है- “मुक्तिदाने नियुक्ता। वे मुक्ति देने के लिए नियुक्त की गई हैं।
जगद्गुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय ऋषि धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान-ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है। अनेक पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया है। इस नगरी को विभिन्न नामों से जाना जाता हैं । संगमनगरी, कुम्भनगरी, तम्बूनगरी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस पवित्र नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्रीहरि विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ अपने वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें द्वादश माधव के नाम से जाना जाता है। भारतीय सनातन संस्कृति में प्रयागराज में त्रिवेणी में स्नान, ध्यान, सूर्य अर्ध्य, दान, हवन-यज्ञ, अनुष्ठान का बहुत ही आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। यथा सामर्थ व्यक्ति को जीवन में एक बार अवश्य ही प्रयागराज पहुंच त्रिवेणी में स्नान कर पुण्य अर्जित करना चाहिये। जो व्यक्ति किसी कारण से नहीं पहुंच पाते उन्हें प्रयागराज का तीर्थाटन और त्रिवेणी में स्नान करने वालों का आशिर्वाद प्राप्त करना चाहिये।
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