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सन्त समाज को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

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सन्त समाज को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

आज भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में उथल-पुथल मची हुई

सनातन मूल्यों एवं परम्पराओं के कमजोर होने का ही परिणाम

आयोजन का प्रयोजन ही विश्व मानवता के कल्याण के लिये होता

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम।
 सनातन मूल्यों एवं परम्पराओं के कमजोर होने का ही परिणाम है कि आज भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में उथल-पुथल मची हुई है । यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने राजस्थान के बाड़मेर जनपदान्तर्गत तिलवाड़ा में आयोजित राष्ट्रीय पशु मेला एवं सन्त सम्मेलन में अपना आशीर्वचन सहित मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कही। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन का प्रयोजन ही विश्व मानवता के कल्याण के लिये होता है। जहाँ सन्त समाज एकत्र होकर अपने चिन्तन, मनन एवं् मन्थन के द्वारा समाज को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा मीडिया के नाम जारी वक्तव्य के माध्यम से यह जानकारी सांझा की गई है।

शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि रावल मल्लीनाथ द्वारा प्रारम्भ यह आयोजन विगत 700 वर्षों पश्चात् रावल किशन सिंह जी द्वारा पुनः प्रारम्भ करने का प्रयास निश्चित रूप से सफल होगा। अब तो यहाँ श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहन्त नारायण गिरि महाराज द्वारा धर्मध्वजा भी स्थापित की जा चुकी है। इसलिए यहाँ प्रति वर्ष आयोजित होने वाला सन्तों का महाकुम्भ विश्व को एक सकारात्मक मार्ग प्रशस्त करने के प्रयास को सफलता प्रदान करेगा । रावल किशन सिंह , उनके सुपुत्र कुँवर हरीश चन्द्र सिंह के सद्प्रयासों को पूर्ण करने के लिये बाबा विश्वनाथ, माता अन्नपूर्णा एवम् दण्डाध्यक्ष बाबा काल भैरव शक्ति एवम् सामर्थ्य प्रदान करें । इस अवसर पर रावल श्री किशन सिंह , श्री भाव गिरि महाराज, ब्रह्मर्षि तुलछाराम महाराज, श्रीओमकार भारती महाराज, जिला जज खगेन्द्र कुमार , कुँवर हरीश चन्द्र सिंह आदि उपस्थित थे। सनातन धर्म, संस्कृति एवम् परम्परा के प्रखर एवम् मुखर प्रवक्ता होने के कारण हमेशा देशद्रोहियों व विधर्मी सनातनद्रोहियों के निशाने पर रहने वाले शंकराचार्य महाराज को सनातनद्रोहियों की विशेष धमकियों का संज्ञान लेते हुए राजस्थान की सरकार द्वारा समुचित सुरक्षा ब्यस्था सुनिश्चित की गई।

इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक
हिन्दुत्व को बचाने के लिये इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है नही तो कालांतर मे अर्थ का अनर्थ हो सकता है। शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने राजस्थान के इतिहास का वर्णन करते बताया कि मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है , जिसे घुड़ला पर्व कहते है । जिसमें कुँवारी लडकियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर उसके अंदर दीपक जलाकर गांव और मौहल्ले में घूमती है और घर घर घुड़लो जैसा गीत गाती है । सवाल यह है कि … यह घुड़ला क्या है ? कोई नहीं जानता है , घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी । यह भी ऐसा ही घटिया ओर घातक षड्यंत्र है । जैसा की अकबर को महान बोल दिया गया। दरअसल हुआ ये था की घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था और अत्याचारऔर पैशाचिकता मे भी अकबर जैसा ही गंदा पिशाच था । जोधपुर राजस्थान के पीपाड़ उपखंड  के पास एक गांव है ’कोसाणा !’

उस गांव में लगभग 200 कुंवारी कन्याये  गणगोर पर्व की पूजा कर रही थी, वे व्रत में थी । उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियां कहते है ।  गाँव के बाहर मौजूद तालाब पर पूजन करने के लिये सभी बच्चियाँ गयी हुई थी । उधर से ही घुडला खान मुसलमान सरदार अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था,उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी । उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया । जिस भी गाँव वाले ने विरोध  किया, उसको उसने मौत के घाट उतार दिया। इसकी सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह राठौड़ जी को दी।  राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय मे ही घुडला खान को रोक लिया। घुडला खान का चेहरा पीला पड़ गया,  उसने सातल सिंह जी की वीरता के बारे मे सुन रखा था। उसने अपने आपको संयत करते हुये कहा, राव तुम मुझे नही दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो, इसका ख़ामियाज़ा तुम्हें और  जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है ?

घुडला खान का सिर धड़ से अलग
राव सातल सिंह बोले , पापी दुष्ट ये तो बाद की बात है पर अभी तो में तुझे तेरे इस गंदे काम का ख़ामियाज़ा भुगता देता हूँ । राजपुतो की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था , संख्या मे अधिक मुग़ल सेना के पांव उखड़ गये , भागती मुग़ल सेना का पीछा कर ख़ात्मा कर दिया गया। राव सातल सिंह ने तलवार के भरपुर वार से घुडला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया । राव सातल सिंह ने सभी बच्चियों को मुक्त करवा उनकी सतीत्व की रक्षा की । इस युद्ध मे वीर सातल सिंह  अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुये । उसी गाँव के तालाब पर सातल सिंह  का अंतिम संस्कार किया गया। वहाँ मौजूद सातल सिंह की समाधि उनकी वीरता ओर त्याग की गाथा सुना रही है।

इतिहास से जुडो और सत्य की पूजा करो
गांव वालों ने बच्चियों को उस दुष्ट घुडला खान का सिर सोंप दिया । बच्चियो ने घुडला खान के सिर को घड़े मे रख कर उस घड़े मे जितने घाव घुडला खान के शरीर पर हुये उतने छेद किये और फिर पुरे गाँव मे घुमाया और हर घर मे रोशनी की गयी । यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी । जिसके बारे में अधिकाँश लोग अनजान है । लोग हिन्दु राव सातल सिंह जी को तो भूल गए और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये। शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द ने कहा कि इतिहास से जुडो और सत्य की पूजा करो और हर भारतीय को इस बारे में बतायें । सातल सिंह  को याद करो नहीं तो हिन्दुस्तान के ये तथाकथित गद्दार इतिहासकार उस घुड़ला खान को देवता बनाने का कुत्सित प्रयास करते रहेंगे । सभी अपने- अपने परिचितों को,    इस शर्मनाक घटना की सच्चाई से अवगत कराये।

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