शहीद-ए-आजम भगत सिंह हंसते-हंसते फांसी पर चढे उनकी याद में मुस्कुराते हुए ब्लड देकर श्रद्धांजलि दी – सूर्य देव यादव
शहीद-ए-आजम भगत सिंह हंसते-हंसते फांसी पर चढे उनकी याद में मुस्कुराते हुए ब्लड देकर श्रद्धांजलि दी – सूर्य देव यादव
प्रधान संपादक योगेश
गुरुग्राम। शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव इन तीनों वीर सपूतों ने अल्पायु में ही आजादी के खातिर हंसते-हंसते फांसी पर चढ कर बलिदान दिया था। आज पूरे देश में शहीदे आजम भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के शहीदी दिवस पर ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन किया गया। इसी क्रम में सचिव श्याम सुंदर के कुशल एवं प्रभावी नेतृत्व में रेड क्रॉस सोसायटी गुरुग्राम द्वारा भी ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित किया गया। इसी कैंप में पहुकर शहीदी दिवस पर नखरौला निवासी सूर्य देव यादव पुत्र गुरु देव ने भारत माता के तीनों वीर सपूतों की याद में मुस्कुराते हुए ब्लड देकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी। सूर्य देव ने बताया कि शहीद भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने के लिए लोगों को बढ़-चढ़कर ब्लड डोनेट करना चाहिए जिससे असहाय गरीब व्यक्तियों जो स्वयं ब्लड खरीदने में असमर्थ हैं उनको सरकारी अस्पतालों में फ्री ब्लड उपलब्ध कराया जा सके। सूर्य देव यादव ने आगे बताया कि ब्लड बैंक की तरफ से ड्यूटी पर तैनात सरोज आर्या व योजना द्वारा उन्हें इतने अच्छे तरीके से अटेंड किया गया कि उन्हें ब्लड देने के बाद बहुत अच्छा महसूस हुआ है और अब उनका मन बार बार ब्लड देने को करेगा। सूर्य देव यादव ने जन संदेश दिया कि रक्तदान करके देखो अच्छा लगता है। वहीं सरोज आर्या व योजना ने बताया कि एक बार के रक्तदान से एक से अधिक जीवन बचाए जा सकते हैं। शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के नाम से तो आज देश का बच्चा-बच्चा परिचित है। लेकिन पाठ्यपुस्तकों से हमने सिर्फ यह ही जाना है कि अल्पायु में ही भारत माता के इन तीनों वीर सपूतों ने आजादी के खातिर बलिदान दिया था। भगत सिंह अपने जीवन में क्रांतिकारी होने के साथ ही एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। सुखदेव भगतसिंह से मिलने से पहले शाम को गली- मोहल्ले में खेलने वाले वे बच्चे जिन्हें सब अस्पृश्य कहते थे, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कालेज में प्रवेश लिया। यहां पर सुखदेव की भगत सिंह से भेंट हुई। दोनों की विचारधारा बिल्कुल एक सी थी इसलिए जल्द ही दोनों के बीच बहुत गहरी दोस्ती हो गई। दोनों अक्सर देश की तत्कालीन समस्याओं पर लंबी-लंबी वार्तालाप किया करते थे। राजगुरु के बारे में कहा जाता है कि वे एक बहुत अच्छे निशानेबाज हुआ करते थे। उन्हें कोई भी राजगुरु के नाम से नहीं जानता था।
राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। तीनों में थे अलग-अलग गुण फिर भी अंतिम सांस तक तीनों मित्र जी भर के गले लगे। उन्होंने मरते दम तक पेश की थी दोस्ती की मिसाल। 23 मार्च 1931 को जब भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जा रही थी तो जेलर ने उनसे उनकी अंतिम इच्छा पूछी थी। तब भगत सिंह ने अपनी अंतिम इच्छा जाहिर कर दोस्ती की अलग ही मिसाल पेश की। उन्होंने जेलर से कहा कि उन तीनों के हाथ खोल दिए जाए ताकि वे गले मिल सकें। हाथ खोलने पर तीनों मित्र जी भर के गले लगे और उसके बाद हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए। हम भारत माता के तीनों वीर सपूतों को शत शत नमन।
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