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जैसलमेर में गिद्धों की सातवीं प्रजाति मिली

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जैसलमेर में गिद्धों की सातवीं प्रजाति मिली:हैजा के जीवाणुओं को नष्ट कर सकता है सिनेरियस वल्चर का झुंड

जैसलमेर
जैसलमेर। धोलिया गांव के जंगल में सिनेरियस वल्चर (काला गिद्द)।
जैसलमेर के जंगलों में गिद्धों की 6 प्रजातियां मौजूद है और प्रवास करके हर साल जैसलमेर आती रहती हैं। अन धोलिया गांव के जंगलों में गिद्धों की सातवीं प्रजाति सिनेरियस वल्चर भी झुंड में नजर आया है। हिमालय व मध्य एशिया से प्रवास पर भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों में आने वाला काले रंग के गिद्द सिनेरियस वल्चर ने धोलिया गांव के पास जंगलों में डेरा डाला है। भोजन की तलाश में ये गिद्द यहां मंडराते नजर आए हैं। काले रंग के गिद्धों के आने से क्षेत्र के वन्यजीव प्रेमियों ने खुशी जताई है। वन्य जीव प्रेमियों का कहना है कि जैसलमेर कि जलवायु में लगातार दुर्लभ पक्षी आ रहे हैं। ये पर्यावरण के लिए सुखद खबर है।

धोलिया गांव में झुंड के साथ सिनेरियस प्रजाति के गिद्द।
धोलिया गांव में झुंड के साथ सिनेरियस प्रजाति के गिद्द।
वन्यजीव प्रेमी राधेश्याम पेमानी ने बताया कि जैसलमेर के वन्य जीव बाहुल्य इलाके लाठी के क्षेत्र में धोलिया आदि गांवों के जंगलों में करीब 6 प्रजाति के गिद्द पहले से हैं। सिनेरियस प्रजाति के ये गिद्ध दुर्लभ प्रजातियों में से एक है। इनके नजर आने से क्षेत्र में गिद्धों की प्रजातियों की संख्या बढ़कर अब सात हो गई है। उन्होंने बताया कि व्हाइट बैक्ड वल्चर, इंडियन वल्चर, रेड हेडेड वल्चर व इजिप्सन वल्चर क्षेत्र में स्थायी रूप से डेरा डाले हुए हैं। हिमालियन व अन्य वल्चर शीत काल के दौरान यहां प्रवास पर आते हैं। अब काले रंग के सिनेरियस वल्चर के आने से वन्य जीव प्रेमी व वन विभाग के अधिकारियों में खुशी नजर आ रही हैं।

गिद्धों के लिए विकसित हो रहा इलाका

राधेश्याम पेमानी ने बताया कि धोलिया गांव में गिद्धों की सातवीं प्रजाति के मिलने से ये क्षेत्र प्राकृतिक रूप से गिद्धों के लिए विकसित होता नजर आ रहा है। काला गिद्द मंगोलिया व मध्य एशिया में प्रजनन करता है। भारत में सिनेरियस को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के शिड्यूल चार में संरक्षण दिया गया है। उन्होंने बताया कि भारत में गिद्धों की 7 प्रजातियां हैं, लेकिन ज्यादातर प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसलिए भारत सरकार की ओर से गिद्धों के संरक्षण के उद्देश्य से बीकानेर के पास जोरविड गिद्द अभयारण्य भी स्थापित किया गया है।

गिद्धों के पेट का अम्ल इतना शक्तिशाली होता है कि वे हैजा जैसे जीवाणुओं को भी नष्ट कर सकता है।
गिद्धों के पेट का अम्ल इतना शक्तिशाली होता है कि वे हैजा जैसे जीवाणुओं को भी नष्ट कर सकता है।
जैसलमेर में भी विकसित हो गिद्ध अभयारण्य

राधेश्याम पेमानी ने बताया कि जैसलमेर जिले में संभवतया हर दुर्लभ पक्षी प्रवास करता है, उनमें से दुर्लभ प्रजाति के गिद्द भी शामिल है। इन दिनों गिद्धों के लिए इलाके समाप्त हो रहे हैं और ये सभी प्रजातियां खत्म हो रही है। ऐसे में जैसलमेर गिद्धों के प्रवास के लिए सबसे सुरक्षित और संरक्षित जगह बनती जा रही है। जैसलमेर के पर्यावरण के लिहाज से भी ये पक्षी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में जैसलमेर जिले में भी गिद्द अभयारण्य बनाने की मांग वन्यजीव प्रेमियों द्वारा की जा रही है।

सिनेरियस वल्चर (काला गिद्ध)

सिनेरियस वल्चर प्रवासी गिद्द होते हैं और इनका आकार भारत के गिद्धों की तुलना में बड़ा होता है। इनकी ऊंचाई 1 मीटर तक होती है तथा वजन 15 किलो होता है।
अन्य गिद्धों की तरह ये भी मृत जानवरों का सेवन करते हैं।
गिद्ध को लेकर हुए रिसर्च से उनके हीमोग्लोबिन व दिल की संरचना से संबंधित कई ऐसी विशेषताओं के बारे में पता है, जिससे वे असाधारण वातावरण में भी जीवित रह सकते हैं।
ये गिद्ध भोजन की तलाश में एक बड़े इलाके पर नजर डालने के लिए ऊंची उड़ान भरते हैं।
इन गिद्धों के पेट का अम्ल इतना शक्तिशाली होता है कि वे हैजा जैसे जीवाणुओं को भी नष्ट कर सकता है। इसलिए ये गिद्द बीमारियों को फैलने से रोकने में मददगार साबित होते हैं।

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