तुलसी जयन्ती पर संगोष्ठी गोस्वामी ने उस समय सनातन धर्म को मजबूती दी, जब देश गुलाम था: शंकराचार्य शंकराचार्य
तुलसी जयन्ती पर संगोष्ठी गोस्वामी ने उस समय सनातन धर्म को मजबूती दी, जब देश गुलाम था: शंकराचार्य शंकराचार्य गोस्वामी आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार गोस्वामी तुलसीदास ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, सर्वाधिक लोकप्रिय “श्रीरामचरितमानस यदि ब्यक्ति श्रीरामचरितमानस का गहराई से अध्ययन करे, तो जीवन सफल हो जायेगा ।
फतह सिंह उजाला गुरुग्राम 24 अगस्त । तुलसी जयन्ती के पावन अवसर पर श्री काशी सुमेरु पीठ-डुमराँव बाग कालोनी-अस्सी, वाराणसी में श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज की अध्यक्षता में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । कार्यक्रम का शुभारम्भ पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण करके किया गया । यह जानकारी शंकराचार्य के निजी सचिवस्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा मीडिया से सांझा की गई है । इस अवसर पर आयोजित विद्वत् संगोष्ठी में पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के महान सन्त कवि थे । रामचरितमानस इनका गौरव ग्रन्थ है । गोस्वामी जी को आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिसमें सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ “श्रीरामचरितमानस ” है । दुनिया भर में रहने वाले सनातनधर्मियों के घर में अन्य धर्म ग्रन्थ हों या न हों, परन्तु शायद ही कोई सनातनी परिवार होगा जिसके घर में “श्रीरामचरितमानस ” न हो ? किसी सनातनी ब्यक्ति को यह सम्भव है कि उसे अन्य धर्म ग्रन्थ के एक भी श्लोक या मन्त्र कंठस्थ न हो, लेकिन वह पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, उसे श्रीरामचरितमानस की 2-4 चौपाई जरूर कंठस्थ होंगी । गोस्वामी जी ने उस समय सनातन धर्म को मजबूती प्रदान की, जब देश गुलाम था, और सनातन धर्म को समाप्त करने का चतुर्दिक प्रयास चल रहा था । गोस्वामी जी को श्री हनुमान जी महाराज की कृपा प्राप्त थी, उन्ही की कृपा से गोस्वामी जी को भगवान श्रीराम जी का दर्शन प्राप्त हुआ, और श्री हनुमान जी महाराज की आज्ञा लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े । उन दिनों प्रयाग में माघ मेला लगा हुआ था । वे वहाँ कुछ दिन के लिये ठहर गये । पर्व के छः दिन बाद एक वटवृक्ष के नीचे उन्हें भारद्वाज और याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए । वहाँ उस समय वही कथा हो रही थी, जो उन्होने सूकरक्षेत्र में अपने गुरु से सुनी थी । माघ मेला समाप्त होते ही तुलसीदास जी प्रयाग से वापस काशी आ गये और वहाँ के प्रह्लादघाट पर एक ब्राह्मण के घर निवास किया । वहीं रहते हुए उनके अन्दर कवित्व-शक्ति का प्रस्फुरण हुआ और वे संस्कृत में पद्य-रचना करने लगे । परन्तु दिन में वे जितने पद्य रचते, रात्रि में वे सब लुप्त हो जाते । यह घटना रोज घटती । आठवें दिन तुलसीदास जी को स्वप्न हुआ । भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो । तुलसीदास जी की नींद उचट गयी । वे उठकर बैठ गये । उसी समय भगवान शिव और पार्वती उनके सामने प्रकट हुए । तुलसीदास जी ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया । इस पर प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा- “तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिन्दी में काव्य-रचना करो । मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी ।” इतना कहकर गौरीशंकर अन्तर्धान हो गये। स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती ने कहा कि गोस्वामी जी महाराज की विनम्रता अद्भुत थी । श्रीरामचरितमानस जैसा जीवनोपयोगी ग्रन्थ की रचना करने वाले गोस्वामी जी प्रारम्भ में ही कहते हैं कि-
“कवि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ ।
मति अनुरूप राम गुन गावउँ ।।”
इससे हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है, कि ब्यक्ति के अन्दर से जब कर्ताभाव निकल जाता है, तभी वह कोई महान कार्य करने में सफल हो सफलता प्राप्त कर सकता है । श्रीमद्भागवत महापुराण एवम् श्रीराम कथा के मर्मज्ञ डा प्रभाकर त्रिपाठी ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने सभी धर्म ग्रन्थों के सार तत्व को श्रीरामचरितमानस के माध्यम से सरल भाषा में उपलब्ध कर दिया है । यदि ब्यक्ति श्रीरामचरितमानस का गहराई से अध्ययन करे, तो उसका जीवन मंगलमय एवम् निश्चित रूप से सफल हो जायेगा । सांसारिक सम्बन्धों को कैसे निभाना चाहिए, और घर, परिवार, समाज, मानवता एवम् राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य और दायित्व क्या है ? और आदर्श तथा धर्माधारित आचरण का अनुपालन का सही मार्ग हमें श्रीरामचरितमानस से ही मिल सकता है । पण्डित शारदा प्रसाद देव पाण्डेय रामायण-मर्मज्ञ तथा अन्य विद्वानों ने भी गोस्वामी तुलसीदास महाराज के व्यक्तित्व एवम् कृतित्व पर प्रकाश डाला और अपने विचार रखे । कार्यक्रम में स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ, स्वामी दुर्गेशानन्द तीर्थ, स्वामी महादेव आश्रम, स्वामी प्रकृष्टानन्द सरस्वती, विनोद त्रिपाठी, नरेन्द्रानन्द सहित साधु-सन्यासी एवम् विद्वान उपस्थित थे । कार्यक्रम में महन्त स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ, महन्त स्वामी श्रवणदेव आश्रम एवम् स्वामी श्यामदेव आश्रम को शाल एवम् भगवान श्री काशी विश्वनाथ जी का चित्र प्रदान कर “तुलसी रत्न ” की उपाधि से सम्मानित किया गया ।
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