देश में अब राजद्रोह का केस दर्ज नहीं होगा.
देश में अब राजद्रोह का केस दर्ज नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजद्रोह के कानून के तहत फिलहाल समीक्षा होने तक देश में नए केस दर्ज करने पर रोक लगा दी है।. सर्वोच्च अदालत में राजद्रोह से संबंधित कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है। बात करे तो पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मसले पर 24 घंटे के अंदर जवाब मांगा था। इस बीच, सवाल यह भी खड़े किए जा रहे हैं कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए क्या है, जिसके जरिए देश में राजद्रोह का मामला दर्ज होता है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बुधवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए स्पष्ट किया है कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है.। सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की एक पीठ को बताया कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था.
केंद्र ने जमानत याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने का दिया सुझाव
सुनवाई के दौरान केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि राजद्रोह के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती हैं । सरकार इन मामलों की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि आखिर लंबित मामले न्यायिक मंच के सामने हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है।
लॉर्ड मैकाले द्वारा तैयार धारा 124ए में नहीं है राजद्रोह का जिक्र
इस बीच, सवाल यह भी पैदा होता है कि जिसे हम राजद्रोह का कानून मानते हैं, क्या वह संसद द्वारा बनाया गया कानून नहीं है। सवाल यह भी पैदा होता है कि राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने के लिए जिस धारा 124 ए का इस्तेमाल किया जाता है, वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का एक हिस्सा है, जिसके तहत अन्य आपराधिक मामले भी दर्ज किए जाते हैं? बताया जाता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को वर्ष 1870 में भारत में अंग्रेजी शिक्षा लाने वाले लॉर्ड मैकाले द्वारा तैयार की गई थी। लॉर्ड मैकाले द्वारा तैयार की गई आईपीसी की धारा 124ए में कहीं भी राजद्रोह का जिक्र नहीं किया गया है.
क्या है राजद्रोह
राजद्रोह को देशद्रोह या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के रूप में लिया जाता है। लेकिन कानून की नजर में यह सरकार विरोधी गतिविधियों के खिलाफ अधिनियम है। यह राष्ट्र या राष्ट्र विरोधी अपराध नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि कोई शब्दों के द्वारा लिखित, मौखिक, सांकेतिक या प्रदर्शन या अन्य गतिविधियों के लिए घृणा फैलाता है, लोगों को उत्तेजित करता है या भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने का प्रयास करता है, तो उसे राजद्रोह के इस कानून के तहत जुर्माने के साथ तीन साल तक कारावास की सजा दी जा सकती है.
भारत में सबसे पहले कब किया गया इस्तेमाल
भारत में राजद्रोह कानून के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का सबसे पहली बार वहाबी आंदोलन के दौरान इस्तेमाल किया गया था. स्वाधीनता आंदोलन के काल में वहाबियों की बढ़ती गतिविधियां ब्रिटिश सरकार के लिए चुनौतियां पेश कर रही थीं. अंग्रेजी हुकूमत ने वहाबियों की आवाज को कुचलने के लिए इस कानून का इस्तेमाल कर उन्हें चुप कराने की कोशिश की थी.
संविधान में राजद्रोह के कानून को नहीं दी गई मान्यता
आजादी के बाद भारत में जब संविधान का निर्माण किया जा रहा था, तब 1950 में अंगीकृत किए गए संविधान में राजद्रोह के कानून को मान्यता नहीं दी गई. संविधान से राजद्रोह के कानून को बाहर रखकर देश के नागरिकों के अधिकारों और अभिव्यक्ति की आजादी को सुरक्षा प्रदान किया गया, लेकिन 1951 में संविधान के पहले संशोधन में प्रतिबंधों को शामिल किया गया, जो राजद्रोह कानून को मान्यता देने के साथ ही उसका प्रतिनिधित्व करते हैं.
सरकार के खिलाफ बोलना माना जाता है राजद्रोह
भारत में सरकार के खिलाफ असंतोष की भावना पैदा करना राजद्रोह कानून के तहत आता है, बात करे तो लेकिन एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्षी दलों द्वारा सरकार की नीतियों का विरोध करना और उसकी आलोचना करना मुख्य काम है. भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. वहीं, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि भारत में सरकार के खिलाफ असंतोष की अभिव्यक्ति की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि ये उसी तरह काम करती है, जिस प्रकार प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व दबाव को कम करने का काम करते हैं.
अंग्रेजों के जमाने के पुराने राज द्रोह कानून को लेकर बुधवार को सर्वोच्च अदालत में हो रही सुनवाई के दौैरान सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के नये केस दर्ज करने पर फिलहाल रोक लगा दी है. सर्वोच्च अदालत में इस मामले पर अब 3 जुलाई को अगली सुनवाई की जाएगी. बता दें,
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था ये सवाल
लंबित मामलों और भविष्य के मामलों पर सरकार कैसे गौर करेगी
जब केंद्र ने खुद दुरुपयोग पर चिंता जतायी है, तो कैसे करेगी रक्षा
इस केस में जो जेल में हैं व जिन पर मामले दर्ज हैं, दोनों पर रुख बताएं
कानून पर पुनर्विचार करने में सरकार को कितना समय लगेगा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किये जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर वह अपने विचारों से अवगत कराये. शीर्ष अदालत ने इस बात पर सहमति जतायी कि इस प्रावधान पर पुनर्विचार केंद्र सरकार पर छोड़ दिया जाये। कोर्ट ने प्रावधान के लगातार दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की. साथ ही सुझाव भी दिया कि दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये जा सकते हैं या कानून पर पुनर्विचार की कवायद पूरी होने तक इसे स्थगित रखने का फैसला किया जा सकता है.
दरअसल, कोर्ट को यह तय करना था कि राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई तीन या पांच न्यायाधीशों की पीठ को करनी चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने सरकार के नये रुख पर गौर किया कि वह इसकी फिर से जांच और पुनर्विचार करना चाहती है.
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