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सुखी जीवन का रहस्य, जीवन मे संतोष धन के बाद कोई अन्य धन होता ही नही !

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सुखी जीवन का रहस्य, जीवन मे संतोष धन के बाद कोई अन्य धन होता ही नही !

★अगर आप इस अहम् सवाल का जवाब चाहते हैं तो आपको इसे पढ़ना चाहिये | जीवन बहुत लम्बा होता हैं लेकिन अगर उसके सत्य को स्वीकार ले तो सदिया क्षण में ही बीत जाती हैं ! इस कथा को पढ़कर आपको इसका महत्व समझ आएगा | आपको पता चलेगा कि जीवन का अमूल्य ज्ञान भी कभी – कभी छोटे से साधारण इंसान से मिल जाता हैं |

★कभी-कभी छोटी- छोटी घटनायें, मुलाकाते पुरे जीवन को बदल देती हैं | और अथाह ज्ञान होकर भी पता चलता हैं कि हमें तो कुछ पता ही नहीं था! जीवन मे आकांक्षाओं इच्छाओं को संयमित कर संतोष का सुख अनुभव करते है वही जीवन का सच्चा सुख है ,आनंद है !

★सुखी जीवन का रहस्य★

★एक महान संत हुआ करते थे जो अपना स्वयं का आश्रम बनाना चाहते थे जिसके लिए वो कई लोगो से मुलाकात करते थे ! एक जगह से दूसरी जगह यात्रा के लिए जाना पड़ता था ! इसी यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात एक साधारण सी कन्या विदुषी से हुई | विदुषी ने उनका स्वागत किया और संत से कुछ समय कुटिया में रुक कर आराम करने की याचना की ! संत उसके मीठे व्यवहार से प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका आग्रह स्वीकार किया !

★विदुषी ने संत को अपने हाथो का स्वादिष्ट भोज कराया | और उनके विश्राम के लिए खटिया पर एक दरी बिछा दी | और खुद फर्श टाट बिछा कर सो गई | विदुषी को सोते ही नींद आ गई | उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि विदुषी चैन की सुखद नींद ले रही हैं | उधर संत को खाट पर नींद नहीं आ रही थी | उन्हें मोटे नरम गद्दे की आदत थी जो उन्हें दान में मिला था | वो रात भर विदुषी का सोच रहे थे कि वो कैसे इस कठोर जमीन पर इतने चैन से सो सकती हैं !

★दुसरे दिन सवेरा होते ही संत ने विदुषी से पूछा कि – तुम कैसे इस कठोर धरा पर इतने चैन से सो रही थी |तब उसने बड़ी सरलता से उत्तर दिया – हे गुरु देव ! मेरे लिए मेरी ये छोटी सी कुटिया एक महल के समान ही भव्य हैं | इसमें मेरे श्रम की महक हैं | अगर मुझे एक समय भी भोजन मिलता हैं तो मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ | जब दिन भर के कार्यों के बाद मैं इस धरा पर सोती हूँ तो मुझे माँ की गोद का आत्मीय अहसास होता हैं | मैं दिन भर के अपने सत्कर्मो का विचार करते हुए चैन की नींद सो जाती हूँ | मुझे अहसास भी नहीं होता कि मैं इस कठोर धरा पर हूँ !

★यह सब सुनकर संत जाने लगे ! तब विदुषी ने पूछा – हे गुरुवर ! क्या मैं भी आपके साथ आश्रम के लिए धन एकत्र करने चल सकती हूँ ? तब संत ने विनम्रता से उत्तर दिया – बालिका ! तुमने जो मुझे आज ज्ञान दिया हैं उससे मुझे पता चला कि चित्त का सुख कहाँ हैं !अब मुझे किसी आश्रम की इच्छा नहीं रह गई |

★यह कहकर संत वापस अपने देश लौट गये और एकत्र किया धन उन्होंने गरीबो में बाँट दिया और स्वयं एक कुटिया बनाकर रहने लगे !

◆शिक्षा :

★ आत्म शांति एवम संतोष ही सुखी जीवन का रहस्य हैं | जब तक इंसान को संतोष नहीं मिलता वो जीवन की मोह माया में फसा ही रहता हैं और जो इस मोह माया में फसता हैं ! उसे कभी चैन नहीं मिलता !

★जीवन का सुख संतोष में हैं | अगर मनुष्य जो हैं उसे स्वीकार कर ले और उसी में खुशियाँ तलाशे तो वो उसी क्षण सारे सुख का अनुभव कर लेता हैं | जिस तरह विदुषी एक वक्त के भोजन को ही अपना सौभाग्य मानती हैं | और कठोर धरा पर भी चैन से सोती हैं ! उसी कारण उसे जीव में सभी सुखों का अनुभव हुआ हैं !वही एक संत बैरागी होते हुए भी, खाट पर चैन से नहीं सो पा रहा था क्यूंकि उसे अपने पास जो हैं उससे संतोष नहीं था !जिस दिन उसने यह सत्य स्वीकार लिया, उसे एक कुटिया में भी अपार शांति का अनुभव होने लगा!

★यह कथा सुखी जीवन का रहस्य कहती हैं ! आज घर में अपार धन दौलत ऐशो आराम होते हुए थी लोग सुख शांति से नही रहते क्यूंकि उन्हें जो हैं उसमे संतोष नहीं मिलता ! कहते हैं ना जिन्हें दुसरो की थाली में घी ज्यादा दिखता हैं वो कभी खुद चैन से नहीं रहते ! व्यक्ति को हमेशा वो चाहिये जो उसके पास नहीं हैं |और वो मिल जाए तो नयीं महत्वकांक्षा उसकी जगह ले लेती हैं | इस तरह पूरा जीवन असंतोष में ही बीत जाता हैं और अंत समय में भी चैन नहीं मिलता !

★अतः संतुष्टि ही जीवन का मूल मंत्र हैं ,संतोष जीवन की उमंग है आनंद है! अगर इंसान में संतोष हैं तो कोई दुःख उसे तोड़ नहीं सकता! यही हैं जीवन का रहस्य! अस्तु !!

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