यज्ञ धार्मिक आयोजन के साथ वैज्ञानिक क्रिया:शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द
यज्ञ धार्मिक आयोजन के साथ वैज्ञानिक क्रिया:शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द
भगवान गणेश प्रथम पूज्य के साथ वह अनन्त शक्ति वाले परमेश्वर
भगवान गणेश श्री गणेश ब्रहमांड में नित्य, निर्गुण और अनादि ही हैं
परब्रह्म परमेश्वर गणेश का विस्तृत विवेचन ‘गणेश पुराण में मौजूद
फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। यज्ञ एक धार्मिक आयोजन के साथ-साथ एक वैज्ञानिक क्रिया है । यज्ञ ही वह कल्पबृक्ष है, जिससे ब्यक्ति अपने समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकता है । भगवान गणेश प्रथम पूज्य के साथ वह अनन्त शक्ति वाले परमेश्वर हैं, जिनसे अनन्त जीव प्रकट हुए हैं। उन्हीं से असंख्य गुणों की भी उत्पत्ति हुई है । भगवान गणेश से ही सात्विक, राजस और तामस–इन तीन भेदों वाला यह सम्पूर्ण जगत प्रकट एवम् भासित होता है । जहाँ मन की भी पहुँच नहीं है तथा श्रुति सदा सावधान रहकर ‘नेति-नेति—इन शब्दों में भगवान श्री गणेश जी का वर्णन करती है। भारत भ्रमण के दौरान सरगुजा में आयोजित 10 दिवसीय 21 कुण्डीय श्री गणेश महायज्ञ के मौके पर श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनंत विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने यह अध्यात्मिक ज्ञान की सनातनी, धर्मावलम्बियों को अपना आशीर्वचन प्रदान करते श्रद्धालूओं के बीच धर्म चर्चा में कही।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि श्री गणेश जी नित्य, निर्गुण और अनादि हैं । इसलिए उनके स्वरूप का कथन किसी के लिए सम्भव नहीं है, फिर भी उनकी उपासना में निरत भक्तों द्वारा उन्हें सगुणरूप में निरूपित किया जाता है । श्रुतियों में जिस सर्वात्मा, सर्वत्र, अनादि, अनन्त, अखण्ड-ज्ञानसम्पन्न पूर्णतय परमात्मा और उनके पंचदेवात्मक स्वरूप का वर्णन किया गया है, उसके अनुसार परब्रह्म परमेश्वर गणेश का विस्तृत विवेचन ‘गणेश पुराण में किया गया है । वहाँ आदिदेव गणेश को प्रणवरूपी बताया गया है, और कहा गया है कि ‘समस्त देवता और मुनि उन्हीं परम प्रभु का स्मरण करते हैं । उन्हीं की आज्ञा से ब्रह्मा, विष्णु, महेश सृष्टि का संचालन करते हैं ।
उन्होंने कहा कि भगवान श्री गणेश जी की चारों युगों में भिन्न-भिन्न नामों एवम् रूपों में पूजा होती है । त्रेता युग में पिता कश्यप और माता अदिति के पुत्र, स्वेतवर्ण, मयूर वाहन, छरू भुजा वाले श्री गणेश जी की पूजा महोत्कट नाम से होती है । सत्ययुग में सिंह वाहन, दशनाम विनायक के रूप में श्री गणेश जी की पूजा होती है । द्वापर युग में रक्तवर्ण, मूषक वाहन, चतुर्भुज गजानन के नाम से और कलियुग में धूम्रवर्ण, अश्व वाहन, दो भुजा वाले धूमकेतू नाम से श्री गणेश भगवान की पूजा होती है । पूज्य शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द ने अपना आशिर्वचन देते कहा कि भगवान गणेश श्री गणेश महायज्ञ के आयोजकों के मनोरथ को पूर्ण करें ।
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