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सारागढ़ी 12 सितम्बर 1897 अतुल्य साहस.

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सारागढ़ी 12 सितम्बर 1897 अतुल्य साहस.
12 सितम्बर, 1897 को सुबह 8 बजे सारागढ़ी क़िले के संतरी ने दौड़कर अंदर खबर दी कि हज़ारों पठानों का लश्कर झंडों और भालों के साथ उत्तर की ओर से सारागढ़ी क़िले की ओर बढ़ रहा है.

संतरी को तुरन्त अन्दर बुला लिया गया और सैनिकों के नेता हवलदार ईशेर सिंह ने सिग्नल मैन गुरमुख सिंह को आदेश दिया कि पास फ़ोर्ट लॉकहार्ट में तैनात अंग्रेज़ अफ़सरों को तुरन्त हालत से अवगत कराया जाए और उनसे पूछा जाए कि उनके लिए क्या आदेश है?

कर्नल हॉटल ने आदेश दिया, होल्ड यॉर पोजीशन यानी अपने स्थान पर डटे रहो. एक घण्टे के अन्दर क़िले को तीन तरफ़ से घेर लिया गया और ओरकज़ाईयों का एक सैनिक हाथ में सफ़ेद झण्डा लिए क़िले की ओर बढ़ा. उसने चिल्ला कर कहा, हमारा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है, हमारी लड़ाई अंग्रेज़ों से है. तुम संख्या में बहुत कम हो, मारे जाओगे, हमारे सामने हथियार डाल दो. हम तुम्हें सुरक्षित जाने का रास्ता देंगे.

बाद में ब्रिटिश फौज के मेजर जनरल जेम्स लट ने इस लड़ाई का वर्णन करते हुए लिखा, ईशेर सिंह ने इस पेशकश का जवाब उनकी ही भाषा पश्तो में दिया. उनकी भाषा न केवल सख्त थी बल्कि गालियों से भरी हुई थी. उन्होंने कहा कि ये अंग्रेज़ों की नहीं महाराजा रणजीत सिंह की धरती है और हम इसकी रक्षा अन्तिम सांस तक करेंगे.
बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के जयकारे से सारागढ़ी का क़िला गूँज उठा.

इस युद्ध में सिख रेजीमेंट के 21 जवान अफगानों की 10 हजार की फौज से भिड़ गए थे और उन्होंने लगभग 600 अफगानों को मौत के घाट उतारकर शहादत पाई. यह तारीख इतिहास में सिखों के अतुल्य साहस के रूप में दर्ज है. ब्रिटिश-एंग्लो सेना व अफ़ग़ान सेना के बीच लड़ी गई यह लड़ाई बैटल ऑफ सारागढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है.

शहादत की याद में गुरुद्वारे का निर्माण देश की स्वतंत्रता संग्राम में कूदे सैकड़ों सिखों को काले पानी व फाँसी की सजा देने वाले अंग्रेजों ने सारागढ़ी के सिखों की शहादत को न केवल सम्मान दिया, बल्कि उनके बलिदान की याद में एक गुरुद्वारे का भी निर्माण किया गया था.
शहर के चौक फव्वारा स्थित 21 सिखों की शहादत के इस गुरुद्वारा का निर्माण वर्ष 1902 में पूरा हुआ था. अंग्रेज सरकार के पंजाब में गवर्नर सर डब्ल्यूएम यंग ने इसका उद्घाटन किया था. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस गुरुद्वारे के साथ एक बड़ी सराय का निर्माण कर दिया है.

महाराजा रणजीत सिंह ने बनाया था किला
यह दर्रा खैबर क्षेत्र से लगभग 47 किलोमीटर दूर छह हजार फुट ऊंची चोटी पर किला सारागढ़ी और इससे समान दूरी पर किला लाकर हार्ट व किला गुलस्तान त्रिकोण की स्थिति में मौजूद है. किला लाक हार्ट व किला गुलेस्तान पाकिस्तान में आर्मी कैंट में तबदील हो चुके हैं, जबकि किला सारागढ़ी आज पाकिस्तान सेना द्वारा उपयोग किया जा रहा है.

वर्ष 1897 में समाना घाटी में उक्त किलों सहित सरतूप व संगर किले भी मौजूद थे, जिनमें 36 नम्बर सिख बटालियन की पाञ्च कम्पनियाँ तैनात थी. इनका कमांडिंग अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल जान हयूगटन था. अंग्रेज हकूमत के विरुद्ध शुरू हुए विद्रोह के चलते हजारों की संख्या में कबाइली पठानों ने 11 सितंबर 1897 की रात संगर किले पर हमला बोल दिया, परंतु वे किले की दीवारों को गिराकर किले में प्रवेश नहीं कर पाए.

इन 21 बहादुर सिखों ने हिम्मत नहीं हारी. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की हजूरी में अरदास कर युद्ध करने के लिए अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया. किले में मौजूद जवानों ने जवाब में कहा कि हमने दुश्मन का मुकाबला करने के लिए अरदास करके अपने हथियार उठा लिए हैं. अब हम किसी भी स्थिति में पीछे हटने के बारे में नहीं सोच सकते हैं.

ये 21 योद्धा पूरे छह घण्टे तक लगभग दस से पन्द्रह हज़ार के करीब पठानों से पूरी बहादुरी के साथ तब तक जूझते रहे जब तक उनके पास किले में मौजूद सारा गोली सिक्का समाप्त नहीं हो गया और फिर एक-एक कर सभी जवानों ने अपना बलिदान दे दिया.

इनके शहीद होने के साथ ही सारागढ़ी चौकी पर कबाइलियों का कब्जा हो गया. शहीद हुए 21 फौजियों की यादगार बनाने के लिए जनांदोलन हुआ था. भारतीय सेना के सबसे बड़े इंडियन आर्डर आफ मेरिट के सम्मान से सम्मानित किया गया. इनकी यादगार वजीरास्तान (अब पाकिस्तान), अमृतसर व फिरोजपुर में स्थापित की गई थी.
जवानों को मरणोपरांत इंडियन मेरिट ऑफ ऑर्डर सम्मान

ब्रिटेन की संसद में इन 21 वीरों की बहादुरी को सलाम किया गया था. इन सभी को मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया, जो परमवीर चक्र के बराबर का सम्मान था. युद्ध में शहीद सिख सैनिकों का सम्बन्ध फिरोजपुर व अमृतसर से था. जिसे देखते हुए ब्रिटिश सेना ने दोनों स्थानों पर मेमोरियल बनाए.
हम सभी को व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना का परित्याग कर राष्ट्र के नव निर्माण में अपना सर्वोत्तम कर्त्तव्य कर्म करने का यत्न करना चाहिए।

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