देवी महाकाली विनाश और प्रलय से रक्षा के लिए पूजनीय:शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द
देवी महाकाली विनाश और प्रलय से रक्षा के लिए पूजनीय:शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द
भगवान शिव का एक रूप, चेतना के देवता, वास्तविकता और अस्तित्व का आधार
महाकाली सार्वभौमिक शक्ति, समय, जीवन, मृत्यु, तथा पुनर्जन्म, मुक्ति की देवी
महाकाली व्युत्पत्ति रूप से महाकाल या महान स्त्री का ही स्वरूप मानी गई
फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। महाकाली विनाश और प्रलय से रक्षा के लिए बहुत ही पूजनीय हिन्दू देवी हैं। महाकाली सार्वभौमिक शक्ति, समय, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म और मुक्ति दोनों की देवी हैं। वह काल (समय) का भक्षण करती हैं, और फिर अपनी काली निराकारता को फिर से शुरू कर देती हैं। भगवान शिव का एक रूप , चेतना के देवता, वास्तविकता और अस्तित्व का आधार है। संस्कृत में महाकाली व्युत्पत्ति रूप से महाकाल या महान समय (जिसे मृत्यु के रूप में भी व्याख्या की जाती है ) का स्त्री रूप है । भगवान का एक विशेषण है, “हिंदू धर्म में शिवष्द्य पार्वती और उनके सभी रूप महाकाली के विभिन्न रूप हैं । उनकी सबसे आम चार सशस्त्र प्रतिमा चित्र दिखाती है कि प्रत्येक हाथ में एक अर्धचंद्र के आकार की तलवार , एक त्रिशूल (त्रिशूल), एक दानव का कटा हुआ सिर और एक कटोरी या खोपड़ी-कप ( कपाल ) है, जो कटे हुए सिर के रक्त को पकड़ता है। उनकी आँखों को नशे से लाल बताया गया है, और पूर्ण क्रोध में उनके बाल अस्त-व्यस्त दिखाई देते हैं । सनातन संस्कृति सहित धर्म-कर्म के व्याखान के लिए भारत वर्ष के भ्रमण और विभिन्न राज्यों में प्रवास की कड़ी में यह ज्ञानोपदेश श्रद्धालूओं के बीच देते हुए ग्राम कुलटाँड़, पटमदा में स्थित श्री श्री पंचमुखी हनुमान मन्दिर में आयोजित पंच देवी-देवताओं प्राण-प्रतिष्ठा में पधारे सनातन धर्म के सर्वाेच्च धर्मगुरु श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट् अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कही। यह जानकारी शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द के सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा मीडिया से सांझा की गई।
देवी महाकाली ब्रह्म के ही समान
पंच देवी-देवताओं प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द ने बताया कि देवी महाकाली की दस सिर वाली (दशमुखी) छवि को 10 महाविद्या महाकाली के रूप में जाना जाता है, और इस रूप में उन्हें दस महाविद्याओं या महान ज्ञान (देवी) का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा जाता है। उन्हें कभी-कभी जलती हुई चिता या सड़ते हुए मृतक देह पर भी बैठा दिखाया जाता है। उनका रंग रात के आकाश के रूप में वर्णित है, जो सितारों से रहित है। उन्हें इस रूप में दस सिर, तीस ज्वलंत आंखें, दस हाथ और दस पैर के रूप में चित्रित किया गया है, लेकिन अन्यथा आम तौर पर अन्य मामलों में चार सशस्त्र चिह्न के अनुरूप होता है। उनके दस हाथों में से प्रत्येक में एक उपकरण है, जो अलग-अलग खातों में भिन्न होता है, लेकिन इनमें से प्रत्येक देव या हिन्दू देवताओं में से एक की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, और अक्सर किसी दिए गए देवता की पहचान करने वाला हथियार या अनुष्ठान सामग्री होता है। तात्पर्य यह है कि महाकाली इन देवताओं के पास मौजूद शक्तियों के लिए जिम्मेदार हैं, और यह इस व्याख्या के अनुरूप है कि महाकाली ब्रह्म के समान हैं। अर्थात् विभिन्न देवताओं की शक्तियां उनकी कृपा से ही आती हैं ।
भक्तों के सभी मनोरथों की सिद्धि निश्चित
पूज्य शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज ने कहा कि यहाँ माता काली (शक्ति) की प्राण-प्रतिष्ठा हुई है, यहाँ आने वाले अपने सभी भक्तों के सभी मनोरथों की सिद्धि निश्चित रूप से माँ करेंगी । इस अवसर पर माटुंगा मठ,मुम्बई के महामण्डलेश्वर स्वामी शंकरानन्द सरस्वती महाराज, जूना अखाड़ा के अन्तर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री महन्त स्वामी विद्यानन्द सरस्वती जी महाराज, श्री महन्त इन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज, श्री मेघानन्द सरस्वती जी महाराज, रामनाथ सिंह सहित अन्य साधु-सन्त एवं गणमान्य अतिथि धर्म मंच पर तथा हजारों सनातनधर्मी श्रद्धालु पण्डाल में मौजूद रहे।
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