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चिकित्सा जगत में कीर्तिमान: फोर्टिस गुरुग्राम में नवजात के पेट से जुड़वां परजीवी भ्रूण निकाले गए

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चिकित्सा जगत में कीर्तिमान: फोर्टिस गुरुग्राम में नवजात के पेट से जुड़वां परजीवी भ्रूण निकाले गए

  • दुनिया भर में ‘भ्रूण के अंदर भ्रूण’ के ऐसे केवल 35 मामले सामने आए हैं –

नई दिल्‍ली/गुरुग्राम, XX अगस्‍त, 2025 : एक बेहद दुर्लभ मामले में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के चिकित्‍सकों ने एक महीने की बच्ची के पेट से दो जुड़वां परजीवी भ्रूण  को सफलतापूर्वक निकालने में कामयाब रहे। भ्रूण में भ्रूणों का होना चिकित्सा विज्ञान में ज्ञात एक दुर्लभ जन्मजात विसंगति है, जिसका इस मामले में पता चला। यह मामला नवजात शिशु देखभाल में महत्वपूर्ण उपलब्धि है। अनुमान के मुताबिक यह स्थिति दुनिया भर में लगभग 5,00,000 जीवित जन्मों में से केवल 1 में हो सकती है, जो इसे सही मायने में चिकित्सा क्षेत्र में दुर्लभ मामला बनाता है। अधिकांश मामलों को पता शैशवास्‍था या बचपन में ही चल जाता है मगर ऐसे कुछ मामले वयस्कों में भी पाए गए हैं। वैश्विक स्तर पर, भ्रूण में भ्रूण यानी एक नवजात शिशु के अंदर एक भ्रूण के विकसित होने के 300 से भी कम मामले अब तक रिपोर्ट किए गए हैं, जबकि एक से अधिक परजीवी भ्रूणों के मामले और भी दुर्लभ हैं तथा दुनिया भर में केवल 35 मामले ही समाने आए हैं।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब एक महीने की मरीज (बच्ची) को पेट में सूजन, अत्यधिक चिड़चिड़ापन और दूध पीने में कठिनाई की शिकायत के साथ फोर्टिस गुरुग्राम लाया गया। प्रारंभिक जांच और इमेजिंग से उसके पेट की कैविटी (उदर गुहा) में असामान्य वृद्धि का पता चला। आगे की इमेजिंग से पुष्टि हुई कि बच्ची के पेट की कैविटी में दो विकृत भ्रूण पल रहे थे। यह दुर्लभ स्थिति गर्भावस्था के शुरुआती दौर में होती है, जब एक भ्रूण दूसरे भ्रूण को अपने शरीर में घेर लेता और फंसा लेता है। फंसा हुआ भ्रूण न तो बढ़ सकता है और न ही जीवित रह सकता है। इस शिशु के मामले में, दोनों परजीवी जुड़वां एक ही थैली में बंद थे, जिससे यह एक असाधारण चिकित्सीय दुर्लभता बन गई।

रोगी की स्थिति का आकलन करते हुए फोर्टिस गुरुग्राम की पीडिएट्रिक सर्जिकल टीम ने शिशु की स्थिति को सामान्‍य करने के बाद सर्जरी की योजना बनाई। नवजात शिशुओं में गंभीर मामलों को संभालने में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली टीम ने सटीकता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एडवांस्‍ड सर्जिकल तकनीक और नियोनेटल उपकरणों का उपयोग किया। सर्जरी में विशेषज्ञ पीडिएट्रिक एनेस्थेटिस्ट भी शामिल थे और सर्जरी के बाद बच्‍ची ने अच्छी प्रतिक्रिया दी और निगरानी के दौरान लगातार सुधार के संकेत दिखा रहे थे।

मामले की जानकारी देते हुए डॉ. आनंद सिन्‍हा, डायरेक्‍टर, पीडिएट्रिक सर्जरी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, ग्ररुग्राम ने कहा, ‘‘डायग्‍नोसिस और सर्जिकल मैनेजमेंट दोनों ही दृष्टि से यह एक दुर्लभ और चुनौतीपूर्ण मामला था। भ्रूण में भ्रूण एक ऐसी स्थिति है जो हमें बहुत कम देखने को मिलती है और एक महीने के शिशु के अंदर एक ही थैली में एक नहीं बल्कि दो-दो परजीवी भ्रूणों का पाया जाना वास्‍तव में असाधारण था। सबसे बड़ी चुनौती इतने छोटे नवजात का पूरी सटीकता से ऑपरेशन करना था। किसी भी दुर्घटना से बचने के लिए ऑपरेशन के बाद गहन देखभाल भी बहुत व्‍यापक होनी चाहिए। छोटे नवजात को दर्द से राहत दिलाना भी चुनौती थी। यह जानना जरूरी है कि यह मामला भले ही दुर्लभ हो मगर कैंसरकारक नहीं है। एक बार भ्रूण को हटा दिए जाने के बाद, इसके दोबारा होने की संभावना बेहद कम होती है। ये ट्यूमर जैसी वृद्धि नहीं बल्कि विकृत भ्रूण संरचनाएं थीं जो अनियंत्रित रूप से विभाजित नहीं होतीं हैं। बच्ची की अब तक की रिकवरी बहुत उत्साहजनक रही है। यह मामला भ्रूण में भ्रूण पर वैश्विक चिकित्सा साहित्य में एक नया आयाम जोड़ता है और भारत में एडवांस्‍ड पीडिएट्रिक सर्जरी सुविधाओं के महत्व की पुष्टि करता है।’’

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इइंस्‍टीट्यूट के वाइस प्रेसिडेंट और फैसिलिटी डायरेक्‍टर यश रावत ने कहर, ‘‘यह असाधारण रूप से दुर्लभ और जटिल मामला था, जो न केवल अपनी क्‍लीनिकल विशिष्टता के कारण बल्कि जिस सावधानी से इसका प्रबंधन किया गया, उसके कारण भी विशिष्ट था। डॉ. आनंद और उनकी टीम ने डायग्‍नॉस्टिक और उपचार प्रक्रिया के दौरान उत्कृष्ट विशेषज्ञता, समन्वय तथा बारीकियों पर गहन ध्यान का बेहतरीन प्रदर्शन किया। ऐसे असामान्य मामले को सफलतापूर्वक संभालना उनके चिकित्सा ज्ञान की गहराई और उच्च-गुणवत्ता वाली रोगी देखभाल प्रदान करने की उनकी प्रतिबद्धता, दोनों को दर्शाता है। इस तरह के मामले कम ही देखने को मिलते हैं और इसके लिए उच्च स्तर की सटीकता, गहन सोच और टीमवर्क की जरूरत होती है और ये सभी गुण इस रोगी के उपचार में स्पष्ट रूप से दिखाई दिए।’’

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