राम से बड़ा राम नाम
राम से बड़ा राम नाम
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रामायण की एक कथा के अनुसार एक बार अयोध्या मे रामदरबार में भगवान राम जी की सेवा मे पवनपुत्र हनुमानजी इतने तन्मय हो गए थे कि उन्हें एक दिन गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा।
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राम दरबार मे सभी ने उठ कर उनका अभिवादन किया लेकिन हनुमानजी नहीं कर पाए।
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इस पर वशिष्ठ जी को अपने अनादर होने पर उन्हें अपमान महसूस हुआ और उन्हें क्रोध आ गया…
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तब फिर उन्होंने राम दरबार की सभा मे श्री रामजी से कहा कि राम गुरु का भरे दरबार में अभिवादन नहीं कर अपमान करने पर क्या सजा होनी चाहिए?
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तब श्री रामजी ने कहा गुरुवर आप ही बताएं?
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वशिष्ठ जी ने कहा:- “मृत्यु दण्ड“
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श्री भगवान राम जी ने कहा:- मुझे स्वीकार है
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तब भगवान श्रीराम जी ने कहा :- गुरुदेव आप बताएं कि यह अपराध किसने किया है.?
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तब फिर गुरु वशिष्ठ ने कहाँ – बता दूंगा पर “राम” वो तुम्हारा इतना प्रिय है कि, तुम अपने आप को सजा दे दोगे पर उसको नहीं दे पाओगे।
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तब फिर श्रीराम जी ने गुरु वशिष्ठ से कहा, गुरुदेव, राम के लिए सब समान हैं, मैंने सीता जैसी पत्नी का सहर्ष त्याग धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए कर दिया…. तब फिर भी आप मुझ पे संशय कर रहे हैं.?
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गुरु वशिष्ठ बोले – नहीं, “राम”! मुझे तुम्हारे उपर पर संशय नहीं है पर, मुझे दण्ड के परिपूर्ण होने पर संशय है….
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अत: यदि तुम मुझे यह विश्वास दिलाते हो कि,तुम स्वयं उसे मृत्यु दण्ड अपने अमोघ बाण से दोगे तो ही मैं अपराधी का नाम और अपराध बताऊंगा
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श्री भगवान राम जी ने पुन: अपना संकल्प गुरु वशिष्ठ के समक्ष व्यक्त कर दिया।
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तब फिर गुरु वशिष्ठ जी ने बताया कि यह अपराध तुम्हारे परम भक्त हनुमान जी ने किया है।
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तब फिर हनुमानजी ने भी अपना इस अपराध को स्वीकार कर लिया।
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तब फिर भगवान राम ने दरबार में घोषणा कर दी कि कल संध्याकाल मे सरयु के तट पर, हनुमानजी को मैं स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूंगा.
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इस बात की घोषणा पर हनुमान जी अपने माता के पास चले गए, हनुमानजी के घर आने पर उदासी की अवस्था में माता अंजनी ने देखा तो वह हैरान रह गई..
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कि मेरा लाल वीरों-का-वीर महावीर, अतुलित बल का स्वामी, ज्ञान का भण्डार, आज इस अवस्था में क्यों है?
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तब फिर उनकी माता ने उनसे बार बार पूछने की कोशिश की क्या परेशानी है , पर इस पर भी जब हनुमान चुप रहें तो माता ने अपने दूध का वास्ता देकर पूछा।
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तब हनुमानजी ने अपनी माता को सारी बात बताई , और कहाँ कि यह घटना हुआ है अनजाने में…।
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और फिर हनुमान जी ने अपनी माता से कहा कि – माता! आप तो जानती ही हैं कि हनुमान को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई नहीं मार सकता, पर भगवान श्रीराम के अमोघ शास्त्र के बाण से भी कोई बच भी नहीं सकता l
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तब फिर उनकी “माता” ने हनुमान जी से कहा कि :-हनुमान,मैंने भगवान शंकर से, “राम” मंत्र (नाम) प्राप्त किया था ,और तुम्हें भी जन्म के साथ ही यह नाम घुटी में पिलाया था…
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जिसके फलप्राप्त से आज तुम भगवान राम के सबसे श्रेष्ठ और प्रिय भक्त हो, और जिसके प्रताप से तुमने बचपन में ही सूर्यदेव को एक फल समझकर मुख में ले लिया था
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उस राम नाम के होते हुए हनुमान कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सका, चाहे वो राम स्वयं ही क्यों ना हों।
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राम नाम की शक्ति के सामने राम की शक्ति और राम के अमोघ बाण की शक्तियां महत्वहीन हो जाएंगी।
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जाओ मेरे लाल,अभी से सरयु के तट पर जाकर राम नाम का उच्चारण करना आरंभ करदो।
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अपनी माता के चरण छूकर हनुमानजी, सरयु किनारे राम राम राम राम रटने लगे।
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संध्याकाल होने पर भगवान राम अपने सम्पूर्ण दरबार सहित सरयु तट आए।
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भगवान राम के संग सभी दरबारियों और वहां उपस्थित सभी श्रेष्ठ जनों को कोतूहल था कि क्या भगवान राम हनुमान जी को सजा देंगे..?
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लेकिन जब श्रीराम ने अपने बार बार रामबाण, महान शक्तिधारी, अमोघशक्ति बाण चलाने पर हनुमानजी के ऊपर उनका कोई असर नहीं हुआ…
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तो गुरु वशिष्ठ जी ने शंका जताई, राम क्या तुम अपनी पुर्ण निष्ठा से बाणों का प्रयोग कर रहे हो.?
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तब श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से कहा, हां गुरूदेव, मैं गुरु के प्रति अपराध की सजा देने पर अपने बाण चला रहा हु उसमें किसी भी प्रकार की चतुराई करके मैं कैसे वही अपराध कर सकता हूं.?
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तब फिर गुरु वशिष्ठ जी ने श्री राम से कहा, तो फिर तुम्हारे बाण अपना कार्य क्यों नहीं कर रहे है?
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इस पर भगवान श्रीराम ने कहा, गुरुदेव हनुमान राम राम राम की अंखण्ड रट लगाये हुए है, जिससे मेरी शक्तिंयों का अस्तित्व राम नाम के प्रताप के समक्ष महत्वहीन हो रहा है।
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इससे मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहा है,आप ही बताएं गुरु देव ! अब मैँ क्या करुं.?
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तब फिर गुरु वशिष्ठ ने भगवान राम से कहा, हे राम! मैं जान गया हूँ कि सारे अमोघ अस्त्र विफल होने के कारण क्या है,
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आज से मैं तुम्हारे साथ और तुम्हारे दरबार को त्याग कर, अपने आश्रम जा रहा हूं जहां मैं राम नाम का निरंतर जप करुंगा।
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और फिर जाते -जाते, गुरुदेव वशिष्ठ जी ने यह घोषणा की कि हे राम ! मैं जानकर, मानकर, यह घोषणा कर रहा हूं कि स्वयं राम से राम का नाम बडा़ है, राम नाम महाअमोघशक्ति का सागर है।
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जो कोई जपेगा, लिखेगा, मनन करेगा, उसकी लोक कामनापूर्ति होते हुए भी, वो मोक्ष का भागी होगा।
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