अशुभ चिंतन छोड़िए-भयमुक्त होइए
अशुभ चिंतन छोड़िए-भयमुक्त होइए
बहुधा नए कामों का आरंभ करते समय एक किस्म का संकोच होने लगता है ।
कारण वही है “अशुभ आशंका।” उस स्थिति में अशुभ आशंकाओं को अपने मन से झटककर विचार किया जाना चाहिए । सफलता और असफलता दोनों ही संभावनाएँ खुली हुई हैं ।
फिर क्या जरूर असफल ही होना पड़ेगा मन में आशा का यह अंकुर जमा लिया जाए तो असफलता भी पराजित नहीं कर पाती ।
उस स्थिति में भी व्यक्ति को यह संतोष रहता है कि असफलता कोई नया अनुभव दे गई है ।
असफलताओं और दु:खदाई घटनाओं को स्मृति पटल पर बार बार लाने की अपेक्षा ऐसी घटनाओं का स्मरण करना चाहिए जो अपने आपके प्रति आस्था और विश्वास को जगाती है ।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सफलता के और असफलता के दोनों ही अवसर आते हैं दोनों ही तरह की परिस्थितियाँ आती है जो अच्छी और बुरी होती हैं ।
सुख दुख के क्षण सभी के जीवन में आते हैं । असफलताओं कठिनाइयों और कष्टों को याद रखने तथा याद करने की अपेक्षा सफलताओं के सुखद क्षणों को याद करना आशा तथा उत्साह का जनक होता है ।
ये स्मृतियाँ व्यक्ति में आत्मविश्वास उत्पन्न करती है और जो व्यक्ति अपने आप में विश्वास रखता है हर कठिनाई का सामना करने के लिए प्रस्तुत रहता है उसके लिए कैसा भय और कैसी निराशा ?
Comments are closed.