सीएम सिटी करनाल में पुलिस के लठ और किसानों की हठ
सीएम सिटी करनाल में पुलिस के लठ और किसानों की हठ
हाई कोर्ट के जज की जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी
करनाल में फैसले के बाद किसान आंदोलन को मिल गई नई खाद
फतह सिंह उजाला
मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत और सीएम सिटी करनाल में किसानों की हुंकार से यह तो साफ हो चुका कि किसान आंदोलन की धार अभी धारदार ही बनी हुई है । सीएम सिटी करनाल में भारतीय जनता पार्टी की हाई लेवल बैठक मैं किसी प्रकार का व्यवधान नहीं हो , इसी बात को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए । संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का धरना प्रदर्शन और आंदोलन पहले की ही तरह चलता आ रहा है । केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की सरकार होने की वजह से किसानों के द्वारा सबसे अधिक विरोध की भाजपा नेताओं और नेताओं के कार्यक्रम सहित बैठक का ही किया जा रहा है ।
करनाल में जो कुछ भी घटा, उसे और अधिक दोहराने की जरूरत नहीं । लेकिन जो बात और हरकत सबसे अधिक गरम चर्चा के साथ मुद्दा बनी और किसानों में गुस्से का कारण बनी वह थी एसडीएम के द्वारा दिए गए आदेशों का वीडियो वायरल होना । इस वायरल वीडियो ने ही किसान आंदोलन में घी का काम भी कर डाला । अधिकारी या ड्यूटी मजिस्ट्रेट के आदेशों को मानते हुए पुलिस के लठ किसानों पर बरसना शुरू हो गए और किसानों पर बरसते हुए लठों के कारण एक किसान के घायल होने के बाद उसकी मौत भी हो गई । मुजफ्फरनगर महापंचायत के मंच से ही संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा करनाल में किसान पंचायत का ऐलान कर दिया गया था। सुबे की सरकार और सरकार के खुफिया तंत्र के आकलन में भी शायद कहीं ना कहीं कोई कमी रह गई , क्योंकि करनाल में मुजफ्फरनगर की महापंचायत के तरह ही उम्मीद से अधिक किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए मोर्चे पर डट गए । 5 दिनों तक प्रशासन और किसानों के बीच बातचीत का दौर चलता रहा कि बीच का कोई रास्ता निकाल लिया जाए ।
आंदोलनकारी किसान अपनी हठ पर आडे रहे वही प्रशासन चंडीगढ़ के स्पष्ट निर्देशों का इंतजार करता रहा । करनाल में अनाज मंडी से लेकर लघु सचिवालय पहुंच कर मोर्चा खोल कर बैठ जाने वाले किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए अनिश्चितकालीन धरने पर जम गए । आखिरकार चंडीगढ़ के दिशानिर्देशों के मुताबिक सीएम सिटी करनाल में किसानों की मांगों को सरकार के द्वारा मान लिया गया। किसानों पर लठ बरसाने और सिर फोड़ने का आदेश देने वाले अधिकारी को सरकार ने 1 माह के लिए जबरन छुट्टी पर भेज दिया । इसके साथ ही मृतक किसान के परिवार के दो सदस्यों को डीसी रेट पर सैंक्शन पोस्ट पर नौकरी देने की मांग भी मान ली गई । किसानों के सिर फोड़ने के आदेश जारी करने वाले अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से सरकार परहेज करती रही। इस पूरे प्रकरण में जानकारों के मुताबिक कई तकनीकी पेच भी फंसे हुए बताए गए ।
ऐसे में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच करवाने की मांग को सरकार के द्वारा मान लिया गया और यह जांच रिपोर्ट भी 30 दिन के अंदर सरकार को उपलब्ध करवाई जाने की बात कही गई है । इतना तो तय है कि वायरल वीडियो से अब किसी प्रकार की छेड़छाड़ की गुंजाईश ही नहीं बची रह गई है। हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की जांच से ही दूध का दूध और पानी का पानी होगा । इसके लिए अधिकारिक रूप से जांच आरंभ होने के बाद 30 दिनों तक आंदोलनकारी किसानों को इंतजार करना ही होगा । इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की जांच का समय भी जरूरत के मुताबिक बढ़ाया जा सकता है ।
जानकारों के मुताबिक सीएम सिटी करनाल में किसानों के 5 दिन के आंदोलन और आंदोलनकारी किसानों की मांग पूरी होने के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की किसान आंदोलन को एक नई खाद भी मिल गई है। मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत के बाद करनाल में आहूत की गई किसान महापंचायत और महापंचायत में पहुंचे किसानों के संयम और अनुशासन को भी सीएम सिटी करनाल में किसानों के धरना प्रदर्शन आंदोलन को एक नई ताकत के रूप में देखा जा रहा है । संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेता बार-बार कहते आ रहे हैं कि किसान किसी भी सूरत में हिंसात्मक नहीं होंगे और ना ही उग्र प्रदर्शन करेंगे । सीएम सिटी करनाल में किसान और सरकार के बीच कौन जीता और कौन हारा ? इस बात को लेकर सभी का अपना अपना नजरिया और विचार भी बने हुए हैं ।
करनाल में किसानों की तीन मांग सूबे की सरकार के द्वारा मान ली गई है । वही अभी तक के पूरे किसान आंदोलन को देखें तो किसान आंदोलन केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने या रद्द करने की मांग को लेकर अभी भी जारी है । यही किसान आंदोलन का सबसे बड़ा और राष्ट्रीय मुद्दा भी है । कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि आंदोलन छोटा हो या आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़े हो, किसी भी आंदोलन में कोई भी मांग का पूरा किया जाना एक प्रकार से आंदोलन को सफल बनाने के तैयार हो रहे रास्ते के तौर पर ही देखा और आंका जाता है । अब यह तो भविष्य के गर्भ में है की केंद्र सरकार के द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों की मुखालफत करते आ रहे संयुक्त किसान मोर्चा की ज़िद क्या जीत का रास्ता तैयार करने वाली साबित होगी। क्यों कि किसान नेताओं ने अब वोट की चोट का नया नारा किसान आंदोलन को धार देने के लिए अपना लिया है। लेकिन करनाल प्रकरण से एक बात साफ हो गइ्र है कि आंदोंलन का समाधान बातचीत के बीच से ही निकलेगा।
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