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स्वामी करुणानन्द सरस्वती महाराज का व्यक्तित्व और कृतित्व अनुकरणीय – जगद्गुरु नरेंद्रानंद

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स्वामी करुणानन्द सरस्वती महाराज का व्यक्तित्व और कृतित्व अनुकरणीय – जगद्गुरु नरेंद्रानंद

स्वामी करुणानन्द सरस्वती के षोडशी अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा

उन्होंने सनातन, संस्कृति को मजबूत बनाने के लिए यज्ञ को माध्यम बनाया

भानपुर शक्ति पीठ का संचालन करते देश में  सनातन धर्म की धर्मध्वजा फहराई

फतह सिंह उजाला

गुरुग्राम । श्री शक्ति पीठ, करुणाकर आश्रम, भानपुर, जौनपुर में श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज के कृपापात्र शिष्य सार्वभौम विश्व गुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज के षोडशी कार्यक्रम के अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया । यह जानकारी मीडिया को स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा साझा की गई है। 

इस मौके पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज का व्यक्तित्व और कृतित्व अतुलनीय एवम् अनुकरणीय है । उन्होंने सनातन धर्म, सनातन संस्कृति एवम् परम्परा को मजबूत बनाने के लिए यज्ञ को माध्यम बनाया और हजारों विशाल महायज्ञों को सम्पन्न किया । सन्  2002 से जौनपुर के अत्यन्त ग्रामीण क्षेत्र भानपुर के शक्ति पीठ का संचालन करते हुए देश के भिन्न-भिन्न प्रदेशों सनातन धर्म की धर्मध्वजा फहराई । वह एक सिद्ध महात्मा थे, जो अपनी साधना की शक्ति से भूत, भविष्य, वर्तमान ही नहीं, अपितु सामने बैठे ब्यक्ति के मनोभावों को पढ़ एवम् समझ लेते थे । 

उनकी कमी तो पूरी नहीं की जा सकती, परन्तु उनके द्वारा संचालित ब्यवस्था और सनातन धर्म एवम् संस्कृति का प्रचार-प्रसार अनवरत चलता रहे, इस हेतु अब स्वामी प्रकृष्टानन्द सरस्वती जी महाराज को 41 मठों के महन्तओं, सन्तों एवम् सन्यासियों तथा भानपुर सहित 36 गावों के सनातनी भक्तों की सहमति से शक्ति पीठ, करुणाकर आश्रम, भानपुर का महन्त पूज्य शंकराचार्य जी महाराज द्वारा घोषित किया गया और उपस्थित सन्यासियों,सन्तों ने शाल, चादर प्रदान कर अभिषेक किया । श्रद्धांजलि सभा में स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती ने  ‌श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि विश्व गुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज एक ऐसे सन्यासी थे, जिन्हें आने वाले कल तो क्या ? अगले क्षण की भी चिन्ता नहीं रहती थी ‌। वह सदैव वर्तमान में जीने वाले व्यक्तित्व के सन्यासी थे । प्रतिष्ठानपुरी (झूँसी), प्रयागराज से पधारे चाणक्य पीठाधीश्वर परसुरामाचार्य स्वामी सुदर्शन शरण महाराज ने कहा कि बचपन से ही उनका फक्कड़ स्वभाव था, जो जीवन पर्यन्त बना रहा । विश्वास ही नहीं होता कि स्वामी जी अब इस भौतिक संसार में नहीं हैं । जौनपुर के श्याम महाराज ने कहा कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व हम सभी को सदैव सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता रहेगा । स्वामी प्रकृष्टानन्द सरस्वती ने कहा कि स्वामी जी के जाने से सनातनियों की जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति कठिन है । उनके दिखाए और बताये हुए मार्ग पर हम सभी चलें, यही हम सभी की स्वामी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी । 

इस अवसर पर मुम्बई से पधारे आनन्द स्वामी, विकास श्रीवास्तव (देहरादून), मदन सिंह (बस्ती), अभिमन्यु शुक्ल (रायपुर), सुनील शुक्ल,  शंकर मास्टर, सुदामा मिश्र, पगुधारी मास्टर, संजय मिश्रा, नन्हे मिश्र, योगेश नारायण मिश्र, कमलेश पाठक, संजय सिंह अध्यापक, हौशिला सिंह, नरसिंह बहादुर सिंह, प्रमोद तिवारी, कमलेश यादव (बदलापुर), विनोद (आजमगढ़), कमलेश पाण्डेय (सुल्तानपुर), जगदम्बा सिंह, अरविन्द उपाध्याय, भाजपा जिलाध्यक्ष जौनपुर रामविलास पाल, इन्द्रजीत गिरि, ओंकार नाथ पाठक,बालक सूरदास जी सहित सैकड़ों साधु-संन्यासी, शिष्यों एवम् भक्तों ने ब्रह्मलीन स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज को श्रद्धांजलि देते हुए अपने विचार व्यक्त किए ।श्रद्धांजलि सभा का संचालन स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती ने किया । श्रद्धांजलि सभा के पश्चात् दण्डी सन्यासियों का भण्डारा सम्पन्न हुआ, तत्पश्चात् स्वामी जी के शिष्यों, भक्तों, अनुयायियों एवम् आम जनमानस का भण्डारा सम्पन्न किया गया ।

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