योगी राज में पुनः प्रारंभ हुई पंचकोसी परिक्रमा: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
योगी राज में पुनः प्रारंभ हुई पंचकोसी परिक्रमा: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
550 वर्ष पूर्व अकबर के द्वारा पंचकोसी परिक्रमा पर लगा दी गई थी रोक
प्रयागराज में पंचकोसी परिक्रमा का अपना एक अलग आध्यात्मिक महत्व
उत्तर प्रदेश में सीएम योगी के शासनकाल पंचकोसी परिक्रमा हुई प्रारंभ
पंचकोसी परिक्रमा का भारतीय सनातन संस्कृति अध्यात्म में अपना महत्व
फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ के शासनकाल पंचकोसी परिक्रमा का पुर्नप्रारंभ करवाया गया। प्रयागराज में पंचकोशी परिक्रमा पर 550 वर्ष पूर्व अकबर के द्वारा रोक लगा दी गई थी। पंचकोसी परिक्रमा को भारतीय सनातन संस्कृति भारतीयों की भावनाओं साधु-संतों तपस्वी ओ मनीषियों के द्वारा यहां किये जाने वाले जब तप, अनुष्ठान, हवन यज्ञ सहित कठोर साधना को देखते हुए तथा यहां आने वाले श्रद्धालुओं की भावना को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के द्वारा इस पंचकोसी परिक्रमा को फिर से प्रारंभ करवाया गया। यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने कहीं ।
शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती जी के निजी सचिव ब्रिज भूषणआनंद महाराज के द्वारा जारी वक्तव्य में बताया गया है कि प्रयागराज त्रिवेणी संगम पर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज के सानिध्य में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्री महंत स्वामी हरि गिरि महाराज की अध्यक्षता में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के सभापति महंत स्वामी प्रेम गिरी महाराज , जूना अखाड़े के प्रवक्ता महंत नारायणगिरी महाराज , सार्वभौम विश्व गुरु स्वामी करुणा नंद सरस्वती महाराज, प्रयागराज वेणी माधव मंदिर के महंत साध्वी वैभव गिरी, किन्नर अखाड़ा के कई महामंडलेश्वर तथा साधु-संतों के अलावा मेला प्रशासक गौरव श्रीवास्तव, चंडिका त्रिपाठी व श्रद्धालुओं ने विधि विधान और वैदिक मंत्रोचार के साथ पूजा अर्चना कर पंचकोशी परिक्रमा का विधिवत रूप से प्रारंभ किया ।
इस मौके पर काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनंत विभूषित जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्र महाराज ने बताया कि प्रयागराज का भारतीय सनातन संस्कृति में विशेष महत्व रहा है । प्रयागराज में माघ माह के दौरान अनेक ऋषि मुनि, साधु संत, मनीषी, तपस्वी ,योगी ,हठी , कठोर साधना के लिए पहुंचते हैं । यह सभी जप- तप, हवन यज्ञ ,साधना इत्यादि जनकल्याण ,राष्ट्र की एकता अखंडता और आम जन की सुख शांति सहित स्वास्थ्य के लिए ही की जाती है । उन्होंने बताया कि प्रयागराज के पूर्व दिशा में दुर्वासा ऋषि का आश्रम है और पश्चिम में भारद्वाज ऋषि का आश्रम है । उत्तर दिशा में पांडेश्वर महादेव स्थापित है और दक्षिण में पाराशर ऋषि की कुटिया बनी हुई है । पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि यदि प्रयागराज पहुंचकर इन चारों स्थानों के दर्शन यहां आने वाले किसी भी व्यक्ति के द्वारा कर लिए जाएं तो प्रयागराज की परिक्रमा को पूरा मान लिया जाता है । ऐसे किसी भी व्यक्ति के पूर्व जन्म के सभी पाप और कष्ट परमपिता परमेश्वर की कृपा से समाप्त हो जाते हैं ।
प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा में इन चारों तीर्थ स्थानों को शामिल किया जाता है। इस मौके पर उन्होंने गंगा यमुना और सरस्वती पवित्र नदियों के नतमस्तक होकर जनहित में कामना की कि प्रयागराज में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की पंचकोसी परिक्रमा और यात्रा बिना किसी बाधा अथवा विघ्न के संपन्न हो तथा भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी और संकट का सामना नहीं करना पड़े । गौरतलब है कि भारतीय सनातन संस्कृति में देव स्थानों की परिक्रमा का अपना ही एक अलग महत्व है। फिर वह चाहे हमारे अपने आसपास शहर में कोई सैकड़ों वर्ष पुराना मंदिर जहां प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमाएं स्थापित हो या फिर अन्य देव प्रतिमाएं हो । पूजा अर्चना के बाद श्रद्धा पूर्वक परिक्रमा की जाती है । अक्सर यह भी देखा गया है कि त्रिवेणी की पूजा करने के बाद महिलाओं के द्वारा भी अपनी श्रद्धा और इच्छा के मुताबिक परिक्रमा की जाती है । यह सब भारतीय सनातन संस्कृति और संस्कारों का ही एक अभिन्न अंग है।
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