Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय मे पंचायती राज दिवस बडी धूमधाम से मनाया गया

26

प्रधान संपादक योगेश

गुरूग्राम के द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय मे आज राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा पंचायती राज दिवस बडी धूमधाम से मनाया गया। प्रधानाचार्य वीरेन्द्र अंतिल द्वारा कार्यक्रम की शुरूआत भारतीय पंचायती राज व्यवस्था के बारे मे जानकारी दी गई। उन्होने छात्र छात्राओ को इस पंचायती राज मे अपनी भागीदारी को लेकर जोर दिया। विभागध्यक्ष डां रणधीर सिंह द्वारा पंचायती राज व्यवस्था के इतिहास से लेकर वर्तमान समय के महत्व पर प्रकाश डाला। 1870 में लार्ड मेयो ने भारत में स्थानीय शासन लागू करने की अनुशंसा की तथा लार्ड रिपन के कार्यकाल में स्थानीय तोर पर स्थानीय शासन बोर्ड की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय आंदोलनों में गाँधी जी ने पंचायती राज को बढ़ावा दिया गया। आजादी के पश्चात पंचायती राज को संविधान के नीति निदेशक तत्वों(Article-40) में शामिल किया गया। 73 वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती चुनाव में भागीदारी के लिए 21 वर्ष की उम्र का निर्धारण किया गया है। गांव, खंड और जिला स्तर पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्वारा सीधे चुने जायेंगे। इसके अलावा खंड या जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्ही में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा, जबकि गांव स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जायेगा।
73 वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत में संघीय शसन के तीसरे स्तर का निर्माण किया गया है जिसका मूल उद्देश्य केवल प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण नहीं है। बल्कि सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। इसके लिए सभी स्तर पर अनुसूचित जातियों, जनजातियों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में किया गया है। पिछड़े वर्गों के लिए पंचायतों के सभी स्तर पर आरक्षण का निर्धारण राज्य विधान सभाओं के द्वारा किया जायेगा और ज्यादातर राज्य विधानसभाओं ने पिछड़े वर्गों के लिए 27% सीटें आरक्षित की हैं।
संविधान के द्वारा पंचायतों के सभी स्तरों के लिए 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गयी हैं और राज्य सूची का विषय होने के कारण आरक्षण की यह सीमा बढ़ाकर 50% तक कर दी है।
आरक्षण केवल सदस्यों के लिए ही नहीं अपितु अध्यक्ष स्तर के लिए भी किया गया है। जिसका निर्धारण राज्य विधानसभाओं के द्वारा किया जायेगा।

ग्राम पंचायत विकास योजना
ग्राम पंचायत विकास योजना गांव के विकास और बुनियादी सेवाओं के लिये एक वर्ष की योजना है, जिसे सरपंच, पंच और ग्रामीण मिलकर बनाते हैं। ग्राम पंचायत विकास योजना में नागरिकों की जरूरतों और उनकी प्राथमिकताओं का उपलब्ध संसाधनों के साथ मेल खाना जरूरी है। यह योजना ग्राम पंचायतों को पारदर्शी और भागीदारी प्रक्रिया से सभी ग्रामवासियों को शामिल कर के बनानी चाहिये। ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय नागरिकों, गरीबों और हाशिए के लोगों के लिये सही योजना बना कर बुनियादी सेवायें दिलवायें।
हमारा जनतंत्र इस बुनियादी धारणा पर आधारित है कि शासन के प्रत्येक स्तर पर जनता अधिक से अधिक शासन कार्यों में हाथ बटाये और अपने पर शासन करने का उत्तरदायित्व स्वयं प्राप्त करंे। दूसरे शब्दों में ग्रामीण भारत के लिए पंचायती राज ही एक मात्र उपयुक्त योजना है। पंचायतें ही हमारे राश्ट्रीय जीवन की रीढ़ है। जिसमंे गणतंत्र के समस्त गुण पाये जाते हैं। प्रजातंत्र की सार्थकता विकेन्द्रीयकरण में है। यदि शक्तियां विकेन्द्रीकृत हो तो जनता की सहभागिता में वृ़िद्ध होगी और स्थानीय समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर हो जावेगा। स्थनीय लोगों को अपने आसपास की समस्याओं का ज्ञान तो होता ही है, उसका समाधान भी वे अच्छी तरह से कर सकेंगे। भारतीय संविधान मे किया गया 73वां संधोधन इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है। लेकिन इसे सरकारी कार्यक्रम की तरह चलाया गया, परिणामस्वरूप यह योजना जनता को आकर्शित नहीं कर सकी। अतएव 1957 में बलवन्त राय मेहता अध्ययन दल बनाया गया। मेहता समिति ने जनभागी सहभागीता वृद्धि के लिए लोकतांत्रिक विकेन्द्रीयकरण की योजना प्रस्तुत की इस योजना को 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पं. नेहरू ने उद्घाटित किया।

वर्तमान युग में प्रशासकीय जटिलतायें इतनी अधिक बढ़ी हैं कि प्रशासकीय कार्यों का एक ही स्थान पर होना संभव नही है। विकेन्द्रीकरण सत्ता शक्ति और उत्तरदायित्व को इस आधार पर विभाजित किया गया है कि मुख्यालय एवं क्षेत्रीय इकाईयों को समन्वित इकाइयों की तरह कार्य करने का सहज अवसर मिलता है। जो दोश हम केन्द्रीय व्यवस्था में पाते हैं उनसे स्वतः मुक्ति मिल जाती है। नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में विकास की असीम संभावनाऐं लिए 01 नवम्बर 2000 को 26वंे राज्य के रूप में अस्तित्व मंे आया चूंकि पिछड़े राज्यों की श्रंेणी में रहने के कारण पंचायती राज व्यवस्था अधिक कारगर है। लेकिन नक्सली समस्या व नौकरशाहीयों की अहंम प्रवृत्ति के कारण पंचायती राज व्यवस्था को उतनी कारगर सफलता नहीं मिली जितना मिलना चाहिए था।

पंचायती राज व्यवस्था एक एैसी व्यवस्था है, जो केन्द्रिय एवं राज्य सरकारो को स्थानीय समस्याओं के भार से हल्का करती है। उनके द्वारा ही शासकीय शक्तियों एवं कार्यो का विकेन्द्रीकरण किया जा सकता है। प्राजातांत्रिक प्रणाली में कार्यांे का विकेन्द्रीकरण करने पर इस प्रक्रिया में शासकीय सत्ता गिनी चुनी संख्याओं में न रखकर गांव की पंचायत के कार्यकताओं के हाथों में पहुंच जाती है जिससे कि इनके अधिकार और कार्य क्षेत्र बढ़ जाते हैं। स्थानीय व्यक्ति स्थानीय समस्याओं को अच्छे ढंग से सुलझा सकते हैं। क्योकि वे लोग वहां की समस्या एवं परिस्थितियों को अधिक अच्छे से जानते है। इन स्थानीय पदाधिकारियों के बिना ऊपर से प्रारंभ किये हुए राश्ट्र निर्माण के क्रियाकलापों का सुचारूपूर्ण ढंग से चलना भी मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार ग्राम पंचायत स्वस्थ प्रजातांत्रिक परम्पराओं को स्थापित करने के लिए ठोस आधार प्रदान करती है, शासन सत्ता ग्रामवासियों के हाथ में चली जाने से प्रजातांत्रिक संगठनों के प्रति उनकी रूचि जागृत होती है। पंचायती राज व्यवस्था के स्थापित होने से यह संख्या ग्राम व देश के लिए भावी नेतृत्व तैयार करती है। विधायकों तथा मंत्रियों को प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान करती है। जिससे वे ग्रामीण भारत की समस्या से अवगत हो। इस प्रकार गांवों में उचित नेतृत्व का निर्माण करने एक विकास कार्यो में जनता की रूचि बढ़ाने में पंचायतों का प्रभावी योगदान रहता है।

पंचायतें प्रजातंत्र का प्रयोगशाला है। यह नागरिको को अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा देती है। साथ ही उनमें नागरिक गुणों का विकास करने में मदद करती है। पं. नेहरू ने स्वंय कहा था कि “मैं पंचायती राज के प्रति पूर्णतः आशान्वित हूॅं मैं महसूस करता हूॅ कि भारत के संदर्भ में यह बहुत कुछ भौतिक एवं क्रांतिकारी है।“ प्रो. रजनी कोठारी के अनुसारः- “इन संस्थाओ ने नये स्थानीय नेताओं को जन्म दिया है जो आगे चलकर राज्य और केन्द्रीय समाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियो से अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं। इस प्रकार इन संस्थाओं ने देश के राजनीतिक आधुनिकीकरण और सामाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण किया है तथा हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जन हिस्सेदारी में कृशि करके गांवों में जागरूकता उत्पन्न कर दी है।“

इस अवसर पर एम ए प्रथम द्वितीय वर्ष के छात्र छात्राओ खुशबु पुनम आशीष आदि छात्र छात्राओ ने पंचायती राज व्यवस्था के बारे मे जानकारी दी।
साथ ही सवैधानिक रूवरूप महिलाओं की भागीदारी वर्तमान मे पंचायती राज के बदलते स्वरूप पर अपने विचारो को साझा किया। आज के समय मे पंचायती राज व्यवस्था कोई नई व्यवस्था नही है बल्कि वेदो पुराणों के समय से सीमित है। कार्यक्रम के अंत मे डां राजकुमार शर्मा द्वारा पंचायती राज व्यवस्था में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करने पर बल दिया गया। इस अवसर पर डां कुसुमलता डां सुमन कटारिया डां कंवर सिह डां राकेश सुमन तंवर आदि मौजुद रहे।

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading