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Rajni

मालिकी-भाव

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मालिकी-भाव🌻

यदि आपके ऑफिस की कुर्सी टूट जाए,तो आपको कष्ट नहीं होता। और यदि आपके घर की बिल्कुल वैसी ही कुर्सी टूट जाए, तो कष्ट होता है। क्यों?
क्योंकि आपने अपने ऑफिस की कुर्सी के साथ अपना स्वामित्व का संबंध (मालिक वाला संबंध) नहीं जोड़ा था। लेकिन घर की कुर्सी के साथ आपने वह संबंध जोड़ा था, कि आप उस कुर्सी के मालिक हैं और वह आपकी संपत्ति है। इसलिए घर की कुर्सी टूटने पर आपको कष्ट हुआ।
आप के इस व्यवहार से पता चलता है, कि जो कष्ट होता है, वह किसी वस्तु के टूटने या नष्ट होने से नहीं होता,बल्कि उसके साथ जो आपका स्वामित्व का संबंध बना हुआ है, उस कारण से कष्ट होता है।
इसी नियम के आधार पर “यदि आप स्वयं को शरीर का मालिक समझेंगे,तो आप के शरीर के रोगी होने पर, चोट लगने पर, अथवा अन्य किसी प्रकार की कोई हानि हो जाने पर, या हानि होने की संभावना होने पर, आपको अनेक प्रकार की चिंताएं सताएंगी,आप का तनाव बढ़ जाएगा कि “कभी ऐसा न हो, कि मेरा शरीर बिगड़ जाए,टूट जाए, या नष्ट हो जाए या मृत्यु हो जाए।
और यदि आप शरीर का मालिक ईश्वर को मानकर स्वयं को किराएदार मानकर,इस शरीर में रहेंगे तथा इसी भावना से सारे व्यवहार करेंगे, तो आपको चिंता तनाव नहीं होगा। आप अपने शरीर की सुरक्षा भी करेंगे,इसका पूरा उपयोग भी लेंगे। तथा टूट फूट जाने या ऐसी आशंका की स्थिति में आप तनाव से ग्रस्त भी नहीं होंगे।”
जैसे आप ऑफिस की कुर्सी की रक्षा करते और पूरा उपयोग भी लेते हैं। परंतु फिर भी किसी कारण से यदि वह कुर्सी टूट जाए, तो आप को कष्ट नहीं होता,तनाव नहीं होता। “ऐसा ही शरीर के साथ भी समझना चाहिए। इस शरीर को भी ईश्वर का मानकर उपयोग करें। आप अनेक चिंताओं से बचे रहेंगे। इसकी सुरक्षा भी करेंगे। पूरा लाभ भी उठाएंगे, और यदि कुछ हानि हो भी जाए, फिर भी आप तनाव से बचे रहेंगे।

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