पेड़ ही तो काटा है, किसी ने जुबान तो नहीं काट ली !
पेड़ ही तो काटा है, किसी ने जुबान तो नहीं काट ली !
गांव राजपुरा में दशकों पुराने शीशम के पेड़ की ले ली बलि
हेलीमंडी वन विभाग के रेंजर ने मामले में साध रखी है चुप्पी
अब किसके कब्जे में लाखों रुपए कीमत का काटा हरा भरा पेड़
फतह सिंह उजाला
पटौदी । सरकार और वन विभाग निरंतर दावा करते आ रहे हैं अधिक से अधिक पौधारोपण किया जाए और प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल पेड़ों की अवैध रूप से कटाई करने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही की जाए । इसके विपरीत हेली मंडी वन मंडल अधिकारी और कार्यालय पूरी तरह से आंखें बंद किए हुए दिखाई दे रहा है । बीते दिनों पटौदी क्षेत्र के ही गांव राजपुरा में सड़क किनारे और मंदिर के सामने सार्वजनिक स्थान पर कई दशक पुराने भारी भरकम शीशम के पेड़ को कुछ लोगों के द्वारा बिना किसी डर भय और खौफ के काट दिया गया । हालांकि इस मामले में ग्रामीणों के द्वारा पुलिस प्रशासन और डायल 112 पर भी सूचना दी गई । जानकारी के मुताबिक वन विभाग के कर्मचारी भी मौके पर भी पहुंचे । लेकिन इस पूरे प्रकरण में जो बात सामने निकल कर आ रही है या फिर ग्रामीणों के आरोप हैं उसके मुताबिक हेली मंडी वन विभाग कार्यालय के द्वारा पूरी तरह से आंखें बंद करते हुए केवल मात्र जुर्माना लगाकर खानापूर्ति कर दी गई ।
इस पूरे घटनाक्रम में जानकारी लेने के लिए हेली मंडी वन विभाग कार्यालय के रेंजर ऑफिसर राकेश को व्हाट्सएप पर मैसेज और फोटो डालकर जानकारी मांगी गई । लेकिन 48 घंटे से अधिक बीत जाने के बाद भी हेली मंडी वन विभाग के अधिकारी के द्वारा इस पूरे प्रकरण में किसी भी प्रकार की जानकारी देना जरूरी ही नहीं समझा । आरोप अनुसार इस प्रकार के वर्षों पुराने हरे-भरे भारी-भरकम पेड़ों की कटाई वन विभाग के अधिकारियों की जानकारी में आने के बाद जो विभागीय नियमानुसार कानूनी कार्रवाई नहीं किया जाना अपने आप में बहुत बड़ा सवाल बनकर जवाब मांग रहा है । ग्रामीणों के मुताबिक गांव राजपुरा के मंदिर के सामने और सड़क के बीच कई दशक पुराना भारी भरकम शीशम का पेड़ काट दिया गया है। ग्रामीणों के मुताबिक इसी प्रकार से एक पेड़ पहले भी काटा जा चुका है , लेकिन हेली मंडी वन विभाग कार्यालय को शिकायत किया जाने के बावजूद किसी भी प्रकार की ठोस कानूनी कार्यवाही अमल में नहीं लाई जाती है ।
हेली मंडी वन विभाग के अधिकारी राकेश कुमार से यह जानने का प्रयास किया गया की जो शीशम का पेड़ काटा गया , उसकी लकड़ियां आखिर क्या वन विभाग ने अपने कब्जे में ले ली हैं ? शीशम की लकड़ी की मार्केट वैल्यू बहुत अधिक है अथवा यह बहुत महंगी भी दिखती है , ऐसे में जो शीशम का पेड़ काटा गया उसकी अनुमानित मार्केट वैल्यू कितनी रही होगी ? इसके साथ ही वन विभाग के मुताबिक काटा गया पेड़ कितने वर्ष पुराना हो सकता है ? यह सब जानकारी संबंधित अधिकारी के मोबाइल पर व्हाट्सएप भेज कर मांगी गई । लेकिन तीसरा दिन बीत जाने के बाद भी संबंधित अधिकारी ने भेजी गई जानकारी को पढ़ने और काटे गए शीशम के भारी-भरकम पेड़ के फोटो देखे जाने के बावजूद भी कोई जवाब देना जरूरी ही नहीं समझा । हालांकि यह पूरा मामला सोशल मीडिया पर वायरल भी हो चुका है । लोगों के मुताबिक आज के दौर में 44-46 डिग्री तापमान के बीच गांव से आने जाने वाले ग्रामीण वाहनों के इंतजार में इसी हरे भरे शीशम के पेड़ की छाया में बैठे रहते थे । स्कूलों को आने जाने वाले छात्र वर्ग भी इसी पेड़ की छाया में स्कूली वाहनों का इंतजार करते थे । इसके अलावा अक्सर ग्राम के बुजुर्ग भी इसी पेड़ के नीचे बैठकर आपस में चर्चा करते रहते थे।
सवाल यह है कि हरे भरे और विशाल कई दशक पुराने शीशम के पेड़ को बिना किसी डर भय के काट दिया जाने के बाद और इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी हेलीमंडी वन विभाग के अधिकारी के पास पहुंचने के बावजूद उनकी जुबान नहीं खुलना या फिर कोई भी जवाब नहीं देना अपने से वरिष्ठ अधिकारियों को भी एक प्रकार से चुनौती देने से कम भी महसूस नहीं किया जा सकता । वही कथित रूप से गांव राजपुरा के पूर्व सरपंच और मंदिर के बुजुर्ग पुजारी के द्वारा यह कहकर अपना पल्ला झाड़ दिखाया गया कि पेड़ काटे जाने की जानकारी उनके संज्ञान में नहीं है और ना ही इस बात का पता था कि पेड़ काटने से पहले वन विभाग की अनुमति लेना जरूरी है । अब देखना यह है कि जिला के जिला वन अधिकारी और चीफ कंजरवेटिव ऑफिसर इस पूरे घटनाक्रम जिसमें कि लाखों रुपए कीमत का हरा भरा कई दशक पुराना शीशम का पेड़ काट डाला गया । इस पूरे मामले में कितनी गंभीरता से जांच करते हुए दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ किस प्रकार की कारवाई अमल में लाना सकेंगे ? दोषी के खिलाफ किस प्रकार की कारवाई अमल में ला सके, जिससे कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति वर्षों पुराने विशाल और भव्य हरे भरे पेड़ों की हत्या करने का साहस जुटा सके । जिस वृक्ष को अथवा पेड़ को काटा गया , उस पेड़ पर अनगिनत पक्षियों का भी बसेरा था और गर्मी तथा बरसात में इसी पेड़ के नीचे स्थानीय ग्रामीण अन्य लोग भी शरण लेते रहे हैं।
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