संसार का नवीन धर्म-अध्यात्म
संसार का नवीन धर्म-अध्यात्म
उच्च मनोवृत्ति के व्यक्ति स्वाभिमान तथा धर्मरक्षा के लिए अवसर पड़ने पर ‘रोटी’ के प्रश्न की उपेक्षा कर देते हैं और अनेक बार उनको इस कार्य में अपने प्राण भी गँवा देने पड़ते हैं।
हम मानते हैं कि उपर्युक्त उदाहरण किसी विशेष परिस्थिति और विशेष व्यक्तियों के लिए ही हैं। साधारण व्यक्ति भूखा रहकर अथवा कोई हानि सहन करके आध्यात्मिकता का अनुयायी नहीं बन सकता तो भी अन्य लोगों से सत्य, न्याय और सहानुभूति का व्यवहार करना, किसी के साथ वैसा व्यवहार न करना जैसा कि हम अपने लिए नहीं चाहते, अध्यात्म के ऐसे नियम हैं, जिनको सही मानने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। व्यक्ति का हित, समाज का हित, संसार का हित इसी पर निर्भर है। यह कोई जरूरी बात नहीं कि सब लोग अपना धर्म, जातीयता, भाषा, पहिनावा छोड़कर एक से बन जाएँ, पर अपनी संस्कृति, धर्म की रक्षा करते हुये हमें दूसरे की संस्कृति और धर्म का भी आदर करना चाहिए। कलह या संघर्ष की वृद्धि तब होती है जब मनुष्य दुराग्रह या पक्षपात के कारण उचित को छोड़ अनुचित का समर्थन करता है। इसलिए यदि हम संसारव्यापी शांति, सुख, प्रगति के पक्षपाती हैं और चाहते हैं कि हम स्वयं तथा अन्य लोग सुखी जीवन व्यतीत करें तो उसके लिए आध्यात्मिक मार्ग पर चलना ही हमारा कर्त्तव्य है। इसके लिए हमारा प्रथम कर्त्तव्य यही है कि अपने सुख-दुःख के समान दूसरों के सुख-दुःख को भी समझें।
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