नई दिल्ली सरकार बोली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में हमारे प्रतिनिधि शामिल करें कानून मंत्री की CJI को चिट्ठी- इससे 25 साल पुराने सिस्टम में पारदर्शिता-जवाबदेही तय होगी
नई दिल्ली सरकार बोली- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में हमारे प्रतिनिधि शामिल करें कानून मंत्री की CJI को चिट्ठी- इससे 25 साल पुराने सिस्टम में पारदर्शिता-जवाबदेही तय होगी
कानून मंत्री किरण रिजिजू और CJI डीवाई चंद्रचूड़ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी है कि कॉलेजियम में उसके प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए। कानून मंत्री किरण रिजिजू ने CJI को चिट्ठी लिखकर कहा है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकारी प्रतिनिधि शामिल करने से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और जनता के प्रति जवाबदेही भी तय होगी।
किरण रिजिजू ने पिछले साल नवंबर कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। उन्होंने कहा था कि हाईकोर्ट में भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में संबंधित राज्य की सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। लोकसभा उपाध्यक्ष भी कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट अक्सर विधायिका के कामकाज में दखलंदाजी करता है।
केंद्र के सुझाव और जजों की नियुक्ति पर 2 बड़े सवाल
पहला- क्या सुझाव मंजूर करेगा सुप्रीम कोर्ट?
टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कानून मंत्री के सुझाव को सुप्रीम कोर्ट मान ले, ऐसा मुश्किल है। CJI चंद्रचूड़ की अगुआई वाले कॉलेजियम में 4 और सदस्य हैं। इनमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस एमआर शाह शामिल हैं। इन चारों जजों में से कोई भी CJI का उत्तराधिकारी नहीं है जस्टिस संजीव खन्ना को छठवें मेंबर के तौर पर कॉलेजियम में शामिल किया गया है, जो कि CJI के उत्तराधिकारी होंगे।
कॉलेजियम इस सुझाव को सुप्रीम कोर्ट सरकार की नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट (NJAC) लाने की सरकार की नई कोशिश के तौर पर देख रहा है। NJAC को 2015 में संसद में पास किया गया था, लेकिन अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था।
दूसरा- केंद्र जजों के चयन में कैसा बदलाव चाहता है?
जिस NJAC को सुप्रीम कोर्ट 2015 में असंवैधानिक कह चुका है। उसमें जजों की नियुक्ति को लेकर कई बदलाव किए गए थे। इसमें NJAC की अगुआई CJI को करनी थी। इनके अलावा 2 सबसे वरिष्ठ जजों को रखा जाना था। इनके अलावा कानून मंत्री और 2 प्रतिष्ठित लोगों को NJAC में रखे जाने की व्यवस्था थी। प्रतिष्ठित लोगों का चयन प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और CJI के पैनल को करने की व्यवस्था थी। अभी जजों की नियुक्ति पर रिजिजू का पत्र ऐसी ही व्यवस्था के लिए माना जा रहा है।
यह विवाद कब से और क्यों शुरू हुआ…
- जस्टिस रूमा पाल का बयान
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रूमा पाल ने करीब एक दशक पहले कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम प्रक्रिया ने ऐसी धारणा बनाई है कि आप मेरा बचाव करो, मैं आपका। - जजों के नामों को मंजूरी में केंद्र की देरी
केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को मंजूरी देने में देरी कर रही है। सरकार के पास कॉलेजियम की ओर से भेजी गईं करीब 104 सिफारिशें लंबित हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने सरकार से लंबित नामों को जल्द से जल्द निपटाने को कहा था। - केंद्र और संवैधानिक संस्थाओं की टिप्पणी
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति में सरकार की बहुत सीमित भूमिका है। जबकि जजों की नियुक्ति करना सरकार का अधिकार है। देश में 5 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। इसके पीछे मुख्य कारण जजों की नियुक्ति है। - सुप्रीम कोर्ट का इस पर पक्ष
कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जारी बयानबाजी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है। यह देश का कानून है और हर किसी को इसका पालन करना चाहिए।
अब समझें कॉलेजियम है क्या
यह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अप्वाइंट किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में होते हैं 5 सदस्य
कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। CJI इसमें प्रमुख होते हैं। इसके अलावा 4 मोस्ट सीनियर जज होते हैं। इसके सदस्यों में CJI यूयू ललित, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस के.एम जोसेफ शामिल हैं। कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके नाम की सिफारिश केंद्र से करता है।
केंद्र जो बदलाव चाहती है इजरायल में सरकार के उसी तरह के प्रस्ताव का विरोध हो रहा
इजरायल संसद में पेश एक प्रस्ताव के विरोध में करीब 80 हजार लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
इजरायल संसद में पेश एक प्रस्ताव के विरोध में करीब 80 हजार लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
इजरायल की बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने संसद में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को नियंत्रित करने के कानून का प्रस्ताव पेश किया है, जिसके विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। अगर यह प्रस्ताव पास होता है तो इजरायल की संसद को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का पलटने का अधिकार मिल जाएगा।
संसद में जिसके पास भी बहुमत होगा, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकेगा। वहीं, तेल अवीव में करीब 80 हजार लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। उनका कहना है कि इससे देश का लोकतंत्र और सुप्रीम कोर्ट कमजोर होगा। भ्रष्टाचार बढ़ेगा और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कमी आएगी। प्रदर्शनकारी पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की तुलना रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से भी कर रहे हैं।
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