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बौधिक दिव्यांग बच्चो के लिए राष्टीय बौधिक दिव्यां सशिक्तकरण संस्थान ने शिक्षण किट का वितरण

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प्रधान संपादक योगेश

गुरूग्राम मे स्थित गांव दौलताबाद के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विघालय में बौधिक दिव्यांग बच्चो के लिए राष्टीय बौधिक दिव्यां सशिक्तकरण संस्थान ने शिक्षण किट का वितरण किया। कार्यकम का आयोजन स्कूल की प्रधानाचार्या अंजु पारूथी द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथि जिला परियोजना संयोजक कल्पना रंगा ने शिक्षा की देवी मां सरस्वती की पूजा करके शुरूआत की। उनके द्वारा बच्चो को आर्शीवाद दिया गया व विकलांग बच्चों को शिक्षा व जिन्दगी मंे आगे बढने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम मे बच्चो को एन ई पी आई डी से उपस्थित समाज सेवी शबरी घोष द्वारा बच्चो को उनकी केस हिस्ट्री देखकर उनको टी एल एम किट प्रदान की गई। शबरी घोष द्वारा बच्चों को टी एल एम किट देकर उनके अभिभावको को ट्रेनिंग दी गई ।


ट्रेनिंग के बाद शबरी घोष व स्कूल प्रधानाचार्या ने अपने विचार रखे विकलांगों के जीवन की अधिकांश समस्याओं की और हमने अभी तक ध्यान नहीं दिया है। अपने सामाजिक परिसर में हम जिन्हें विकलांग कहते हैं, उनके प्रति उपेक्षा और घृणा से मिश्रित दयाभाव का ही हमारे भीतर सृजन होता है। हम भूल जाते हैं कि महाराज विदेह जनक की सभा में अष्टावक्र की अंगरचना ने विकलांगवर्ग की बौद्धिक श्रेष्ठता का जयघोष किया था। तैमूर के अभियानों ने विकलांगों की विजय-आकांक्षा का शंखनाद किया था, सूरदास की बंद आँखों ने वात्सल्य और श्रृंगार के अँधेरे कोनों का सजग उद्घाटन किया था, मिल्टन की लुप्त नेत्र-ज्योति ने श्पैराडाइज लॉस्ट की प्रखर सर्जना की थी। ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास में बिखरे हुए हैं, फिर भी समाज की धारणा विकलांगों के प्रति अत्यंत उपेक्षापूर्ण रही है। उनकी आकृति तथा अंग-संचालन का उपहास किया गया है अथवा उन्हें दया का पात्र बनाकर परजीवी घोषित किया गया है। शताब्दियों से उपेक्षित इन्हीं विकलांगों की समस्याओं की और ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से 1981 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग वर्ष घोषित किया गया। समूचे देश में विकलांगों को कहीं नैसर्गिक विकलांगता का सामना करना पड़ता है। तो कहीं दुर्घटनाओं, रोगों तथा असामाजिक तत्त्वों द्वारा विकलांगता का शिकार होना पड़ता है। अधिकांश विकलांग ऐसा अनुभव करते हैं कि समाज उनके प्रति उपेक्षा-भाव रखता है, लोग उनसे घृणा करते हैं। अपने समूचे जीवन को अर्थहीन मानकर असहाय और विवश जीवन बिताने के लिए बाध्य विकलांग की समस्याएँ भिक्षावृत्ति से जुड़कर और भी दुःखद हो जाती हैं। तिरस्कृत विकलांग समाज से टूटकर, लोगों के दुर्व्यवहार से पीड़ित होकर भीख माँगने के लिए विवश हो जाते हैं।

स्थिति यह है कि भारत में लगभग 83 लाख भिखारी हैं, जिनमें लगभग 17 लाख अपंग हैं। प्रारंभ में भीख माँगना एक विवशता हो सकती है, लेकिन बाद में यह आदत बन जाती है। निराश्रित तथा उपेक्षित विकलांगों के पास भीख माँगना ही अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन रह जाता है। अब समय आ गया है कि हम अपने परिवेश के इन विकलांगों की समस्याओं को अपनी समस्या समझें और उनके कुंठित व्यक्तित्व को विकास की सही दिशा दें। शरीर के विकलांग हो जाने पर भी मन के घोड़े विकलांग नहीं हो जाते, उनकी उड़ान सभी दिशाओं का स्पर्श करती है। वस्तुतः, विकलांगों को दया की नहीं, सहयोग की आवश्यकता हैय सहानुभूति की नहीं, साहचर्य की आवश्यकता है। कृत्रिम अंग-प्रत्यारोपण एवं आर्थिक स्वावलंबन की सुविधा प्रदान करने से उनका मानसिक विकास हो सकता है।
विकलांगों की जिजीविषा को ऊँचाई प्रदान करने, एक सम्मानित स्तर प्रदान करने का कोशिशें ही समाज के इस सर्वाधिक उपेक्षित वर्ग को सही संसार दे सकता है। वर्तमान व्यवस्था का कमजोरियों ने विकलांगों की समस्याओं के समाधान की दिशा में अपनी शिथिलता दिखलाया है।

संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत, जहां शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है और विकलांग अधिनियम 1995 के अनुच्छेद 26 में विकलांग बच्चों को 18 वर्षों की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है ।
शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग बालकों के समायोजन एवं उनकी समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षकों के सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए। यदि कक्षा में कोई शारीरिक रूप से अपंग बालक हो, तो उसके कक्षा में प्रवेश एवं उनके बैठने के लिए समुचित व्यवस्था किया जाना सर्वाधिक आवश्यक है।
विकलांगता की सबसे दुखदायक स्थिति होती है मानसिक तौर से पूरी तरह विकास न हो पाना. इस समस्या से पीड़ित लोग समाज में दया और स्नेह के पात्र होते हैं लेकिन यह कठोर समाज इन्हें अछूत मानता है. शारीरिक तौर से किसी भी तरह की कमी को शारीरिक विकलांगता का नाम दिया जा सकता हैं.। विकलांगता अधिनियम के तहत विकलांग व्यक्तियों को क्या अधिकार है?

दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995. यह एशियाई एवं प्रशांत क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता की उद्घोषणा को कार्यान्वित करता है और उनकी शिक्षा, उनके रोजगार, बाधारहित परिवेश का सृजन, सामाजिक सुरक्षा, इत्यादि का प्रावधान करता है दिव्यांग बच्चों की देखभाल करें कुछ यूं कि वो ना समझें खुद को कमजोर
आत्मनिर्भर बनाएं …
किसी से तुलना ना करें …
क्षमता से अधिक करने के लिए ना कहें …
कमेंट ना करें …
सहानुभूति दर्शाने वालों को रखें दूर …
बच्चे में ना पनपने दें हीन भावना भारत सरकार ऐसे विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती ह। ताकि स्कूल के बाद के स्तर पर पढ़ाई में उन्हें मदद मिल सके। सरकार यह छात्रवृत्ति जारी रखेगी व इसके कवरेज का विस्तार करेगी। विभिन्न प्रकार की उत्पादक गतिविधियों के लिए उपयुक्त योग्यता निर्माण के लिए तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा सुविधा प्रदान की जाएगी।
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पाठ्यक्रम को विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम डिजायन हेतु अलग-अलग रूपरेखाएं अपनाई जा सकती हैं जो सार्वभौमिक और अनुकूलन के लिए उपयुक्त हैं. भौतिक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता, स्कूल में प्रक्रियाएं, सहायक और आईसीटी प्रौद्योगिकी एवं उपकरण भी आवश्यक संसाधन हैं
शिक्षा में बदलाव के बीच दिव्यांग बच्चों के लिए ऐसे शिक्षकों की जरूरत अधिक बढ़ी है, जो ऐसे विशेष बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें किसी विशेष कौशल में निपुण भी बनाएं, ताकि बच्चों की जिंदगी आसान हो सके।दिव्यांग होने का मतलब ये नहीं है कि आप किसी कार्य को कर नहीं सकते, बल्कि आप उस कार्य को एक अलग और विशेष प्रकार से कर सकते हैं। और भारत की नई शिक्षा नीति दिव्यांगों के लिए इसी सोच पर बल देती है।ई शिक्षा नीति से पूरे विश्व को भारतीय दर्शन के बारे में पता चलेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के विमर्श का आयोजन कर समस्याओं का समाधान तलाशने की आवश्यकता है

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