संगीत वाह माध्यम है जो मन के तार ईश्वर से जोड़े: हंसराज हंस
संगीत वाह माध्यम है जो मन के तार ईश्वर से जोड़े: हंसराज हंस
संगीत को सुनते ही ऐसा लगे कि यह तरग स्वयं परमात्मा के दर से आ रही
संगीत एक ऐसी साधना है जो मन को एकाग्र कर ईश्वर के समीप ले आती
मानव शरीर और संगीत के सात सुर परमात्मा की हमारे लिये सबसे बड़ी देन
ओरआरसी में अमृत महोत्सव की लहर, कला की नवीन प्रहर’ का आयोजन
फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम । संगीत वाह माध्यम है जो मन के तार ईश्वर से जोड़ दे। जिसको सुनते ही ऐसा लगे कि ये स्वयं परमात्मा के दर से आ रहा है। बात सासंद पद्मश्री हंसराज हंस ने ब्रह्माकुमारीज़ के कला एवं संस्कृति प्रभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कही। पटौदी क्षेत्र के सबसे बड़े गांव बोहड़ाकला में स्थित ओम शान्ति रिट्रीट सेन्टर में ‘अमृत महोत्सव की लहर, कला की नवीन प्रहर’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ये मानव शरीर परमात्मा की सबसे बड़ी देन है। इसके द्वारा हमें वो श्रेष्ठ कर्म करने हैं, जिनमें मानव जीवन का हित हो। उन्होंने कहा कि संगीत से मेरा जुड़ाव बचपन से ही रहा। संगीत एक ऐसी साधना है जो मन को एकाग्र कर ईश्वर के समीप ले आती है। साथ ही उन्होंने अपनी मधुर और सुरीली आवाज़ में एक बहुत सुन्दर भजन गाकर सभी को परमात्म स्नेह के रस में भिगो दिया।
कला एवं संस्कृति आत्मा के मूलभूत गुण
इस अवसर पर अपने आशीर्वचन देते हुए ओ.आर.सी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने कहा कि कला एवं संस्कृति आत्मा के मूलभूत गुण हैं। हर आत्मा एक कलाकार है। उन्होंने कहा कि परमात्मा जोकि परम कलाकार भी है, उसने हर आत्मा के अन्दर कोई न कोई कला अवश्य दी है। उन्होंने कहा कि हर कर्म को कला के रूप से करना ही सबसे बड़ा कलाकार होना है। कला वास्तव में एक तपस्या है। तपस्या से ही कला में निखार आता है। उन्होंने कहा कि कला को सदा परमात्मा की देन समझकर उपयोग करने से ही समाज का हित कर सकते हैं। कला एवं संस्कृति प्रभाग के अध्यक्ष बी.के.दयाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब हम हर कर्म में परमात्मा को याद करते हैं तो वो हमारी मदद अवश्य करता है। उन्होंने कहा कि वास्तव में परमात्मा ही हमारा सच्चा मनमीत है। जब कोई सहारा नहीं होता तब हर व्यक्ति उसका ही सहारा अनुभव करता है। परमात्मा की मदद का अनुभव करने के लिए हमारा मन बहुत स्वच्छ और निर्मल होना चाहिए। कला एवं संस्कृति प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजक बी.के.पूनम ने संस्था का परिचय देते हुए कहा कि कला के प्रति समर्पण भाव ही एक श्रेष्ठ कलाकार को जन्म देता है। उन्होंने कहा कि कला में मूल्यों का समावेश ही फिर से हमारी सनातन दैवी संस्कृति की पुनर्स्थापना कर सकता है। संस्था के मुख्यालय माउन्ट आबू से पधारे कला एवं संस्कृति प्रभाग के संयोजक बी.के.सतीश ने कहा कि भारत ही विश्व में कला एवं संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ केन्द्र रहा है। लेकिन वर्तमान समय उस सनातन संस्कृति के केवल चिन्ह रह गये हैं। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य पुनरू उस आदि सनातन दैवी संस्कृति की स्थापना करना है।
योग से कलाकार की कला में नवीनता
दिल्ली, करोलबाग सेवाकेन्द्र प्रभारी राजयोगिनी पुष्पा दीदी ने सभी को राजयोग के अभ्यास से शान्ति की गहन अनुभूति कराई। उन्होंने कहा कि योग से ही एक कलाकार अपनी कला में नवीनता ला सकता है। योग ऐसा माध्यम है जिससे हमारा मन श्रेष्ठ एवं रचनात्मक विचारों को जन्म देता है। ओम शान्ति रिट्रीट सेन्टर के विषय में बोलते हुए बी.के.सुनैना ने बताया कि 30 एकड़ भूमि में फैला ये विशाल परिसर पिछले 20 वर्षों से मानव मूल्यों की पुनर्स्थापना का एक महान कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा एवं शान्ति की तरंगें स्वतरू ही लोगों को आकर्षित करती हैं। कार्यक्रम में कला एवं संस्कृति प्रभाग के द्वारा आयोजित अनेक प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में काफी संख्या में कलाकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में बी.के.अनिल ने अपने शब्दों से सबका धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन बी.के.भावना एवं बी.के.रचना ने किया।
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