सड़कों पर उतरे 10 हजार से अधिक किसान, बसों में भरकर पहुंचे… महिलाओं ने संभाला मोर्चा
नोएडा अथॉरिटी पर महापंचायत : सड़कों पर उतरे 10 हजार से अधिक किसान, बसों में भरकर पहुंचे… महिलाओं ने संभाला मोर्चा –
नोएडा : नोएडा में पिछले कई दिनों से धरने पर बैठे किसानों ने आज महापंचायत का ऐलान किया है। इस महापंचायत गौतमबुद्ध नगर के 100 से अधिक गांवों के किसान नोएडा अथॉरिटी पर पहुंच रहे हैं। अथॉरिटी के आसपास गहमा-गहमी का माहौल है। किसान लगातार बसों, ट्रैक्टरों और टेंपो में बैठकर अथॉरिटी पहुंच रहे हैं। महापंचायत को सफल बनाने में महिलाएं और युवा जुटे हुए हैं। इसमें बड़ी संख्या में युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए पहुंच रहे हैं। नोएडा अथॉरिटी के गेट पर और आसपास भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है।
प्राधिकरण की 24 घंटे निगरानी
भारतीय किसान परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखवीर ख़लीफ़ा ने कहा कि परिषद का प्रतिनिधिमंडल गांव-गांव जाकर किसानों को महापंचायत में आने के लिए आमंत्रित किया है। मंगलवार को धरना स्थल पर महापंचायत में तय किया जाएगा कि प्राधिकरण पर तालाबंदी करनी है या अन्य रणनीति के तहत धरने को आगे बढ़ाना है। महापंचायत में जो भी निर्णय होगा, उसके अनुरूप आगे की रणनीति तय की जाएगी। महापंचायत में 10 हजार से अधिक संख्या में किसान पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि अब यहां प्राधिकरण की 24 घंटे निगरानी की जाएगी। ये निगरानी मातृ शक्ति यानी महिलाएं करेंगी। महिलाओं ने भी इस पर हामी भरी है। ऐसे में उनके सोने से लेकर खाने पीने का इंतजाम यहां कर दिया गया है।
प्राधिकरण पर धरना देने को मजबूर : सोनू यादव
किसान नेता सोनू यादव ने बताया कि किसानों को 10 प्रतिशत आबादी के भूखंड, 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा देने सहित कई मांगों को लेकर संघर्ष किया जा रहा है। जब तक हमारा हक नहीं दिया जाएगा, तब तक लड़ाई जारी रहेगी। हमें केवल झूठे वादे नहीं चाहिए, अब हमें ठोस कार्रवाई चाहिए। तत्काल प्रभाव से हमारा मुआवजा चाहिए। हमारे प्लॉट चाहिए। हमें सुविधाएं चाहिए और हम इसको लेकर आरपार की लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि भूमि अधिग्रहण के 50 साल बाद भी किसानों को उनका हक नहीं दिया गया है। किसान अपनी मांगों को लेकर काफी सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके बावजूद इंसाफ की रोशनी कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है, जिसकी वजह से किसान दोबारा प्राधिकरण पर धरना देने को मजबूर हैं।
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