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मतिदास, सतीदास और दयाला 9 एवं 10 नवम्बर बलिदान दिवस

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मतिदास, सतीदास और दयाला 9 एवं 10 नवम्बर बलिदान दिवस

औरंगजेब ने गुस्से में पूछाः मतिदास कौन है? कौन है मतिदास…????. तो भाई मतिदास ने आगे बढ़कर कहा मैं हूँ मतिदास

यदि गुरुजी आज्ञा दें तो मैं यहाँ बैठे-बैठे दिल्ली और लाहौर का सभी हाल बता सकता हूँ । तेरे किले की ईंट-से-ईंट बजा सकता हूँ ।

औरंगजेब गुर्राया और उसने भाई मतिदास को धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश करने के उद्देश्य से अनेक प्रकार की यातनाएँ देने की धमकी दी।
खौलते हुए गरम तेल के कड़ाहे दिखाकर उनके मन में भय उत्पन्न करने का प्रयत्न किया, परंतु धर्मवीर पुरुष अपने प्राणों की चिन्ता नहीं किया करते हैं।
धर्म के लिए वे अपना जीवन उत्सर्ग कर देना श्रेष्ठ समझते हैं ।
जब औरंगजेब की सभी धमकियाँ बेकार गयीं सभी प्रयत्न असफल रहे तो वह चिढ़ गया उसने काजी को बुलाकर पूछा बताओ इसे क्या सजा दी जाये?
काजी ने हवाला देकर हुक्म सुनाया कि इस काफिर को इस्लाम ग्रहण न करने के आरोप में आरे से लकड़ी की तरह चीर दिया जाये ।

औरंगजेब ने सिपाहियों को काजी के आदेश का पालन करने का हुक्म जारी कर दिया।

दिल्ली के चाँदनी चौक में भाई मतिदास को दो खंभों के बीचरस्सों से कसकर बाँध दिया गया और सिपाहियों ने ऊपर से आरे के द्वारा उन्हें चीरना प्रारंभ किया।

किंतु उन्होंने सी तक नहीं की।

औरंगजेब ने पाँच मिनट बाद फिर कहाः

अभी भी समय है यदि तुम इस्लाम कबूल कर लो तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा और धन दौलत से मालामाल कर दिया जायेगा.

वीर मतिदास ने निर्भय होकर कहा

मैं जीते जी अपना धर्म नहीं छोड़ूँगा.
ऐसे थे धर्मवीर मतिदास. जिन्हे अपना बलिदान देकर धर्म की रक्षा की भाई मतिदास इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शहीदों में गिने जाते हैं ।

भाई मतिदास के छोटे भाई सतीदास को अगले दिन 10 नवम्बर को रुई में लपेट कर ज़िन्दा जला दिया गया और भाई दयाल दास को पानी में उबाल कर मारा गया ।
इन्हें मृत्यु प्यारी थी पर धर्म परिवर्तन नहीं ।
ग्राम करयाला जिला झेलम वर्तमान पाकिस्तान तत्कालीन अविभाजित भारत निवासी भाई मतिदास एवं सतीदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है ।
उनके परदादा भाई परागा छठे गुरु हरगोविन्द के सेनापति थे उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे.

उन के समर्पण को देख कर गुरुओं ने उनके परिवार को भाई की उपाधि दी थी.

भाई मतिदास के एकमात्र पुत्र मुकन्द राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था।

भाई मतिदास के भतीजे साहबचन्द और धर्मचन्द गुरुगोविंद सिंह के दीवान थे । साहबचन्द ने व्यास नदी पर हुए युद्ध में तथा उन के पुत्र गुरुबख्श ने अहमदशाह अब्दाली के अमृतसर में हरिमन्दिर साहिब पर हुए हमले के समय उसकी रक्षार्थ अपने प्राण दिये थे ।

इसी वंश के क्रांतिकारी भाईबालमुकुन्द ने 8 मई, 1915 ई. को केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी.

उनकी पत्नी रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी थी.

लाहौर में भगत सिंह आदि सैकड़ों क्रांतिकारियों को प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी वंश के तेजस्वी नक्षत्र थे ।

ॐ नमोऽस्तुते नमोऽस्तुते नमोऽस्तुते मातृभूमे नमः
जय हिन्द जय भारत माँ🙏🏻

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