Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

मार्कंडेय पुराण-अध्याय1️⃣1️⃣2️⃣

25

मार्कंडेय पुराण-अध्याय1️⃣1️⃣2️⃣
राजापुर वध की कथा ♻️

मार्कण्डेयजी बोले—
सावर्णि मनु के पुत्र राजा पूर्वध्र एक बार नृगया के लिये बन में गये और वे वहाँ पर घूमते घूमते बहुत दूर एक निर्जन वन में पहुँच गये।

परन्तु उनको कोई नृग न मिला और वे सूर्य की गर्मी से संतप्त होकर इधर-उधर घूमने लगे ॥२॥ उनको दूर से एक होमधेनु दीख पड़ी जो कि वस्तुतः एक अग्निहोत्री ब्राह्मण की थी।

राजा पृषध्र ने उसको नीलगाय समझकर उसके एक बाण मारा जिसके लगते ही उसकी छाती फट गई और वह पृथ्वी पर गिर पड़ी।

तव उस अग्निहोत्री के ब्रह्मचारी और तपस्वी पुत्र ने पिता की होमधेनु को देखकर राजा को शाप दिया।

हे मुनि! बाभ्रव्य नाम उस पुत्र को गाय चराने के लिये भेजा गया था उसकी चित्त वृत्ति क्रोधयुक्त होगई और गुस्से से उसे पसीना आ गया तथा उसके नेत्र चंचल होगये।

राजा पृषभ उस मुनि कुमार को क्रोधित हुत्रा देखकर उससे कहने लगे. “प्रसन्न हूजिये,

आप शुद्र की तरह क्रोध क्यों करते हैं विशिष्ट ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर भी आप शूद्रवत् होगये,ऐसा क्रोध तो क्षत्रिय और वैश्य भी नहीं करते ॥

मार्कण्डेयजी बोले–
जब राजा ने मौलि पुत्र वाभ्रव्य की इस तरह ने भर्त्सनाकी तो उन्होंने राजासे कहा, “हे दुरात्मन् ! तू शद ही होगा।

कि तुमने मेरे गुरु की होमधेनु को मारा है इसलिये जो कुछ वेद-वाक्य तुमने अपने गुस्से पढ़े हैं वे तुम सब भूल जाओगे।

इस प्रकार शाप दिये जाने पर राजा को दुःखऔर क्रोध उत्पन्न हुआ और उन्होंने मुनिपुत्र को शाप देने के लिये हाथ में जल ले लिया।

उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने भी राजा के नष्ट करने के लिये कोप किया। दैवात् उसी समय मुनिकुमार के पिता ने शीघ्र वहां पहुंच कर उनको रोका।

उसने कहा कि हे पुत्र ! व्यर्थ इतना कोध मत करो, क्रोध ब्राह्मण का शत्रु है ।

इस लोक और परलोक में ब्राह्मण का हित इसी में है कि वह. शान्त रहे। कोप तप को नष्ट करता है। क्रोधी का ज्ञान तथा धन नाश्य को प्राप्त होजाता है।

क्रोधी का धर्म नहीं रहता और न उसको धन ही मिलता है। अभिलाषा पूर्ण होने पर भी क्रोधियों को सुख नहीं मिलता है ।

यदि राजा ने अनजान में इस गाय को मार दिया है तो हमको अपने हितका विचार करके इन पर दया करना चाहिये।

अर्थात् जब इन्होंने बिना जाने भूल से मेरीको गाय मार दिया है तो यह शाप के योग्य किस प्रकार है कारण इनका मन शुद्ध है।

वे मनुष्य दूसरे हैं जो अपनी भलाई के लिये दूसरे को दुःख देते हैं, जो लोग कर्तव्य का ज्ञान न होने पर अर्थात् से अपराध करते हैं वे केवल दया के पात्र है।

यदि शानी लोग अज्ञान से किये हुए कार्य को दण्डित करें तो उन ज्ञानियों से मैं अज्ञानी लोगों को अधिक अच्छा समझता हूँ।

पुत्र ! तुम्हें राजाको शाप नहीं देना चाहिये कारण इस गौने अपनी आयु समाप्त करके मृत्यु पाई है।

मार्कण्डेयजी बोले•–
इसके बाद पूपन ने प्रणाम कर मुनिकुमार से कहा, “आप प्रसन्न हों, मैंने अज्ञान में इस गाय को मारा है।

हे मुनि ! मैंने विना जाने अवध्या गायको नीलगाय समझकर मारा है। है मुनि! आप मुझ पर कृपा करें।

ऋषिपुत्र बोले–
हे राजन् ! मैंने आजन्म कभी मिथ्यानहीं बोला श्रतः हे महाभाग ! मेरा क्रोध झूठा न होगा।

अतः अव मैं इस शाप को अन्यथा नहीं करसकती परन्तु दूसरा शाप जो कि मैं देने को उद्यत था श्रव न दूंगा।

इस प्रकार कहते हुए उस मुनि कुमार को उसके पिता श्राश्रममें लेगये और राजा – पूषन भी शाप वश शूद्र हो गये।


इति श्रीमार्कण्डेयपुराण में पूषध उपाख्यान कथन नामक
🙏🏻एक सो बारहवाँ अध्याय समाप्त 🙏🏻

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading