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“बांसुरी के तीन गुणों से तीन बातें सीख कर अपने जीवन को सुखी बनाएंं।”

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“बांसुरी के तीन गुणों से तीन बातें सीख कर अपने जीवन को सुखी बनाएंं।”

बांसुरी में पहला गुण है, कि “इसमें कहीं भी गांठ नहीं होती। गांठवाली लकड़ी से बांसुरी ठीक से बनती नहीं, और उससे ध्वनि भी अच्छी नहीं निकलती।” इसलिए बांसुरी बनाने वाले ऐसी लकड़ी चुनते हैं, जिसमें गांठ ना हो। इस बात से आप यह सीख सकते हैं, कि “यदि आप जीवन में सुखी रहना चाहते हैं, तो दूसरों के प्रति अपने मन में गांठ न रखें अर्थात दूसरों से द्वेष न करें। यदि मन में गांठ होंगी अर्थात आप दूसरे लोगों से द्वेष करेंगे, तो वह द्वेष आपको दुखदायक होगा, सुख नहीं देगा।”
बांसुरी में दूसरी विशेषता यह होती है, कि “वह अपने आप नहीं बजती, बजाने पर ही बजती है।” इस बात से आप यह सीख सकते हैं, कि “जब आवश्यकता हो तभी बोलें, बिना आवश्यकता के न बोलें। इससे वाणी पर आपका संयम बना रहेगा और बोलने में गलतियां कम होंगी। जो व्यक्ति वाणी पर संयम नहीं रखता, दिन भर बोलता ही रहता है, बिना प्रमाण और तर्क के बोलता रहता है, तो वह बोलने में बहुत अधिक गलतियां करता है। इसलिए गलतियों से बचने के लिए सीमित बोलना, आवश्यकता के अनुसार बोलना ही ठीक रहता है।”
बांसुरी में तीसरा गुण यह है, कि “बांसुरी जब भी बजती है, उससे बहुत मीठी सुरीली ध्वनि निकलती है।” तो इस बात से आप यह बात सीख सकते हैं, कि “जब भी बोलें, मीठा बोलें, कड़वी भाषा न बोलें। क्योंकि वह किसी को भी पसंद नहीं आती। यदि दूसरा व्यक्ति भी आपके साथ कड़वी भाषा बोले, तो आपको भी अच्छी नहीं लगेगी। इसलिए आप भी दूसरों के साथ कड़वी भाषा न बोलकर, सदा मीठी भाषा बोलें।” इससे दूसरों को सुख मिलेगा। बस यही सुखी जीवन का रहस्य है। “जो दूसरों को सुख देता है, ईश्वर और बुद्धिमान समाज उसे सुख देता है। जो दूसरों को दुख देता है, ईश्वर और बुद्धिमान समाज भी उसे दुख देता है।” “कुछ मूर्ख और दुष्ट लोग तो सदा होते ही हैं। वे सदा ही असभ्यता करते हैं, और भविष्य में भी करेंगे। उनके साथ झगड़ा न करें। ऐसे लोगों से बचकर रहें, दूर रहें, तभी जीवन में शांति रहेगी।”

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