जो हो रहा है उसे होने दो !!
जो हो रहा है उसे होने दो !!
रामकृष्ण परमहंस जी को गले का कैंसर था। पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया,भोजन भी जाना मुश्किल हो गया। तो विवेकानंद ने एक दिन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस से कहा कि – आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नही करते ? क्षणभर की बात है,आप कह दें और गला ठीक हो जाएगा ! तो रामकृष्ण हंसते रहते,कुछ बोलते नहीं। एक दिन बहुत आग्रह किया तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा – तू समझता नहीं है रे नरेन्द्र। जो अपना किया है,उसका निपटारा कर लेना जरूरी है। नहीं तो उसके निपटारे के लिए फिर से आना पड़ेगा। तो जो हो रहा है,उसे हो जाने देना उचित है। उसमें कोई भी बाधा डालनी उचित नहीं है।
तो विवेकानंद बोले-इतना ना सही, इतना ही कह दें कम से कम कि गला इस योग्य तो रहे कि जीते जी पानी जा सके,भोजन किया जा सके ! हमें बड़ा असह्य कष्ट होता है,आपकी यह दशा देखकर। तो रामकृष्ण परमहंस बोले “आज मैं कहूंगा।
जब सुबह ऊठे,तो जोर-जोर से हंसने लगे और बोले – आज तो बड़ा मजा आया। तू कहता था ना, माँ से कह दो । मैंने कहा माँ से, तो मां बोली -” इसी गले से क्या कोई ठेका ले रखा है ? दूसरों के गलों से भोजन करने में तुझे क्या तकलीफ है ?
हँसते हुए रामकृष्ण बोले -” तेरी बातों में आकर मुझे भी बुद्धू बनना पड़ा ! नाहक तू मेरे पीछे पड़ा था ना । और यह बात सच है, जाहिर है, इसी गले का क्या ठेका है ? तो आज से जब तू भोजन करे,समझना कि मैं तेरे गले से भोजन कर रहा हू। फिर रामकृष्ण बहुत हंसते रहे उस दिन,दिन भर। डाक्टर आए और उन्होंने कहा, आप हंस रहे हैं ? और शरीर की अवस्था ऐसी है कि इससे ज्यादा पीड़ा की स्थिति नहीं हो सकती ! *रामकृष्ण ने कहा – ” हंस रहा हूं इससे कि मेरी बुद्धि को क्या हो गया कि मुझे खुद खयाल न आया कि सभी गले अपने ही हैं। सभी गलों से अब मैं भोजन करूंगा ! अब इस एक गले की क्या जिद करनी है !
कितनी ही विकट परिस्थिति क्यों न हो, संत कभी अपने लिए नहीं मांगते, साधू कभी अपने लिए नही मांगते, जो अपने लिए माँगा तो उनका संतत्व ख़त्म हो जाता है । वो रंक को राजा और राजा को रंक बना देते है लेकिन खुद भिक्षुक बने रहते है।
👉जब आत्मा का विश्वात्मा के साथ तादात्म्य हो जाता है तो फिर अपना-पराया कुछ नही रहता,इसलिए संत को अपने लिए मांगने की जरूरत नहीं क्योंकि उन्हें कभी किसी वस्तु का अभाव ही नहीं होता।
🌸हम बदलेंगे,युग बदलेगा।🌸
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