श्रम बाहर से, धर्म भीतर से और उपासना लक्ष्य को शुद्ध करती : शंकराचार्य नरेंद्रानंद
श्रम बाहर से, धर्म भीतर से और उपासना लक्ष्य को शुद्ध करती : शंकराचार्य नरेंद्रानंद प्रमाण दूसरों के लिए होते हैं, प्रमाण स्वयम् के लिए नहीं होते शुद्ध अन्त:करण में ही ब्रह्म और आत्मा की एकता का बोध होता फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । ऊर्ध्वाम्नाम श्री काशी सुमेरु पीठ, डुमराँव बाग कालोनी-अस्सी, वाराणसी में चातुर्मास कर रहे पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने अपने चातुर्मास प्रवचन “ब्रह्म साधना ” के विषय में कहा कि श्रम बाहर से शुद्ध करता है और धर्म भीतर से, उपासना लक्ष्य को शुद्ध करती है, योगाभ्यास दृष्टा को दृश्य से अलग करता है, जिससे आत्मा को जाना जाता है । यह बात शंकराचार्य के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा मीडिया के साथ सांझा की गई है । शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद महाराज ने कहा साधन साध्य की बात नहीं करता । वह तो सिद्ध वस्तु की बात कहता है । वह पाप, पुण्य, स्वर्ग, नरक, पुण्यात्मा पापी की बात नहीं करता ।वह तो ब्यक्ति के कोरे अज्ञान की बात करता है । वेदान्त जो बात बताता है, वह किसी दूसरे साधन से मिल ही नहीं सकती । इसका कर्म, उपासना, योग, द्रविण प्राणायाम आदि से कोई सम्बन्ध नहीं है, बादरायण सम्बन्ध भी नहीं है । प्रमाण दूसरों के लिए होते हैं, स्वयम् के लिए नहीं । यदि शम, दम आदि साधना सम्पन्न होकर जो वेदान्त का श्रवण करे, तो सुन करके ही ब्रह्म का बोध हो जाता है । श्रवण, मनन, निर्दिध्यासन से ही सब सम्पन्न हो जाता है ।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने “धर्म क्या है ? ” उन्होंने धीर गंभीर विषय पर कहा कि मन जो बाहर की ओर भागा जा रहा है, उसे रोककर भीतर की ओर, आत्मा की ओर लगाना ही धर्म है । इस प्रकार धर्म का आत्म ज्ञान के साथ समन्वय है । धर्म, उपासना और योग से जब अन्त:करण शुद्ध होता है, तब वेदान्त बोध कराता है ।शुद्ध अन्त:करण में ही ब्रह्म और आत्मा की एकता का बोध होता है । इससे पूर्व केवल कहने मात्र से बोध नहीं होता । जितनी भी प्रकार की साधनायें होती हैं, वे अनात्मा से आत्मा की ओर, भोग से योग की ओर, बाहर से भीतर की ओर ले जाने में सहायक होती हैं । धर्म क्रिया के विस्तार को रोकता है । उपासना वासना के विस्तार को रोकती है, योग मन की चंचलता के विस्तार को रोकता है, सांख्य वैराग्य को स्थिर करता है । सारे साधन अन्तत: एक ही जगह पहुँचते हैं ।
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