परमात्मा को जानने के लिये अपने आपको जानो
परमात्मा को जानने के लिये अपने आपको जानो
विभिन्न साधनों से तुम अपने आपको पहचानो। जिस दिन आत्मशक्ति का विश्वास जाग जाता है, उस दिन परमात्मा के अस्तित्व का विश्वास जमते देर नहीं लगती। विश्वास का जमना उतना ही आनंददायक है, जितना परमात्मा की प्राप्ति।
मनुष्य अपनी छिपी हुई शक्तियों को पहचाने बिना शक्तिशाली नहीं बन सकता। जो जैसा अपने को जानता है या जिसकी जैसी अभीप्सा है, वह वैसा ही बन जाता है। अपने को जानना, सब सिद्धियों में बड़ी सिद्धि है। लाखों में एक-दो होते हैं जो अपने को जानने का यत्न करते हैं, यत्न करने वालों में भी थोड़े से ऐसे होते हैं जो आत्मा के अस्तित्व को पहचानने के लिये देर तक अपने आपको निर्दिष्ट किए रहते हैं। जिसने भी मनुष्य देह में जन्म लिया है, वह आत्मा के समीप पहुँचा दिया गया है, किंतु थोड़े ही हैं जो उसमें प्रवेश पाते हैं।
शरीर में काम, क्रोध, मोह, संतोष, दण्ड, दया आदि अनेक भावनाएँ हैं, ये सब या तो आनंद की प्राप्ति के लिए हैं अथवा आनंद में विघ्न पैदा होने के कारण है। आनंद सबका मूल है, वैसे ही आनंद सबका लक्ष्य है। लक्ष्य और उसकी सिद्धि दोनों ही आत्मा में विद्यमान हैं। जो आत्मा को ही लक्ष्य बनाकर आत्मा के ही द्वारा अपने आपको बेधता है, वह उसे पाता भी है। आत्मा ही परमात्मा का अंश है, इसलिए आत्मा का ज्ञान हो जाने पर परमात्मा की प्राप्ति अपने आप हो जाती है।
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