दयालुता और शुद्धता
दयालुता और शुद्धता।
खुद के प्रति दयालुता का भाव रखना जरूरी है। खुद की शुद्धता, खुद के विचारों की शुद्धता, खुद के जीवन में शुद्धता का होना अच्छा लक्षण है। साधन, शिक्षा और तरीका कुछ भी हो सकता है। जितना हम खुद से मिलेंगे उतना ही संसार को देने के लिए शुद्धता और य हमारे पास होगी। झूठी और सच्ची प्रशंसा का सबको पता चल जाता है। किसी काम को निकालने के लिए प्रशंसा करते समय ध्यान दें। सब को पता चल जाता है। व्यक्ति को देखकर विचारों का प्रगटीकरण में भेद न हो। जो समझ में आए जो भी अपना सत्य हो कहने से घबराएं नहीं। गलत होने या गलत समझे जाने से घबराएं नहीं । जब भी कोई अधूरा संबंध खत्म होगा तो किसी से पूरे संबंध की संभावनाएं बढ़ती है। दुनिया द्वारा हमारे चरित्र की शुद्धता का आकलन किए जाने के लिए तैयार रहें। हर व्यक्ति हर परिस्थिति शिक्षक है अगर हम तैयार हैं ? विशेष समय के लिए विशेष तैयारी करने की आदत से बचें। कब क्या हो तो हर समय तैयार रहें। ईश्वर के साथ और कृपा के दिन नहीं हुआ करते वो हर समय उपस्थित है विश्वास रखें।
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