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.. एक ही हसीन सपना बस जैसे तैसे टिकट हो अपना

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.. एक ही हसीन सपना बस जैसे तैसे टिकट हो अपना

सभी को टिकट चाहिए तो फिर पार्टी का प्रचार कौन करेगा

भाजपा और कांग्रेस में ही सबसे अधिक टिकट के दावेदार

पोस्टर और फ्लेक्स में बता रहे अपने-अपने राजनीतिक आका

फतह सिंह उजाला 

गुरुग्राम / पटौदी। मानसून का दौर चल ही रहा है। इसके साथ ही फेस्टिवल सीजन भी आरंभ होने के साथ बदलते मौसम में चुनाव का माहौल गर्म होता चला जाएगा। 2 महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होने प्रस्तावित है। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को हरियाणा में आधी आधी सीट मिलने के साथ ही अब विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार सक्रिय हो चुके हैं। इनमें अधिकांश ऐसे चेहरे हैं, जो की चुनावी मानसून में ही अधिक चमकते हुए दिखाई नजर आते हैं । बस एक ही हसरत, एक ही तमन्ना और एक ही सपना है, जैसे- तैसे चुनाव का टिकट अपना हो जाए। होना भी चाहिए, लोकतंत्र में यही खूबसूरती है चुनाव लड़ना और चुनाव लड़ने की दावेदारी करना सभी का अपना मौलिक और संवैधानिक अधिकार भी है। लेकिन  विधानसभा में प्रवेश और चुनाव लड़ने के लिए टिकट तो किसी एक ही दावेदार को मिलेगा।

कुछ चेहरे तो ऐसे हैं जिनके द्वारा अपनी पुरानी पार्टी को बाय-बाय टाटा कहकर नई पार्टी ज्वाइन की गई। ऐसा सिलसिला आने वाले समय में और भी देखने के लिए मिलना निश्चित है । मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी में ही सबसे अधिक दावेदार विधानसभा चुनाव की टिकट के लिए दिखाई दे रहे हैं। यदि सभी को ही टिकट चाहिए तो फिर ऐसे में अपनी अपनी पार्टी का प्रचार कौन करेगा ?  या फिर टिकट के दावेदारों की आस्था और निष्ठा केवल टिकट लेने तक ही सीमित है ? यदि टिकट नहीं मिली तो कहीं ऐसा ना हो फिर पार्टी को ही टाटा भी कह दिया जाएगा।

भारतीय जनता पार्टी हो या फिर कांग्रेस पार्टी हो। दोनों ही पार्टियों में टिकट के दावेदारों के द्वारा अपने अपने बड़े से बड़े चेहरे वाले फ्लेक्स पोस्टर  जैसी प्रचार सामग्री में ही अपनी पार्टी से अधिक नेताओं को प्राथमिकता दी जा रही है । टिकट के दावेदारों के द्वारा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अपनी अपनी पसंद के मुताबिक फोटो छपवाए जा रहे हैं । इससे सीधा-सीधा संदेश भी यही जा रहा है कि यदि टिकट नहीं मिला तो फिर इलेक्शन की प्रक्रिया से ही किनारा भी किया जा सकता है ! जब टिकट ही नहीं मिलेगा तो फिर ने तो अपना प्रचार किया जा सकेगा, जब अपना ही प्रचार नहीं होगा तो फिर अपनी ही पार्टी के किसी अन्य दावेदार के द्वारा टिकट लाने पर उसका प्रचार क्यों किया जाएगा ? 

जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के टिकट के दावेदारों के द्वारा अपनी अपनी टिकट के दावे  परोस जा रहे हैं । कम से कम उससे तो यही महसूस किया जा सकता है । टिकट के दावेदारों के प्रचार वाले पोस्टर और फ्लेक्स ही बता रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच तालमेल का अभाव बना हुआ है । बहरहाल यह तो आने वाला समय ही बताएगा जब टिकट के दावेदारों को टिकट मिल जाएगी और जिनको टिकट नहीं मिलेगी फिर वह पार्टी के प्रति निष्ठा दिखाते हैं। या फिर टिकट लाने वाले उम्मीदवार के लिए चंडीगढ़ का रास्ता आसन बनाने में पसीना बहाना बेहतर समझेंगे।

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