Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

भगवान शिव को जाने बिना इस लोक को जानना असंभव:शंकराचार्य नरेंद्रानंद

21

भगवान शिव को जाने बिना इस लोक को जानना असंभव:शंकराचार्य नरेंद्रानंद

जहां भी सत्य है, वहीं शिव का वास है। शिव के साथ सारी विषमता है

उषा काल में शिव और पार्वती विज्ञान के धरातल पर काल चिंतन करते

जहाँ प्रकाश होगा, वहाँ सदैव ही प्रेम, करुणा, साधना एवं भक्ति रहेगी

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। जहां भी सत्य है, वहीं शिव का वास है। शिव के साथ सारी विषमता है, वे औघड़ हैं, आशुतोष हैं, देवों में महादेव हैं, रुद्र हैं, गृहस्थ हैं, महायोगी हैं, त्यागी और तपस्वी हैं, पिता है, गुरु हैं, मृत्यु हैं, जीवन हैं। शिव को जानना अत्यन्त आवश्यक है। भगवान शिव को जाने बिना इस लोक को जानना असंभव है। यह बात अपना आशीर्वचन एवम् मार्गदर्शन प्रदान करते हुए प्रयागराज के हेतापट्टी में आयोजित श्री शिव परिवार प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पहुंचे सनातन धर्म के सर्वाेच्च धर्मगुरु श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कही। इससे पहले शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज का श्रद्धालुओं ने माल्यार्पण कर भव्य स्वागत  पूरे विधि-विधान से किया । तत्पशचात् पूज्य शंकराचार्य  महाराज ने शिव परिवार की प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा प्रक्रिया को सम्पन्न किया। यह जानकारी शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा मीडिया से सांझा की गई।

शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द ने शिव भक्तो को संबांधित करते कहा कि, भगवान शिव की आराधना से मोक्ष मिलता है। वे ज्ञान का वेद हैं, वे रामायण के प्रणेता हैं, संगीत के स्वर हैं, ध्यान के उत्स हैं। उनमें नृत्य वास करता है, जीवन को गति मिलती है। वे प्रेमी हैं, ऋषियों के गुरु हैं, देवताओं के रक्षक हैं, असुरों के सहायक हैं और मानवों के आदर्श हैं। सभ्यता के उषा काल में शिव और पार्वती विज्ञान के धरातल पर काल चिंतन करते है। ज्ञान के शिखर पर बैठकर संतुलन एवं सत्य के विविध रूपों को खोजना कोई महायोगी और योगिनी ही कर सकते हैं।

जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि शिव जो भी बोलते हैं, वह जीवन के सूत्र हैं। शिव के हृदय में संसार नहीं हैं, वासना नहीं है और अंधेरा भी नहीं है। उनका जीवन ही प्रकाश है। जहाँ प्रकाश होगा, वहाँ सदैव ही प्रेम, करुणा, साधना एवं भक्ति रहेगी। अंतस के जागरण के लिए शिवतत्त्व की जरूरत है। अंतस एक बार चौतन्य हो गया, तो सब कुछ बदल जाता है। आचरण ही साधना बन जाती है। हरेक शब्द प्रेमपूर्ण एवं कर्म के प्रत्येक चरण करुणापूर्ण हो जाते हैं। साधुता ही स्वभाव बन जाता है।  शिव का आकार शून्य व ज्योति स्वरूप है। पूज्य शंकराचार्य महाराज ने कहा कि ऐसे अवढरदानी भगवान शिव आप सभी को अपनी भक्ति प्रदान कर आप सभी के जीवन को मंगलमय एवं सफल करें । इस कार्यक्रम में स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती जी महाराज, क्षेत्रीय विधायक सहित अनेक जनप्रतिनिधि, शिवम् पाण्डेय सहित क्षेत्र के अन्य गणमान्य व्यक्तित्व की उपस्थिति रही।

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading