चिरकाल से विश्व को उपदेशित करती रही है भारत की संस्कृति: स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज
चिरकाल से विश्व को उपदेशित करती रही है भारत की संस्कृति: स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज
-लेजरवैली पार्क सेक्टर-29 में श्रीराम कथा का शुभारंभ
-9 फरवरी से 15 फरवरी तक सांय 3 से 6 बजे तक कथा
प्रधान संपादक योगेश
गुरुग्राम। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी महाराज ने गुरुग्राम में श्रीराम कथा में श्रद्धालुओं को प्रवचनों का रसपान कराते हुए निहाल किया। सात दिन तक चलने वाली श्रीराम कथा के पहले दिन उन्होंने प्रवचनों में भगवान राम, भारतीय संस्कृति, अध्यात्म पर प्रकाश डाला। गुरुग्राम कल्चरल फाउंडेशन एवं प्रभु प्रेमी संघ द्वारा श्रीराम कथा का यह आयोजन करवाया जा रहा है।
पहले दिन कथा में विधायक सुधीर सिंगला, अखिल भारतीय वैश्य समाज के राष्ट्रीय सचिव पीपी गुप्ता, कृष्ण सिंगला, संजय जैन आदि मुख्य यजमानों द्वारा पूजा-पाठ कराकर कथा का प्रारंभ करवाया गया। एडिशनल डीजीपी सीआईडी हरियाणा आलोक मित्तल, एडिशनल डीजीपी महेश भारद्वाज, फरीदकोट के मंडलायुक्त चंद्र गेंद अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने प्रवचनों में आगे कहा कि चिरकाल से ही भारत की संस्कृति पूरे विश्व को उपदेशित करती रही है। हमारी संस्कृति में त्याग, मर्यादा, उदारता, सर्वस्व त्यागने की भावना है। वेदों के द्वारा, पुराणों के द्वारा, विविध शास्त्र स्मृतियों के द्वारा, योग आयुर्वेद के द्वारा, अध्यात्म की विविध विधाएं कहीं भी विद्यमान हैं। उनके मूल में भारत की सनातन संस्कृति का स्वर, भारत की अध्यक्षतम, ब्रह्म विद्या, आत्म विद्या मिलती है। उन्होंने कहा कि संसार में कहीं भी कोई संस्कृति, सभ्यता मानवीय सारों का दिखाई देती है। उनमें कहीं त्यागशीतला, संयमता, सेवा-परमार्थ की भावना हो तो वह सहयोग भारत के अध्यात्म का है। अंक की गणनाए हो, काल की गणना हो, प्रकृति के विधि, कलेवरों के सत्य को अनवरत करने की कोई भी विद्या, विचार हो, या आज की कोई तकनीक हो, उसके मूल में भारत का अध्यात्म विद्या है।
स्वामी जी ने कहा कि राम कथा-राम स्वयं में काव्य है। कभी चरित्र गुण नीति, कौशल, विद्या, दक्षता, दिव्यता, समरसता पर विचार हो तो वह राम है। धर्म के सभी गुण हर पल जहां जीवंत हंै, वह राम है। राम साक्षात धर्म के विग्र हैं। वह आनंद विग्र हैं। वह सनातन विग्र हैं। वह बोधक हैं। तारक हैं। रक्षक हैं राम। मंगलाचरण में राम अपने आप में पर्याप्त है। भगवान मंगल भवन हैं। मंगल आयतन हैं। वह संपूर्ण अमंगलों का नाश करते हैं। जीवन में जो अनिष्ठ है, दुर्गम है, किसी की दुष्टता से दुख है। उस दुख, राम भारत की संस्कृति के अपूर्व दिव्यता हैं। भारत की संस्कृति में शोभा है, दिव्यता है। उच्च महानीयता इस नाम से परिभाषित होता है। राम उच्चतम प्रतिमान है। भारत की संस्कृति का मेरूदंड है राम। भारत की भौर में यह राम गूंजता है। उन्होंने कहा कि भारत के प्रभात का प्रथम स्वर है-राम। सुबह उठते ही राम-राम जी हम कहते हैं। राम का स्मरण, वंदन, अभिनंदन, सत्कार, परिणाम, संपूर्ण शिष्टताएं, शालीनता हैं।
महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी ने कहा कि जो दिखाई तो देता है, जिसका अस्तितव नहीं है, वह सनातन नहीं है। आत्मा की सनातन की बात भारत की संस्कृति ने बताई। आतमा सनातन है। ब्रह्म की सत्यता का ज्ञान भारत ने कराया कि कोई सत्य है तो वह ईश्वर है। किसी के अभिनंदन के लिए, आदर से झुक जाने के लिए, शीष नवाने के लिए, प्रत्येक काल में समरण भगवान का ही हुआ। शास्त्र कहते हैं कि जब दुखा आया है तो उसका कारण भी जान लो। जीवन में विपत्ति आई है। वेदना आई है, उसका एक ही कारण है, अब मान नहीं रहा। अब लाभ नहीं रहा अब हानि है। अब जय नहीं रही अब पराजय है। अब अधिक न हीं रहा अब अभाव है। मन कभी दुखी होगा तो अभाव, अपमान के कारण, पराजय के कारण। मन केवल मान-सम्मान, जय, प्रतिष्ठा चाहता है। मन केवल एक ही कार्य करता है। अत्यंग दु,ख की निवृति करके सुख प्राप्ति मन चाहता है। उन्होंने कहा-मन उधर ही मिलेगा, जहां सुख का आश्रय है। सुख के साधन हैं। चूंकि सुख के साधन धन हैं तो धन के अर्जन में मन लगेगा। जगत हमारे अनुकूल हो जाए, इससे थोड़ा संग्रह हो, संचय हो। इससे कीर्ति होगी। मन रजोगुण में प्रदर्शन चाहता है। किसी प्रकार से ऐसे प्रयोजन में लगता है की प्रदर्शन हो। उसके गुणों का, धन का। उच्च पद मिले, प्रतिष्ठा मिले। उपासना को परिभाषित करते हुए स्वामी जी ने कहा कि-उपासना का मतलब है सत्य के निकट पहुंचना है। यथार्थ के निकट पहुंचना है। वास्तविकता के आसपास आना अध्यात्म है।
अभिव्यक्ति से बड़ी कोई उपलिब्ध किसी के पास नहीं है। सत्य परिभाषित नहीं होता, पर असत्य की सत्ता को चुनौती देने के लिए उसकी वाकमयता इतनी प्रखर होती है कि वह प्रभावी होता है। उन्होंने कहा कि हम जिसका स्मरण करते हैं, उसकी सत्ता हमारे आसपास होती है। विज्ञान ने यह बता दिया है। बार-बार किसी का स्मरण किया जाए तो वह हमारे आभास में रच-बस जाती है। विश्व के वैज्ञानिक, इतिहासकार, दार्शनिक भारतीय दर्शन की ऊंची उड़ान को देखकर चकित रह गए हैं।
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