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भारत इंस्टा रील का सबसे बड़ा मार्केट 8 करोड़ इन्फ्लुएंसर्स, 1.5 लाख लोग कर रहे कमाई

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भारत इंस्टा रील का सबसे बड़ा मार्केट 8 करोड़ इन्फ्लुएंसर्स, 1.5 लाख लोग कर रहे कमाई; एडिक्ट बच्चे का 5 सेकेंड में ही ध्यान भंग..!!

नई दिल्ली

दिसंबर 2021 में 10वीं का एक स्टूडेंट रील बनाते हुए फांसी के फंदे से लटक गया। दरअसल, इंदौर का रहने वाला छात्र अपने दोस्तों के साथ एक खास ट्रेंड पर रील बना रहा था। फिल्मी सीन की नकल वाले इस ट्रेंड में प्रेमिका की याद में हीरो को फांसी के फंदे से लटकते हुए दिखाया जाना था।

वह स्टूडेंट भी ऐसा ही करना चाह रहा था। इसके लिए उसने दोस्तों के साथ मिलकर असली फंदा तैयार किया, नीचे कुर्सी लगाई और गम भरे रुंआसे चेहरे के साथ रील बनाने की शुरुआत हुई।

लेकिन तभी उस स्टूडेंट के पैरों के नीचे से कुर्सी फिसल गई और वह फांसी के फंदे से झूल गया। तड़पकर थोड़ी देर बाद वह शांत हो गया।

दोस्तों ने इसे भी रील का हिस्सा समझा। काफी देर तक जब उसने कोई हरकत नहीं की; तो दोस्त उसे उसी हालत में छोड़कर भाग गए। स्टूडेंट की जान जा चुकी थी।

यह समस्या सिर्फ बड़े शहरों में रहने वाली युवा पीढ़ी की नहीं है। इस साल की शुरुआत में बिहार के खगड़िया में भी ऐसी ही घटना देखने को मिली। 32 साल की एक महिला अपने सास-ससुर के साथ रहती थी। उसके पति बाहर मजदूरी करते थे।

एक दिन अकेले में वह इंस्टाग्राम के इसी ट्रेंड पर फांसी के फंदे से लटकने की रील बना रही थी। उसने अपने पांव के नीचे ईंटें लगा रखी थी, लेकिन ऐन वक्त पर ईंटें भरभरा कर गिर गईं और महिला फांसी के फंदे से झूल गई। सास-ससुर जब घर लौटे तो फंदे से लटकी बहू और सामने ट्राइपॉड पर लगा फोन मिला। फोन में उसके तड़पने का वीडियो भी रिकॉर्ड हुआ था।

कुछ दिन पहले केदारनाथ मंदिर में शिवलिंग के ऊपर नोट उड़ा रही एक लड़की की रील भी वायरल हुई थी। जिसके बाद मंदिर में फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी को ही बैन कर दिया गया।

रील है दर्द तो इसकी दवा भी ‘रील’

रील की समस्या जानकर अगर इसकी लत से बाहर निकलने की सोच रहे हैं तो हो सकता है कि इसके लिए भी रील की शरण में ही जाना पड़े।

इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे वीडियो प्लेटफॉर्म पर हजारों ऐसी रील मौजूद हैं; जिसमें ‘रील’ की लत से छुटकारा पाने के नुस्खे बताए गए हैं। कई नामी साइकोलॉजिस्ट भी रील बनाकर ही लोगों को इस बारे में सलाह दे रहे हैं।

बन गई कंटेंट क्रिएटर और इन्फ्लुएंसर्स की हसीन दुनिया

मौजूदा वक्त में रील बनाने वाले लोग खुद को कंटेंट क्रिएटर और इन्फ्लुएंसर्स कहलाना पसंद करते हैं। शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म भी उन्हें इसी रूप में प्रमोट करते हैं।

कई शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म दावा करते हैं कि उनके यहां ‘कंटेंट क्रिएटर्स’ अच्छी कमाई कर रहे हैं, तो कई ऐसे भी हैं जो सिर्फ लोगों तक पहुंचने और शोहरत के लिए ऐसा करते हैं।

कई प्राइवेट सोशल मीडिया अकाउंट से भी रील पोस्ट की जाती हैं। इनका मकसद पैसे या फेम कमाना नहीं, बल्कि अपने दोस्तों तक अपनी बात पहुंचाना होता है।

देश में 8 करोड़ कंटेंट क्रिएटर्स, सिर्फ 1.5 लाख कर पाते हैं कमाई

‘कलारी कैपिटल’ की एक स्टडी के मुताबिक देश में फिलहाल 8 करोड़ लोग प्रोफेशनल कंटेंट क्रिएटर्स हैं। यानी वे इसी को अपना करियर और कमाई का जरिया बनाना चाहते हैं।

ये 8 करोड़ लोग ऑनलाइट कंटेंट बनाकर दौलत और शोहरत कमाने में लगे हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। स्टडी के मुताबिक 8 करोड़ कंटेंट क्रिएटर्स में से सिर्फ 1.5 लाख लोग ही कमाई कर पाते हैं। उनमें से भी अधिकतर की कमाई महज कुछ हजार रुपए महीने ही है।

इन 8 करोड़ कंटेंट क्रिएटर्स में से 1% से भी कम ऐसे हैं, जिनके फॉलोअर्स की संख्या 10 लाख से ज्यादा है। इनकी कमाई लाखों-करोड़ों में है। ऑनलाइन कंटेंट क्रिएटर्स की कमाई का बड़ा हिस्सा उन मेगा इन्फ्लुएंसर्स को मिल रहा है, जिनके फॉलोअर्स 10 लाख या इससे ज्यादा हैं।

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हर दिन 2.5 घंटे फोन पर एंटरटेनमेंट, पौन घंटे सिर्फ रील

‘रेडसीर स्ट्रैटजी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर स्मार्टफोन यूजर औसतन 2.5 घंटे एंटरटेनमेंट के लिए मोबाइल स्क्रीन स्क्रॉल करता है। इस दौरान लगभग 40 मिनट का समय सिर्फ रील देखने में जाता है।

जेनरेशन Z यानी 1995 के बाद जन्म लेने वाली पीढ़ी में शॉर्ट वीडियो ‘रील’ देखने का औसत 1 घंटे से भी ज्यादा का है। जबकि रील की लत से परेशान लोग 5 से 6 घंटे तक रील देख लेते हैं।

इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी ‘मेटा’ के मुताबिक ऐप पर आने वाले लोग अपना 20% समय शॉर्ट वीडियो यानी रील्स देखने में बिताते हैं। जबकि इंस्टाग्राम की शुरुआत एक फोटो शेयरिंग ऐप के बतौर की गई थी और इसका रील वर्जन भी 2020 में ही आया।

रील्स एडिक्ट बच्चों का बिगड़ जाता है कॉग्निटिव फंक्शन, याद नहीं रहती चीजें

साइकोलॉजिस्ट डॉ. सौम्या निगम बताती हैं कि बच्चों के दिमाग पर रील्स का असर खतरनाक होता है। डॉ. सौम्या के मुताबिक रील्स देखने से बच्चों का ‘अटेंशन स्पैन’ तेजी से कम होता है। जिसकी वजह से वे भुलक्कड़ हो जाते हैं और उनकी सीखने की रफ्तार भी धीमी हो जाती है।

दरअसल, ‘अटेंशन स्पैन’ वह समय है, जितनी देर कोई शख्स बिना भटकाव किसी भी काम में ध्यान लगा पाता है। सामान्य स्थिति में अटेंशन स्पैन 12-15 सेकेंड होता है, लेकिन हर दिन 4-5 घंटे शॉर्ट वीडियोज देखने वाले बच्चों का अटेंशन स्पैन घटकर 5 सेकेंड ही रह जाता है।

कई रिसर्च के मुताबिक साल 2000 के आसपास बच्चों का औसत अटेंशन स्पैन 12 सेकेंड था, जो अब घटकर 8 सेकेंड रह गया है, लेकिन ज्यादा रील्स देखने वाले बच्चों का अटेंशन स्पैन 8 सेकेंड से भी कम होता है।

इसको इस तरह समझा जा सकता है कि गणित के किसी सवाल को हल करते हुए एक नॉर्मल बच्चे का दिमाग 12 सेकेंड तक कुछ और नहीं सोचेगा। जबकि रील्स देखने वाले बच्चे के दिमाग में हर 5 सेकेंड के बाद एक नया ख्याल आएगा और उसका ध्यान सवाल से दूर हो जाएगा।

डॉ. सौम्या बताती हैं कि शॉर्ट वीडियोज ने बच्चों के दिमाग को भी शॉर्ट टेंपर्ड बना दिया है; वे सबकुछ जल्दी चाहते हैं। किसी चीज के लिए इंतजार नहीं करना चाहते। इसका नेगेटिव असर उनके सीखने और याद करने की क्षमता पर भी पड़ता है।

रील्स का नशा सेल्फ ऑब्सेसिव डिसऑर्डर ‘सेल्फाइटिस’

रील्स देखने के अलावा इसे बनाने की भी लत हो सकती है। साइकोलॉजिस्ट डॉ. सौम्या के मुताबिक फेम और लाइक-कमेंट के लिए रील बनाने वाले सेल्फ ऑब्सेसिव डिसऑर्डर यानी ‘सेल्फाइटिस’ का शिकार हो सकते हैं।

इस तरह के मेंटल डिसऑर्डर का शिकार व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है। उसे लगता है कि लोगों को उसके बारे में और जानना चाहिए। लोगों को उसकी तारीफ भी करनी चाहिए। इसलिए लोग खूब सारी रील्स बनाने लगते हैं।

लाइक-कमेंट के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं, लेकिन जब उन्हें ‘लाइक्स’ नहीं मिलते, तो उनके मन में असंतोष पनपने लगता है जो उन्हें धीरे-धीरे डिप्रेशन की ओर ले जाता है।

ऐसा रील ऐप, जिसे देश के लिए माना गया खतरनाक, लगा प्रतिबंध

साल 2019-20 में चीन का ऐप टिकटॉक दुनिया भर में सबसे बड़े रील प्लेटफॉर्म के रूप में उभरा। देश में कुछ महीनों के भीतर ही इसे 61.1 करोड़ बार डाउनलोड किया गया। यह संख्या चीन से भी ज्यादा थी। देश में टिकटॉक के एक्टिव यूजर्स की संख्या भी 20 करोड़ पार कर गई।

लॉकडाउन के दौरान इस ऐप ने युवा पीढ़ी को तेजी से आकर्षित किया और इसी दौर में युवाओं को रील का चस्का लगा, लेकिन इसके कंटेंट और चीन के मूल का होने की वजह से इसे शक की निगाह से देखा गया।

मद्रास हाईकोर्ट ने इस ऐप को पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देने वाला माना और इसके डाउनलोडिंग पर रोक लगा दी। बाद में भारत सरकार ने देश की सुरक्षा को देखते हुए इस ऐप को पूरी तरह से बैन कर दिया। भारत के बाद कई यूरोपीय देशों में भी इस ऐप पर पूरी तरह से या आंशिक प्रतिबंध लगे।

रील ने दिए नए-नए स्टार, इनकी शोहरत बॉलीवुड से कम नहीं

आज के वक्त में पुनीत सुपरस्टार और सोफिया अंसारी जैसे लोग किसी पहचान के मोहताज नहीं। पुनीत सुपरस्टार तो अभी फेमस रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ का हिस्सा बनकर आए हैं, लेकिन इनमें से किसी ने कोई फिल्म नहीं की और न ही गाने गाए।

पुनीत अपनी अजीबो-गरीब फनी हरकतों के साथ तो सोफिया अपने बोल्ड अंदाज में शॉर्ट वीडियो बनाती हैं। दोनों के सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स हैं और उन्हें करोड़ों व्यूज मिलते हैं।

दुनियादारी से हारे युवाओं का सहारा बन रही है रील

रील्स के होने वाले तमाम नुकसान के बीच यह युवाओं का सहारा बनकर भी उभरी है। पढ़ाई और करियर के बोझ तले दबे युवा इसे एक इंडिपेंडेंट प्लेटफॉर्म के रूप में देखते हैं।

बिहार के समस्तीपुर जिले की रहने वाली स्तुति आनंद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। 23 साल की स्तुति मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी करती थीं। लेकिन कई कोशिशों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। अवसाद और उदासी के बीच स्तुति ने सोशल मीडिया पर कंटेंट क्रिएशन का काम शुरू किया।

23 साल की स्तुति कभी सास तो कभी नदद-भाभी या टीचर के रूप में चुटीले वीडियोज बनाने लगी। आज इंस्टाग्राम पर उनके 7 लाख फॉलोअर्स हैं। उनके वीडियोज के व्यूज करोड़ों में पहुंच जाते हैं। आज स्तुति को डॉक्टर बन पाने का मलाल नहीं है। वह कंटेंट क्रिएटर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कहलाना पसंद करती हैं।

लाइक्स के लिए अपने निजी पलों को दिखाने से नहीं हिचकते

स्तुति की तरह हजारों लड़कियों ने ऑनलाइन कटेंट क्रिएशन से अपनी पहचान बनाई है। इसमें से काफी लड़कियां छोटे शहरों और गांवों से भी आती हैं।

एक्टिंग, डांसिंग, सिंगिंग से लेकर कुकिंग, ट्रैवल ब्लॉगिंग, पेरेंटिंग और अध्यात्म का ज्ञान देने के लिए भी रील्स बनाई जाने लगी हैं।

आजकल रील के जरिए पेरेंटिंग और रिलेशनशिप ट्रेंड्स दिखाने का भी चलन बढ़ा है और यह काफी पसंद भी की जा रही हैं।

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की बॉलीवुड को चुनौती

एक दौर था जब बॉलीवुड में जगह बनाने के लिए खानदान से लेकर बैंक बैलेंस और आपसी रिश्ते मायने रखते थे। नए एक्टर-सिंगर सालों पसीना बहाते, तब जाकर उन्हें पहचान मिलती, लेकिन आज एक वीडियो के वायरल भर होने से सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स स्टार का तमगा हासिल कर लेते हैं।

ऐसा सिर्फ वे ही नहीं कहते, बल्कि दुनिया भी ऐसा मानने लगी है। पहले बड़े-बड़े ब्रांड अपने प्रचार के लिए बड़े स्टार के भरोसे रहा करते थे, लेकिन मौजूदा वक्त में सोशल मीडिया पर रील्स के जरिए ये इन्फ्शलुएंसर्स प्रोडक्ट प्रमोशन भी करने लगे हैं।

कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां रील मॉडल से अपना प्रमोशन करवाती हैं तो कुकिंग रील बनाने वाले इन्फ्लुएंसर्स मसालों का विज्ञापन लेते हैं। इसी तरह ट्रैवलिंग वाली रील्स में ट्रैवलिंग एजेंसियों के ऐड दिख जाते हैं। यानी ब्रांड्स अपने प्रमोशन के लिए अब सिर्फ बॉलीवुड के बड़े स्टार्स के भरोसे नहीं हैं।

कोविड में इंस्टा पर हर दिन बनती थी 60 लाख रील्स

फेसबुक और इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी मेटा की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड के दौरान 2021 में देश में रोज तकरीबन 60 लाख रील्स बन रही थीं।

इसी डेटा के अनुसार यह बताया गया कि इंडियन रील मेकर्स डांस, एंटरटेनमेंट, कॉमेडी और लिप-सिंक कर सबसे ज्यादा रील्स बनाना पसंद करते हैं।

रील्स में खो रही है रियल लाइफ, सोसाइटी पर असर

सोशियोलॉजी रिसर्चर डॉ. रुचिका चौधरी बताती हैं कि मौजूदा वक्त में रियल लाइफ रील में खोती जा रही है। पहले भी किताब, सिनेमा और गाने जैसे माध्यम सोसाइटी पर अपना असर छोड़ते रहे हैं, लेकिन इनमें से किसी की भी पहुंच रील जितनी सहज, आसान और सस्ती नहीं रही और न ही इनमें कभी आम आदमी को अपना टेलैंट दिखाने का मौका मिला।

5 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक आज रील को पसंद कर रहे हैं और इसे बनाकर अपना हुनर और शौक भी दिखा रहे हैं। सोसाइटी पर इसका असर काफी गहरा है।

लेकिन फिल्मों, किताबों और दूसरे मीडियम की तरह इस पर निगरानी न के बराबर है। यही वजह है कि अक्सर रील्स प्लेटफॉर्म्स पर पोर्नोग्राफी, चाइल्ड अब्यूज और हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप लगते हैं।

कुल मिलकर देखें तो रील अब हमारी रियल लाइफ का हिस्सा बन चुकी है। किसी की मजेदार रील देखकर मूड अच्छा हो जाता है तो कितने ही रील्स में लोगों को अपना दुख-दर्द और खुशी दिखाई देती है जिससे देखने वालों का दिल हल्का हो जाता है। पढ़ाई, मनोरंजन और दुनिया भर की जानकारी का जरिया रील्स बनी हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कभी-कभी रील्स की वजह से अश्लीलता, हिंसा और भाषा के भद्देपन की बाढ़ आती भी दिखती है।

ऐसे में रील्स बनाने वालों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने कंटेंट में सावधानी और समझदारी बरतें, जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। खासतौर पर पेरेंट्स अपने बच्चों को बुरा असर डालने वाली रील्स से दूर रखें और इस बात का भी ध्यान रखें कि उनके बच्चे क्या रील्स बना रहे हैं क्योंकि ऐसा न हो कि उनका बच्चा अटेंशन स्पैन की कमी की चपेट में आ जाए।

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