ना अजर चाहिए , ना अमर चाहिए !
मोहे राम जी की कृपालु नजर चाहिए!!!!
ना अजर चाहिए, ना अमर चाहिए…
मित्रों! हनुमानजी पर प्रसन्न होकर माता सीता जी उन्हें अजर अर्थात् बुढ़ापे रहित होने का वरदान देती हैं..”अजर होहुँ!!!
फिर उन्हें अमरता की वरदान देती हैं- “अमर होहुँ”!!!
फिर उन्हें गुणों के भंडार होने की वरदान देती हैं- गुननिधि सुत होहुँ!!!
ये प्रत्येक माता की इच्छा होती है कि मेरा संतान कभी बूढ़ा न हो, मरे नहीं और गुणवान हो।
लेकिन संतान को क्या चाहिए??
संतान को जो बालक है, उसे बुढ़ापे और मृत्यु का कहाँ ज्ञान है!!!
उसे तो बस अपने माता पिता का स्नेह मिले , प्यार मिले,
बस उसी पर ध्यान है।
माता सीता जी समझ गईं कि हनुमान अजर, अमर से उतना ज्यादा प्रसन्न नहीं है तो वे आशीर्वाद के पेटारी खोल दी।
पेटारी (बंडल ) दो तरह के हैं…एक अजस अर्थात् अपयश पेटारी जो मंथरा और कैकेई को मिली।
और एक यश कीर्ति की पेटारी जो दशरथ जी को मिली…जिअत राम बिधु बदनु निहारा
राम बिरह करि मरनु सँवारा
अंड अनेक बिमल जसु छावा….!!!
तो ये हनुमानजी के लिए माता सीता जी के आशीर्वाद के पेटारी अवर्नणीय है…
करहु बहुत रघुनायक छोहु
“करहु कृपा प्रभु “!! अस सुनि काना!!!
यही सुनने को हनुमानजी लालायित थे..
“हे रघुकुल के नायक श्रीराम जी! आप मेरे पुत्र हनुमान पर कृपा करें!!!!!”
माता सीता जी के आग्रह श्रीराम जी कैसे अस्वीकार करेंगे!!!
जब कोई पुण्यात्मा वैकुंठ लोक को जाता है तो यही जगत जननी,आदि माया सीता जी प्रभु से दास जानकर शरण में लेने की सिफारिश करती हैं और प्रभु स्वीकार भी करते हैं!!!!
जिनके स्नेह प्राप्ति हेतु…
“हर ते भे हनुमान”!!
वह मिलते ही…
“अब कृत कृत्य भयउ मैं “माता”!!
संतान को माता पिता और गुरु के सन्मुख ऐसे ही कृतज्ञ होना चाहिए।
तो हे मेरे वंदनीय मित्रों!!!
मुझे भी श्रीरामचरितमानस अध्ययन करने का उद्देश्य है…
सीताराम जी के चरण कमलों में अनुराग प्राप्ति!!!!
अतः मुझे…
ना अजर चाहिए, ना अमर चाहिए!!
मोहे राम जी की कृपालु नजर चाहिए!!!!!
ना अजर चाहिए
ना अमर चाहिए…
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