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गुरुग्राम मेयर के  “सलाहकार नियुक्त पति” किए गए “सलाहकार पद से मुक्त”

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गुरुग्राम मेयर के  “सलाहकार नियुक्त पति” किए गए “सलाहकार पद से मुक्त”

लगभग एक सप्ताह के समय में ही शासन प्रशासन ने बदला फैसला

सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट एवं कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने उठाया था मुद्दा

पर्ल चौधरी की प्रतिक्रिया नियुक्ति रद्द, संविधानिक और जनआवाज़ की जीत 

फतह सिंह उजाला 

गुरुग्राम । हरियाणा की आर्थिक राजधानी और देश सहित दुनिया में आइकन जिला गुरुग्राम में गुरुग्राम नगर निगम मेयर के लिए उनके पति को सलाहकार नियुक्त किया जाने का फैसला आखिरकार एक सप्ताह के अंदर ही शासन प्रशासन को वापस लेना पड़ा है बेहद सीधे और सरल शब्दों में गुरुग्राम मेयर के नियुक्त सलाहकार पति किए गए सलाहकार पद से मुक्त आधिकारिक रूप से किया जा चुका है महिला मेयर के सहायक के रूप में पारिवारिक सदस्य पति की नियुक्ति को कानूनी सामाजिक और नैतिक रूप से गलत ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस ऐसी सेल की प्रदेश महासचिव श्रीमती पर्ल चौधरी के द्वारा गंभीर सवाल उठाए गए थे यह मामला कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी के द्वारा कही गई तकनीकी और कानूनी बात को केंद्र में रखते हुए संवाददाता के द्वारा “यह तो सीधा संविधान की आत्मा से खिलवाड़” हेडिंग शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ।

नियुक्ति रद्द को “संविधान की जीत की संज्ञा” दी 

कांग्रेस पार्टी की तरफ से पटौदी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी के द्वारा नियुक्ति रद्द को “संविधान की जीत की संज्ञा” दी गई है। नगर निगम ( एमसीजी ) द्वारा महिला मेयर के पति  तिलक राज मल्होत्रा की ‘सलाहकार’ के रूप में की गई विवादास्पद नियुक्ति को राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद वापस लेना जनता की आवाज़, संवैधानिक मर्यादा और लोकतांत्रिक चेतना की जीत को श्रेय दिया गया  है। कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी ने कहा हम कांग्रेस पार्टी की विचारधारा के लोग बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के बताए मार्ग—“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो”—पर चलते चलते हैं। महिला मेयर के पति की निजी सहायक के रूप में नियुक्ति के मामले में भी संविधान का अनुपालन करते हुए ट्रिपल इंजन की भाजपा शासित हरियाणा सरकार को इस असंवैधानिक निर्णय को वापिस लेने के लिए मजबूर करने में सफल हुए। उन्होंने बताया 22 अप्रैल को मीडिया और पत्रकारों के माध्यम से इस मामले को सार्वजनिक रूप से उठाया था ? और पूछा था कि क्या गुरुग्राम नगर निगम को चलाने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता है या फिर परिवारवाद की छाया में फैसले लिए जाएंगे? यह सिर्फ एक पद की बात नहीं थी, बल्कि महिलाओं के संवैधानिक प्रतिनिधित्व, पारदर्शी प्रशासन और जनहित से जुड़ा एक गंभीर सवाल था।

अन्याय और पक्षपात के खिलाफ आवाज उठाएंगे

कोर्ट की एडवोकेट पर्ल चौधरी ने कहा देश के विभिन्न हिंदी और अंग्रेजी के प्रमुख समाचार पत्र और उनके संबंधित संवाददाताओं  ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। यह जन-संवेदना और मीडिया की सजगता ही थी, जिसने सरकार को विवश किया कि 21 अप्रैल को जारी आदेश को 29 अप्रैल की मध्यरात्रि को रद्द किया जाए। यह फैसला यह सिद्ध करता है कि यदि हम संविधान की रक्षा के लिए संगठित होकर आवाज़ उठाएं, तो बदलाव संभव है।

जागरूक मतदाता और जनता के साथ ही हर उस नागरिक का आभार व्यक्त जिनके द्वारा इस मुद्दे पर जागरूकता दिखाई और साथ खड़े रहे। यह स्पष्ट संदेश है—जनता के पद पारिवारिक जागीर नहीं हैं। यह जन-विश्वास की अमानत हैं, जिन्हें संविधान के अनुसार संचालित किया जाना चाहिए। लड़ाई सिर्फ एक नियुक्ति के खिलाफ नहीं थी, यह उस सोच के खिलाफ थी जो सत्ता को रिश्तों की थाली में परोसती है। हम आगे भी ऐसे हर अन्याय और पक्षपात के खिलाफ आवाज़ उठाते रहेंगे, और हरियाणा में न्यायपूर्ण, पारदर्शी और जवाबदेह शासन की स्थापना के लिए संघर्षरत रहेंगे।

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