समाज में अपराध कैसे कम करें
समाज में अपराध कैसे कम करें
पाप मनोगत होता है, मानसिक होता है। अपराध शरीरगत होता है। यह दोनों कर्म अलग-अलग हैं। जब बुराई मनुष्य के मन में आती है, मस्तिष्क में आती है तब वह पाप कहलाती है। पाप कर्म का दंड देने के लिए कोई विधान नहीं है क्योंकि इससे किसी दूसरे को कोई हानि नहीं होती है। हाँ! पाप कर्म का दंड मनुष्य को मिलता अवश्य है। परमात्मा सर्वान्तर्यामी है, सर्वव्यापक है, न्यायकारी है। मनुष्य के मन के विचारों को जानता है। ईश्वर के यहाँ पाप कर्म या अपराध को क्षमा करने का कोई प्रावधान नहीं है। ईश्वर पाप कर्म का दण्ड देने में सक्षम है और देता भी है-इस जन्म में अथवा मरने के बाद नीच योनियों में जन्म देकर पहले मन एवं मस्तिष्क में पाप कर्म जन्म लेता है। उसके बाद बुराई, पाप कर्म हाथों से या अन्य कर्मेन्द्रियों से किया जाता है। फिर यह अपराध बनता है और दण्डनीय हो जाता है। आज मनुष्य ज्यों-ज्यों अधिक शिक्षित होता जा रहा है त्यों-त्यों वह अधिक अपराध कर रहा है। कारण! वैदिक ज्ञान का अभाव, दण्ड प्रक्रिया में विलम्ब, कठिन दण्ड का अभाव, भ्रष्टाचार ।
आजकल समाज व सरकार लोगों के विचारों को पवित्र करने में रुचि न लेकर, अपराध को रोकना चाहते हैं। लेकिन जब तक मष्तिष्क में बुराई है, पाप कर्म के विचार हैं, समाज में भ्रष्टाचार है, मनुष्य अपराध करेगा ही करेगा। इसमें कोई सन्देह नहीं।
आइये! समाज में अपराध कम करने का प्रयत्न करें। अपने बच्चों को वेद ज्ञान दें, अच्छे विचारों से अवगत करायें। उन्हें पाप कर्म से बचायें। निःसन्देह यम-नियम का ज्ञान व उनका पालन हमें व हमारी भावी पीढ़ी को अपराध करने से बचायेगा।
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