हिन्दू नववर्ष भाग
हिन्दू नववर्ष भाग – 1
एक जनवरी से प्रारम्भ अंग्रेज़ी नववर्ष को हम इतना महत्व देते हैं पर क्या अपनी महान् एवं सनातन संस्कृति से जुड़े नववर्ष की ओर भी हमारा वही भाव, वही समर्पण बना रहता है? नहीं, पर आख़िर ऐसा क्यों है?
हमारी नयी पीढ़ी को अपनी प्राचीन एवं अतुलनीय संस्कृति को सम्भालना एवं ससम्मान इसका प्रचार भी करना होगा क्योंकि हमारी संस्कृति बहुजन हिताय बहुजन सुखाय और वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करती है.
एक जनवरी से प्रारम्भ होने वाली कालगणना को हम ईसवी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत व ईसा मसीह से है. इसे रोम के सम्राट् जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष पश्चात् प्रचलन में लाया गया. भारत में ईसवी सन् का प्रचलन अंग्रेज़ी शासकों ने 1752 में किया.
1752 से पहले ईसवी सन् 25 मार्च से शुरू होता था किन्तु 18 वीं शताब्दी से इसकी शुरुआत एक जनवरी से होने लगी. जनवरी से जून, रोमन के नामकरण रोमन, जोनस, मार्स इत्यादि के नाम पर है.
जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट् जूलियस सीजर तथा उसके पौत्र आगस्टन के नाम पर तथा सितम्बर से दिसम्बर तक रोमन संवत के मासों के आधार पर रखे गये हैं.
क्या ये आधार सही है? कालगणना का आधार तो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होना चाहिए.
ग्रेगेरियन कैलेण्डर की कालगणना मात्र दो हज़ार वर्षों की अतिअल्प समय को दर्शाती है. जबकि यूनान की कालगणना 1585 वर्ष, रोम की 2760, यहूदी 5771, मिस्र की 28692, पारसी की 198878 तथा चीन की 9,60,02,308, वर्ष पुरानी है.
इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु 1,96,08,53,123 वर्ष है. जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं. हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक एक पल की गणना की गई है.
दो हजार वर्ष पहले शकों ने सौराष्ट्र और पंजाब को रौंदते हुए अवंतिका पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की. विक्रमादित्य ने राष्ट्रीय शक्तियों को एक सूत्र में पिरोया और शक्तिशाली मोर्चा खड़ा करके ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की.
थोड़े समय में ही इन्होंने कोंकण, सौराष्ट्र, गुजरात और सिंध भाग के प्रदेशों को भी शकों से मुक्त करावा लिया. वीर विक्रमादित्य ने शकों को उनके गढ़ अरब में भी क़रारी मात दी. इसी सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर भारत में विक्रमी संवत् प्रचलित हुआ. इसके बाद भारत में मुग़लों के शासन काल के दौरान सरकारी क्षेत्र में हिजरी सन् चलता रहा. भारतीय सरकार ने शक संवत् को अपनाया.
जिस प्रकार ईसवी संवत् का सम्बन्ध ईसा से है, उसी प्रकार हिजरी संवत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हज़रत मुहम्मद से है. किन्तु विक्रमी संवत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है. इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है.
इतना ही नहीं, ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथों वेदों में भी इसका वर्णन है. नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27 वें तथा 30 वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है.
विश्व को सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, मास, वर्ष और उनके सूक्ष्मतम् भाग पर आधारित है.
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