हृदयरोग एवं ग्रहयोग
मनष्य का हृदय अतीव सुकोमल एवं
सदृश है। सतत गतिमान रहने वाला हृदय।
अंगों एवं उपांगों को रक्त का आदान-प्रदान करता जिससे सभी अंग यथास्थान अपने स्वरूप में हमेशा करते रहते हैं। इसीलिये शरीर के मुख्यांग में इसकी गणना की गयी है।
हृदयरोगका इतिहास अतीव प्राचीन है।ऋग्वेद में हृदय रोग के नाशहेतु भगवान् सूर्य से प्रार्थना की गयी है। भागवत महापुराण में भी रासपंचाध्यायी के अन्त
इसकी चर्चा है। आर्षपरम्परा के ग्रन्थों में तो हृदय कारण सूर्य तथा चतुर्थ एवं पंचम भाव और कुछ दशाओं का उल्लेख किया गया है, जिसके अन्तर्गत मुख्य रूपसे सूर्य, शनि और राहुदशा पायी जाती है। कुछ निश्चित राशियों के साथ ग्रहों की दशामें भी हृदय रोग की उत्पत्ति बतायी गयी है। आचार्य पराशर ने तो दशाफलाध्याय में सर्वाधिक रोगोद्भवकारक दशाओं का विवेचन किया है।
हृदयरोग एवं ग्रहयोग
मनष्य का हृदय अतीव सुकोमल एवं
सदृश है। सतत गतिमान रहने वाला हृदय।
अंगों एवं उपांगों को रक्त का आदान-प्रदान करता जिससे सभी अंग यथास्थान अपने स्वरूप में हमेशा करते रहते हैं। इसीलिये शरीर के मुख्यांग में इसकी गणना की गयी है।
हृदयरोगका इतिहास अतीव प्राचीन है।ऋग्वेद में हृदय रोग के नाशहेतु भगवान् सूर्य से प्रार्थना की गयी है। भागवत महापुराण में भी रासपंचाध्यायी के अन्त
इसकी चर्चा है। आर्षपरम्परा के ग्रन्थों में तो हृदय कारण सूर्य तथा चतुर्थ एवं पंचम भाव और कुछ दशाओं का उल्लेख किया गया है, जिसके अन्तर्गत मुख्य रूपसे सूर्य, शनि और राहुदशा पायी जाती है। कुछ निश्चित राशियों के साथ ग्रहों की दशामें भी हृदय रोग की उत्पत्ति बतायी गयी है। आचार्य पराशर ने तो दशाफलाध्याय में सर्वाधिक रोगोद्भवकारक दशाओं का विवेचन किया है।
आचार्य वराहमिहिर के दशाफलाध्याय में भी हृदयरोग की परिचर्चा प्राप्त होती है। वहाँ सूर्य को कारक रूप में स्वीकार किया गया है। इसी प्रकार परवर्ती परम्परा के ग्रन्थों में भी हृदयरोग कारक ग्रहयोगों की प्राप्ति होती है। प्रमुख हृदयरोग कारक ग्रहयोग लगभग चालीस के आसपास हैं, जिनकी सम्भावना लिखित एवं प्रायोगिक
दोनों आधार पर समान रूप में प्राप्त होती है। इनमें भी तीन प्रकारके हृदयरोग कारक ग्रहयोग प्राप्त हो रहे
१👉 घटितयोग-वे ग्रहयोग, जो ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में लिखित हैं तथा सर्वेक्षण से प्राप्त हृदयरोग के रोगियों की कुण्डली पर पूर्णतया घटित हो रहे हैं।
२👉 अघटितयोग-इसके अन्तर्गत वे ग्रहयोग हैं, जिनका शास्त्र में उल्लेख है तो, परंतु प्रायोगिक कुण्डलियों पर ये कहीं घटित नहीं हो रहे हैं।
३👉 नूतनयोग-इसके अन्तर्गत वे ग्रहयोग आते जिनका उल्लेख ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में नहीं दिखायी है परंतु प्रायोगिक आधार पर ये ग्रहयोग घटित हो रहे जहाँ अघटित ग्रहयोगों को छोडकर केवल घटित योगों का उल्लेख किया जा रहा, जिनकी प्राप्ति प्रायोगिक आधार पर प्रायः शतप्रतिशत रही है। ऐसे योग निम्नलिखित हैं, जिनके आधार पर जन्मांग एवं
नवांश-चक्र देखकर हृदयरोग का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को इस ग्रहस्थिति के कारण हृदयरोग हुआ है, चाहे होगा।
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