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‘इनेलो और बीएसपी’ के बीच राजनीतिक ‘गठबंधन की हैट्रिक’

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‘इनेलो और बीएसपी’ के बीच राजनीतिक ‘गठबंधन की हैट्रिक’

1996, 2018 और अब 2024 में तीसरी बार एक बार फिर साथ-साथ

विधानसभा चुनाव के लिए 53 और 37 सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला

इनेलो और बीएसपी का जातीय समीकरण बन सकता है चुनौती

भाजपा तथा कांग्रेस को भी बनानी होगी अपनी नई राजनीतिक रणनीति

फतह सिंह उजाला 

गुरुग्राम । राजनीति में कब कहां किस मोड़ पर रास्ते अलग हो जाए और चलते-चलते एक भी हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इनेलो सुप्रीमो एवं पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला सहित अन्य अनुभवी राजनेताओं का भी यही तर्क है की राजनीति में संभावनाएं कभी समाप्त नहीं होती। संभवत इसी कड़ी में अलग-अलग होने के होने के बाद एक बार फिर से इनेलो और बीएसपी के बीच में राजनीतिक गठबंधन की हैट्रिक बन गई है । राज्य विधानसभा चुनाव में ज्यादा लंबा समय भी बाकी नहीं है । इस हालत में इनेलो और बीएसपी के गठबंधन को ना तो  नजर अंदाज किया जा सकता है और ना ही हल्के में आंका जा सकता है। इस बात से भी इनकार नहीं की दोनों राजनीतिक दल और उनके बड़े नेता अथवा मुखिया एक दूसरे के विचारधारा को भी अच्छे से समझते हैं । दोनों के बीच राजनीतिक समझौते के लिए यही मुख्य कारण माना जा रहा है।

2024 के विधानसभा चुनाव के लिए इनेलो और बीएसपी के बीच राजनीतिक गठबंधन से पहले दोनों दलों में 1996 और इसके बाद 2018 में भी राजनीतिक समझौता इलेक्शन के लिए रहा है ।  इनेलो और बसपा के बीच समझौते के तहत लड़े गए चुनाव में आरक्षित सीट अंबाला से बीएसपी का सांसद चुना गया । उपलब्ध जानकारी के अनुसार 1996 में समझौते के बाद इनेलो सात लोकसभा और बीएसपी तीन लोक सभा सीटों पर हरियाणा में चुनाव लड़े थे । इसके बाद अब एक बार फिर से दोनों पार्टियों और उनके वरिष्ठ नेता हरियाणा में सरकार बनाने के लिए 2024 में साथ-साथ आ गए हैं । इंडियन नेशनल लोकदल 53 सीट और बीएसपी 37 सीटों पर विधानसभा का चुनाव हरियाणा में लड़ेंगे । इससे पहले भी दोनों ही पार्टियों हरियाणा में विधानसभा चुनाव अधिकांश विधानसभा क्षेत्र में लड़ चुकी हैं।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि इनेलो सुप्रीमो एवं पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला राजनीति के अनुभव का खजाना है। दूसरी तरफ बसपा सुप्रीमो एवं यूपी की पूर्व सीएम मायावती भी राजनीति का लंबा अनुभव रखती है । राजनीति के जानकारों का कहना है इनेलो और बसपा के गठबंधन को मौजूदा राजनीतिक हालात में हलके में नहीं देखा जाना चाहिए। मायावती के नेतृत्व वाले बहुजन समाज पार्टी का अपना एक अलग ही कैडर सहित जनाधार भी है। ठीक इसी प्रकार से हरियाणा प्रदेश में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले ओम प्रकाश चौटाला सहित इनेलो पार्टी का भी अपना अलग ही आधार और कार्यकर्ताओं की फौज है । यह बात अलग है कि राजनीतिक विरासत के मुद्दे पर इनेलो से अलग होने के बाद जननायक जनता पार्टी और इनेलो दोनों ही कहीं ना कहीं मौजूदा समय में लोकसभा चुनाव के बाद अपने आप को पुनर्स्थापित करने के लिए सक्रिय दिखाई दे रही है । इसमें इनेलो- बसपा से समझौता करने के बाद दोनों ही मजबूत स्थिति में माने जा रहे हैं।

राजनीति के रुचिकारो के मुताबिक इनेलो और बसपा के बीच राजनीतिक गठबंधन कहीं ना कहीं भाजपा के साथ ही कांग्रेस को भी राजनीतिक नुकसान पहुंचने में सक्षम माना जा रहा है । कांग्रेस का भी अपना एक पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। इसी प्रकार से पिछले एक दशक से हरियाणा में सत्ता संभाल रही भाजपा और वरिष्ठ नेताओं के द्वारा दुनिया की सबसे बड़ी पॉलीटिकल पार्टी का प्रचार किया जा रहा है । हरियाणा में भाजपा सरकार के द्वारा एक के बाद एक ताबड़तोड़ घोषणाएं और जनता से फायदे किए जा रहे हैं । दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के हरियाणा में बड़े नेताओं के द्वारा भी लोगों के बीच पहुंचकर पार्टी की नीतियां बताते हुए लोक लुभावन घोषणा को दोहराया जा रहा है। इसी कड़ी में इनेलो और बसपा  गठबंधन के द्वारा भी जनता के बीच वादे लुटाए जा रहे हैं । प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले इनेलो और बसपा के बीच राजनीतिक गठबंधन को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं की भाजपा तथा कांग्रेस को भी अपनी नई रणनीति पर विचार करना पड़ सकता है।

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