गुरुओं का मार्गदर्शन, सन्तों की संगति से जीव का कल्याण: शंकराचार्य नरेंद्रानन्द
गुरुओं का मार्गदर्शन, सन्तों की संगति से जीव का कल्याण: शंकराचार्य नरेंद्रानन्द
ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शंकरानंद सरस्वती का 31वाँ निर्माण महोत्सव
ब्रह्मलीन शंकराचार्य शंकरानंद सनातन की रक्षा एवं राष्ट्र कल्याण को समर्पित रहे
राष्ट्र एवं सनातन पर संकट हो तो सन्त ही संकट से मुक्ती का मार्गदर्शन करते
फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शंकरानंद सरस्वती महाराज का पूरा जीवन सनातन धर्म की रक्षा एवं राष्ट्र कल्याण के लिए समर्पित रहा। जब-जब राष्ट्र एवं सनातन समाज पर संकट उत्पन्न होता है, तो सन्त ही उस समय समाज का मार्गदर्शन कर संकट से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। देवलोक का सम्बन्ध ब्रह्मलोक, रूद्र लोक, परलोक मृत्युलोक और कर्म भूमि से है । प्रेतलोक एवं नरक लोक दुख से परिपूर्ण हैं, मृत्युलोक सर्व लोक से हितकर है। क्योंकि देखा जाए तो शुभ-अशुभ कर्मों से अन्य दिव्य लोक प्राप्त करते हैं । इसलिए अहर्निश गुरुओं का मार्गदर्शन लेकर सन्तों की संगति से जीव का कल्याण होता है । यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट् अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने काशी सुमेरु पीठ-डुमराँव बाग कालोनी, अस्सी, वाराणसी में सुमेरुश्री के ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शंकरानंद सरस्वती महाराज के 31वाँ निर्माण महोत्सव के मौके पर कही। यह जानकारी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानन्द सरस्वती के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती महाराज के द्वारा मीडिया से साझा की गई है। इससे पहले निर्वाण महोत्सव प्रातःकाल चतुर्वेद स्वस्तिवाचन से प्रारंभ हुआ एवं भगवान श्री चंद्रमौलिश्वर महादेव का रुद्राभिषेक एवं राजराजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी के लक्षार्चन से प्रारम्भ किया गया । इसके पश्चात ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज की प्रतिमा पर सन्तों एवं विद्वत्जनों ने समुद्र के जल – फलों के रस से महाभिषेक किया । इस पावन अवसर पर विद्वतजनों एवं सन्त समाज की पावन उपस्थिति में श्रद्धांजलि सभा हुई ।
सनातन धर्म विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया
ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शंकरानंद सरस्वती महाराज के निर्माण महोेत्सव पर विद्वत् गोष्ठी में शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानन्द सरस्वती ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी शंकरानंद सरस्वती वेदान्त, न्याय, मीमांसा, व्याकरण, छन्द, न्याय के साथ-साथ मीमांसा के उद्भट विद्वान थे । वे बड़े-बड़े विद्वानों की शंकाओं का चुटकी बजाते शास्त्र सम्मत समाधान करते थे । भारत के बड़े-बड़े विद्वान उनके समाधान से दंग रह जाते थे । विद्वत् गोष्ठी में स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान एवं गंगाजल का पान करके हम सन्यासियों को उपदेश करते थे,एवं हम सन्तों की अज्ञानता का भेदन करते थे। स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन शंकराचार्य ने आसाम, मेघालय बांग्लादेश सीमा क्षेत्र में जाकर सनातन हिंदू धर्म को बल प्रदान किया और सनातन धर्म विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देकर हिंदुत्व की शक्तियों को प्रबलता एवं प्रखरता प्रदान किया । आज यदि वह वहाँ नहीं गए होते तो वहाँ के सनातनधर्मी आज हिन्दू नहीं, अपितु ईसाई या मुसलमान होते ।
अपने धर्म पर बने रहने का संबल दिया
ब्रह्मलीन शंकराचार्य की विचारधारा एवं वाणी आज भी वहाँ के लोगों के जीवन मैं गुंजायमान होती रहती है। जो सभी को अपने धर्म पर बने रहने का संबल प्रदान करती है । सन्तों का स्वागत छमाशंकर उपाध्याय ने माल्यार्पण कर किया । विद्वत् गोष्ठी का संचालन स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती महाराज ने किया। तत्पश्चात भण्डारे में चतुरू संप्रदाय के सन्तों एवम् श्रद्धालुओं ने फलाहारी प्रसाद ग्रहण किया । विजयराम दास जी महाराज ने समस्त संतो को तिलक लगाकर माल्यार्पण किया । विद्वत् गोष्ठी में प्रमुख रूप से सार्वभौम विश्वगुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज, स्वामी दुर्गेशानन्द तीर्थ, स्वामी राधेश्याम आश्रम, स्वामी बालेश्वरानन्द तीर्थ, श्रीमहन्त अवध बिहारी दास, पातालपुरी पीठाधीश्वर महन्त बालक दास जी, डा० वागीश स्वरूप ब्रह्मचारी जी, श्री जय प्रकाश त्रिपाठी,श्री राजकुमार मिश्र, श्री प्रभाकर त्रिपाठी आदि सन्तों एवम् विद्वत्जनों की पावन उपस्थिति रही।
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